उत्तर प्रदेश सरकार अब स्कूल से छूट गए बच्चों को फिर से शिक्षा की मुख्यधारा में लाने के लिए एक खास अभियान शुरू करने जा रही है।
1 जुलाई 2025 से राज्यभर में एक घर-घर सर्वे की शुरुआत होगी, जिसके जरिए ऐसे बच्चों की पहचान की जाएगी जो किसी वजह से स्कूल नहीं जा रहे हैं।
सरकार का मानना है कि अगर एक भी बच्चा शिक्षा से वंचित रहता है तो वह सिर्फ उसका नहीं, समाज का नुकसान होता है। इसलिए अब इस अभियान को केवल सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक जन सहयोग की मुहिम की तरह देखा जा रहा है।
🎯 सर्वे का उद्देश्य: पढ़ाई से दूर बच्चों तक पहुंच बनाना
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस अभियान को “शिक्षा संकल्प” नाम दिया है। इसका मकसद है:
राज्य के हर 3 से 14 साल के बच्चे तक शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करना।
सरकार की योजना है कि जिन बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया है या जिन्हें कभी मौका ही नहीं मिला, उन्हें दोबारा शिक्षा से जोड़ा जाए।
परिषदीय विद्यालयों में नामांकन बढ़ाने हेतु प्रदेश में प्रत्येक वर्ष #SchoolChaloAbhiyaan संचालित किया जाता है।
डोर-टू-डोर सर्वे के माध्यम से बच्चों को चिह्नित एवं विद्यालय में नामांकित कराने के उपरान्त ‘शारदा ऐप’ के माध्यम से बच्चों का विवरण अंकित किया जाता है।
‘शारदा पोर्टल’…
— CM Office, GoUP (@CMOfficeUP) June 24, 2025
👣 कैसे होगा यह सर्वे? पूरी रणनीति तैयार
इस अभियान को लागू करने के लिए सरकार ने एक विस्तृत प्लान तैयार किया है:
- 1.6 लाख शिक्षक,
- 60 हजार शिक्षामित्र,
- और 2000 अनुदेशक
राज्य के हर जिले में घर-घर जाकर बच्चों की शैक्षिक स्थिति का आकलन करेंगे।
डाटा कलेक्ट करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया जाएगा — जैसे DIKSHA ऐप और Google Forms। इससे पूरे राज्य का एक सटीक डेटा बेस तैयार किया जाएगा।
📆 सर्वे की समयावधि:
1 जुलाई से 31 जुलाई 2025 तक राज्य भर में यह अभियान चलेगा।
🧒 किन बच्चों की पहचान की जाएगी?
इस सर्वे का फोकस रहेगा उन बच्चों पर:
- जो कभी स्कूल गए थे लेकिन अब ड्रॉपआउट हैं
- जो कभी स्कूल में नामांकित ही नहीं हुए
- जिनके माता-पिता आर्थिक, सामाजिक या भौगोलिक कारणों से उन्हें स्कूल नहीं भेज पाए
खासतौर पर शहरी झुग्गियों, दूरदराज के गांवों, और घुमंतू समुदायों के बच्चों को प्राथमिकता दी जाएगी।
📲 डिजिटल सर्वे से पारदर्शिता और गति दोनों
सर्वे में पेपरलेस डेटा कलेक्शन की सुविधा दी गई है।
हर शिक्षक को यह निर्देश मिला है कि वह मोबाइल या टैबलेट के जरिए तुरंत जानकारी अपलोड करे। इससे:
- सर्वे की गति तेज होगी
- दोहराव या गलती की संभावना कम रहेगी
- और राज्य स्तर पर रियल टाइम मॉनिटरिंग संभव होगी
🗂️ सर्वे के बाद क्या होगा?
सर्वे के अंत में एक व्यापक रिपोर्ट तैयार की जाएगी जिसमें यह जानकारी होगी कि:
- कितने बच्चे स्कूल से बाहर हैं
- कौन से बच्चे कितनी दूर रहते हैं
- किन कारणों से पढ़ाई छूटी
इसके बाद प्रशासन संबंधित बच्चों का आस-पास के स्कूलों में नामांकन कराएगा। जहाँ संभव नहीं होगा, वहाँ वैकल्पिक शिक्षा केंद्र, विशेष कोचिंग, या पुनः प्रवेश शिविर आयोजित किए जाएंगे।
📌 जिला स्तर पर जिम्मेदारी तय
प्रत्येक जिले में BSA (जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी) की अगुवाई में एक टीम बनाई गई है जो:
- सर्वे की निगरानी करेगी
- शिक्षकों को फील्ड में सहायता देगी
- और समय-समय पर राज्य स्तर पर रिपोर्ट भेजेगी
इस अभियान की सफलता के लिए अधिकारियों, शिक्षकों, व सामाजिक संगठनों का तालमेल बहुत जरूरी है।
📚 पिछली कोशिशें: क्या बदलाव आया?
यूपी सरकार पिछले कुछ वर्षों में कई शिक्षा अभियान चला चुकी है:
- ‘स्कूल चलो अभियान’
- ‘नमस्ते स्कूल’
- और कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों का विस्तार
इन प्रयासों का असर यह रहा कि राज्य में बालिका नामांकन दर में सुधार हुआ और ग्रॉस एनरोलमेंट रेट में भी उछाल आया। लेकिन ड्रॉपआउट की समस्या अभी भी कई इलाकों में कायम है।
🧠 यह पहल क्यों जरूरी है?
भारत सरकार के शिक्षा से जुड़े लक्ष्य (SDG 4) के मुताबिक 2030 तक हर बच्चे को समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलनी चाहिए।
उत्तर प्रदेश जैसे राज्य, जहाँ बच्चों की संख्या करोड़ों में है, वहां अगर एक बड़ा हिस्सा स्कूल से बाहर हो — तो राष्ट्रीय लक्ष्य हासिल करना मुश्किल हो जाएगा।
यह अभियान सिर्फ राज्य के लिए नहीं, बल्कि देशभर में शिक्षा की नीतियों को मज़बूती देने वाला हो सकता है।
🚧 संभावित चुनौतियां और समाधान
❌ चुनौती: ग्रामीण क्षेत्रों में जानकारी छुपाना
कई बार माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई को लेकर जागरूक नहीं होते। वे जानकारी छुपा लेते हैं या सर्वे में सहयोग नहीं करते।
✅ समाधान:
आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी कर्मचारी और पंचायत प्रतिनिधियों को भी सर्वे से जोड़ा गया है।
❌ चुनौती: तकनीकी जानकारी की कमी
कुछ शिक्षक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर डेटा भरने में सहज नहीं हैं।
✅ समाधान:
सर्वे शुरू होने से पहले ही सभी सर्वे कर्मियों को ट्रेनिंग दी जा रही है, जिससे वे ऐप्स और गूगल फॉर्म्स का सही उपयोग कर सकें।
💬 शिक्षा विशेषज्ञों की राय: भागीदारी ज़रूरी
शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े जानकारों का कहना है कि यह अभियान सिर्फ सरकारी नहीं होना चाहिए।
“अगर समाज, माता-पिता और प्रशासन मिलकर काम करें, तभी यह पहल सफल हो सकती है। सिर्फ सर्वे कर लेना काफी नहीं, बच्चों को स्कूल में बनाए रखना बड़ी चुनौती है।”
जैसे हाल ही में तेलंगाना फैक्ट्री ब्लास्ट की खबर ने यह दिखाया कि कैसे सुरक्षा नियमों की अनदेखी भयानक हादसे को जन्म दे सकती है, उसी तरह शिक्षा को नजरअंदाज करना समाज के भविष्य को खतरे में डाल सकता है।
जब तक हर बच्चा स्कूल में नहीं होगा, तब तक हम एक सुरक्षित, शिक्षित और सक्षम समाज की कल्पना नहीं कर सकते।
✅अब वक्त है सिर्फ बातों से आगे बढ़ने का
UP सरकार का यह कदम कई मायनों में अहम है। यदि इस पर सही ढंग से अमल किया गया, तो यह लाखों बच्चों के लिए जीवन बदलने वाला साबित हो सकता है।
“हर बच्चा पढ़े, हर बच्चा बढ़े” — अब यह नारा नहीं, बल्कि जमीन पर उतरता हुआ सच बन सकता है।
📢 आपका क्या मानना है?
क्या यह सर्वे बच्चों को दोबारा स्कूल लाने में सफल होगा?
नीचे कमेंट में अपनी राय ज़रूर बताएं।