न्यायपालिका की पारदर्शिता और निष्पक्षता देश के लोकतंत्र की नींव मानी जाती है। जब किसी उच्च पदस्थ न्यायाधीश पर मामले की सुनवाई में संभावित टकराव (conflict of interest) की संभावना दिखती है, तो उनका खुद को उस मामले से अलग करना केवल संवैधानिक ज़िम्मेदारी ही नहीं, बल्कि संस्थागत गरिमा की भी रक्षा करता है। ऐसा ही एक उदाहरण हाल ही में देखने को मिला, जब एक बेहद संवेदनशील मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया।
⚖️ मुख्य न्यायाधीश का निर्णय: निष्पक्षता की मिसाल
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने एक महत्वपूर्ण याचिका की सुनवाई से खुद को अलग करने का फैसला लिया। यह याचिका एक प्रतिष्ठित रियल एस्टेट समूह के निदेशक द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज करने की मांग की थी।
मुख्य न्यायाधीश का कहना था कि चूंकि इस मामले में निचली अदालत के एक न्यायिक अधिकारी का नाम जुड़ा हुआ है, जो हाईकोर्ट की नियुक्ति प्रक्रिया का हिस्सा रहे हैं, ऐसे में निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए उनका अलग होना ज़रूरी था।
यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से उचित है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि संस्थागत निष्पक्षता को प्राथमिकता दी गई है।
Giani Raghbir Singh withdrew the case filed against the Shiromani Gurdwara Parbandhak Committee in the Punjab and Haryana High Court… https://t.co/7XeMbHRGSJ pic.twitter.com/abwkgwNJEf
— Parambir Singh Aulakh (@paramaulakh02) June 30, 2025
🧾 मामले की पृष्ठभूमि: रियल एस्टेट से रिश्वतखोरी तक
इस केस में एक नामी बिल्डर के खिलाफ आरोप है कि उन्होंने एक स्थानीय जिला अदालत के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश को कथित रूप से रिश्वत दी, जिससे उन्हें एक विशेष मामले में राहत मिल सके।
जांच एजेंसियों ने यह दावा किया कि लगभग ₹5 करोड़ की यह डील न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने के उद्देश्य से की गई थी।
बिल्डर को पहले गिरफ्तार भी किया जा चुका है और फिलहाल वे ज़मानत पर हैं। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर प्राथमिकी को रद्द करने की गुज़ारिश की।
📂 एफआईआर रद्द करने की याचिका: क्या हैं दलीलें?
आरोपी बिल्डर ने अपने पक्ष में यह तर्क दिया कि प्राथमिकी में उनके खिलाफ लगाए गए आरोप निराधार हैं और किसी पूर्वाग्रह पर आधारित हैं। उन्होंने कोर्ट से गुज़ारिश की कि इस एफआईआर को तुरंत रद्द किया जाए ताकि उन्हें कानूनी राहत मिल सके।
उनकी दलील थी कि यह कार्रवाई एकतरफा है और इसका कोई ठोस साक्ष्य नहीं है जो अदालत में टिक सके।
इस याचिका की सुनवाई अब दूसरी पीठ के समक्ष रखी जाएगी।
📌 संस्थानिक हित बनाम व्यक्तिगत न्याय: क्यों अलग हुए मुख्य न्यायाधीश?
इस केस में जो बात सबसे अधिक विचारणीय रही, वह थी – संस्थानिक निष्पक्षता बनाम व्यक्तिगत निर्णय।
मुख्य न्यायाधीश ने यह स्पष्ट किया कि इस मामले में जिस निचली अदालत के न्यायिक अधिकारी का नाम आया है, उसकी नियुक्ति और प्रशासनिक ज़िम्मेदारी हाईकोर्ट से जुड़ी रही है।
ऐसे में अगर वे खुद इस केस की सुनवाई करते, तो यह संस्थान की निष्पक्षता पर सवाल उठा सकता था।
यह निर्णय बताता है कि किस तरह भारतीय न्यायपालिका आत्मसमीक्षा करने की क्षमता रखती है और निष्पक्षता को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है।
Punjab & Haryana HC Chief Justice has recused from hearing quashing plea of M3M director, accused of conspiring to #Bribe a Judge.
CJ said he had earlier dealt with the matter on administrative side, when the case was withdrawn from another Judge’s court, on a complaint. pic.twitter.com/q885UARcjL
— Live Law (@LiveLawIndia) July 3, 2025
🔄 अब आगे क्या होगा?
अब यह मामला हाईकोर्ट की किसी दूसरी पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। फिलहाल, कोई नई तिथि निर्धारित नहीं की गई है, लेकिन माना जा रहा है कि अगली सुनवाई जल्द ही होगी।
इस मामले का प्रभाव काफी व्यापक हो सकता है, क्योंकि इसमें उच्च न्यायिक पदों और न्यायिक प्रक्रिया की साख से जुड़ी गंभीर बातें हैं।
📣 जनता और पाठकों की सोच: क्या हम इस निष्पक्षता को समझते हैं?
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि क्या आम जनता ऐसे संस्थागत निर्णयों की गंभीरता को समझती है?
जब कोई मुख्य न्यायाधीश खुद को किसी केस से अलग करता है, तो यह कोई साधारण प्रशासनिक फैसला नहीं होता, बल्कि यह न्यायपालिका की गरिमा का रक्षण होता है।
जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संस्थागत गरिमा बनी विषय
हाल ही में, प्रधानमंत्री की त्रिनिदाद यात्रा के दौरान उन्हें वहाँ पारंपरिक भोजपुरी ‘चौताल’ के साथ भव्य स्वागत मिला था। इस मौके पर भारत की सांस्कृतिक पहचान और संस्थागत गरिमा दोनों की झलक देखने को मिली।
ऐसे ही हर स्तर पर, चाहे वह अंतरराष्ट्रीय संबंध हों या आंतरिक न्यायिक व्यवस्था – गरिमा और संतुलन का बनाए रहना आवश्यक है।
निष्पक्षता की राह आसान नहीं, पर ज़रूरी है
यह मामला एक उदाहरण बन सकता है कि कैसे न्यायपालिका स्वयं पर सवाल उठने से पहले ही सतर्क हो जाती है।
मुख्य न्यायाधीश का यह कदम बताता है कि न्याय सिर्फ होना नहीं चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए।