बिहार में चल रही मतदाता सूची की सघन जांच पर उठे सवाल
बिहार में इन दिनों मतदाता सूची को लेकर बड़ी हलचल देखी जा रही है। चुनाव आयोग राज्य भर में वोटर रोल को अपडेट करने की प्रक्रिया में लगा हुआ है। लेकिन इस प्रक्रिया ने कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त का बयान – “कोई पूरी तरह संतुष्ट नहीं है” – इस पूरी कवायद पर गहराई से सोचने को मजबूर करता है।
प्रवासी मजदूरों, अल्पसंख्यक वर्ग और अति पिछड़ा समुदाय (EBC) के मतदाता सूची से नाम गायब होने की कई शिकायतें सामने आई हैं। राजनीतिक दलों ने इस पर चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े किए हैं। यह भी पढ़ें: मेरठ यूनिवर्सिटी विवाद – छात्रों को ₹5 लाख का बॉन्ड नोटिस
मतदाता सूची सुधार का उद्देश्य और प्रक्रिया
बिहार में हर पांच साल पर चुनावों से पहले मतदाता सूची को अपडेट करना एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन इस बार की कवायद पहले से अधिक सख्त और गहन है।
मुख्य उद्देश्य:
- डुप्लीकेट वोटर्स हटाना
- मृत व्यक्तियों के नाम हटाना
- नए 18+ नागरिकों को जोड़ना
- और अधिक पारदर्शिता लाना
प्रक्रिया कैसे हो रही है?
- हर जिले में बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर सत्यापन कर रहे हैं
- वोटर लिस्ट से जिनके नाम हटाए गए हैं, उन्हें नोटिस या SMS के माध्यम से सूचित किया गया है
- डिजिटल वेरिफिकेशन और दस्तावेज़ों के आधार पर पुनः प्रविष्टि की जा रही है
परंतु, कई मामलों में सही नागरिकों का भी नाम कट गया, जिससे भारी असंतोष पैदा हो गया।
EBC और अल्पसंख्यक समुदाय की चिंताएं बढ़ीं
मतदाता सूची में सबसे ज़्यादा प्रभाव EBC (अति पिछड़ा वर्ग) और अल्पसंख्यकों पर पड़ा है।
- कई ईबीसी परिवारों ने शिकायत की है कि बिना किसी सूचना के उनका नाम लिस्ट से हटा दिया गया।
- मुस्लिम समुदाय से भी ऐसी शिकायतें आ रही हैं कि एक ही मोहल्ले के 30-40% नामों को हटा दिया गया।
इन समुदायों को डर है कि जानबूझकर उनके राजनीतिक प्रभाव को कम किया जा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इस मुद्दे पर तुरंत संज्ञान नहीं लिया गया, तो यह एक बड़ा सामाजिक असंतुलन पैदा कर सकता है।
ELECTION COMPLICIT COMMISSION
Modi is Losing Bihar.
So ECI Rushes to “Verify” 7.75 crore Voters in just 30 days.
Only Aadhaar, No Vote.
Poor, Minorities, Migrants Set to Vanish from Voter Rolls. pic.twitter.com/JmO96B6p29
— Muralidharan Gopal (@muralitwit) July 4, 2025
प्रवासी मजदूरों का मुद्दा और सुप्रीम कोर्ट की चुनौती
बिहार के लाखों लोग बाहर काम करने जाते हैं। इनमें से कई के पास स्थायी पता नहीं होता या उनका वर्तमान पता स्थानीय दस्तावेज़ों से मेल नहीं खाता।
इसी के चलते बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं।
RJD सांसद ने इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और कहा है कि
“जो नागरिक हर चुनाव में वोट देते आए हैं, उन्हें अब सिर्फ एक पते की कमी की वजह से मतदाता सूची से हटाना असंवैधानिक है।”
यह मुद्दा आने वाले दिनों में राजनीतिक रूप से और अधिक गर्मा सकता है।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं – आरोप-प्रत्यारोप का दौर
बिहार की राजनीति में इस मतदाता सूची संशोधन को लेकर घमासान मचा है।
RJD ने सीधे तौर पर आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया जानबूझकर EBC और मुस्लिम मतदाताओं को बाहर करने के लिए की जा रही है।
तेजस्वी यादव ने कहा: “यह सिर्फ सूची सुधार नहीं, बल्कि लोकतंत्र की हत्या है।”
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भी आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाया है।
वहीं BJP और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनाव आयोग का बचाव करते हुए इसे “प्रक्रियात्मक आवश्यकता” बताया है।
चुनाव आयोग का पक्ष: पारदर्शिता का दावा
मुख्य चुनाव आयुक्त ने साफ किया है कि
“यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है और किसी विशेष वर्ग को निशाना नहीं बनाया जा रहा है।”
चुनाव आयोग ने सभी जिलों के डीएम और एसपी को आदेश दिए हैं कि वे
- किसी भी नाम हटाने से पहले तीन बार नोटिस भेजें
- यदि नागरिक आपत्ति दर्ज करता है, तो उसका मामला वोटर रिव्यू बोर्ड में भेजा जाए
इसके अलावा आयोग ने कहा कि वह सभी राजनीतिक दलों से सुझाव लेने को तैयार है।
मतदाताओं की जमीनी हकीकत: जानकारी की भारी कमी
बिहार के कई ग्रामीण क्षेत्रों में नागरिकों को यह तक नहीं पता कि
- उनका नाम वोटर लिस्ट से कटा है
- या उन्हें दस्तावेज़ जमा करने थे
बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) कई स्थानों पर गए ही नहीं, या उनका संपर्क नहीं हो पाया।
ग्रामीण महिला मतदाता गीता देवी ने बताया:
“हम तो हर बार वोट देते हैं, लेकिन अब पता चला कि नाम ही नहीं है।”
यह साफ दर्शाता है कि प्रक्रिया चाहे कितनी भी तकनीकी हो, मूलभूत जागरूकता और मानवीय जुड़ाव के बिना उसका असर सीमित रह जाएगा।
आगे की राह क्या है?
बिहार में मतदाता सूची सुधार एक ज़रूरी प्रक्रिया है, लेकिन इसे और अधिक पारदर्शी, समावेशी और जागरूकता-आधारित बनाना जरूरी है।
आम नागरिकों को भी यह समझना होगा कि
- वोट डालना उनका अधिकार है
- और इसे बनाए रखने के लिए उन्हें सक्रिय रहना होगा
सरकार और आयोग को चाहिए कि वे
- पंचायत स्तर पर जागरूकता अभियान चलाएं
- और प्रक्रिया में हर नागरिक की भागीदारी सुनिश्चित करें
👉 आपका क्या मानना है? क्या मतदाता सूची सुधार निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हो रहा है?
👇 नीचे कमेंट में अपनी राय ज़रूर दें!