रक्षा बंधन सिर्फ एक पारंपरिक पर्व नहीं, बल्कि भाई-बहन के प्रेम और सुरक्षा के रिश्ते का सबसे खूबसूरत प्रतीक है। जब देश के जवान सरहद पर तैनात रहते हैं और अपने परिवार से दूर रहते हुए हमारी रक्षा करते हैं, तब यह पर्व और भी भावनात्मक हो जाता है। 2025 में रक्षा मंत्रालय और सामाजिक संगठनों द्वारा सैनिकों को राखी भेजने की जो पहलें हुई हैं, वे देश की एकता, भावना और कृतज्ञता की अद्भुत मिसाल पेश करती हैं।
2025 की शुरुआत से ही तैयारियां: बहनों का भावनात्मक जुड़ाव
इस वर्ष जैसे ही रक्षा बंधन नजदीक आया, कई राज्यों की बहनों ने सैनिकों के लिए राखी भेजने की तैयारियां शुरू कर दीं। बच्चों से लेकर वृद्ध महिलाओं तक ने अपने हाथों से राखियां बनाई हैं—कुछ ने कागज़ से, तो कुछ ने फूलों और पत्तों से सजाई हुई राखियां तैयार कीं।
ये सिर्फ धागे नहीं, बल्कि उन भावनाओं की डोर हैं जो सीमाओं के पार जाकर “आप अकेले नहीं हैं” का संदेश देती हैं।
रक्षा मंत्रालय की पहल: ‘रक्षा सूत्र सम्मान अभियान’
2025 में रक्षा मंत्रालय ने पहली बार देशभर से संगठनों और नागरिकों को प्रोत्साहित करने के लिए ‘रक्षा सूत्र सम्मान अभियान’ की शुरुआत की। इसके तहत:
- नागरिकों को डाक या डिजिटल माध्यम से सैनिकों को राखी भेजने की सुविधा दी गई।
- स्कूल, कॉलेज और NGO के माध्यम से बच्चों द्वारा बनाए गए संदेश और राखियों को इकट्ठा कर सेना मुख्यालयों तक पहुंचाया गया।
- हर राखी के साथ एक भावनात्मक संदेश और कार्ड भी शामिल किया गया, जिससे सैनिकों को यह महसूस हो सके कि पूरा देश उनके साथ खड़ा है।
नागपुर से 3 लाख राखियां सीमा पर हमारे जाँबाज़ सैनिकों को भेजने की खबर दिल को छू गई! ❤️
ये केवल धागे नहीं, ये हर हिंदुस्तानी बहन का अपने भाईयों के लिए निस्वार्थ प्रेम, सम्मान और उनके प्रति अटूट विश्वास का प्रतीक है.
यही दिखाता है कि पूरा देश अपने जवानों के साथ चट्टान की तरह… pic.twitter.com/6X8QRqHe1b
— Arun Yadav (@BeingArun28) July 20, 2025
गांव-गांव से निकली राखियां, सीमा तक पहुंचा प्यार
2025 में यह भी देखने को मिला कि छोटे कस्बों और गांवों से लेकर शहरों के स्कूलों तक, हर जगह महिलाओं और लड़कियों ने इस अभियान में उत्साह से भाग लिया। खासकर आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं ने प्राकृतिक चीज़ों से बनी राखियां तैयार कर सीमावर्ती इलाकों में तैनात सैनिकों को भेजीं।
कुछ महिलाओं ने राखी के साथ अपने हाथ से बनाए लड्डू और सूखे मेवे भी भेजे, जो सैनिकों के लिए घर जैसा स्वाद और अपनापन लेकर गए।
डिजिटल युग की राखियां: सैनिकों के लिए वर्चुअल सन्देश
इस बार की एक खास बात रही – डिजिटल राखियों और वीडियो संदेशों का चलन। कई बहनों ने अपने मोबाइल से वीडियो संदेश रिकॉर्ड कर ऑनलाइन पोर्टलों पर अपलोड किए, जिन्हें सैनिकों तक पहुंचाया गया। इन वीडियो में भावनाएं थीं, कविताएं थीं, और कई बार तो आंसू भी।
इस पहल ने तकनीक को भावना से जोड़ने का एक बेहद सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया।
सैनिकों की प्रतिक्रिया: ‘देश की बहनों ने रुला दिया’
जब ये राखियां और संदेश सैनिकों तक पहुंचे, तो उनकी प्रतिक्रिया बेहद भावुक करने वाली रही। कई जवानों ने कहा कि:
“हमने सोचा था कि शायद परिवार से दूर रहने का दर्द हर बार की तरह इस बार भी सहना पड़ेगा, लेकिन जब राखियां और संदेश आए, तो लगा कि पूरा देश हमारा परिवार है।”
कुछ सैनिकों ने इन राखियों को अपनी वर्दी के पास रखकर फोटो खिंचवाए और सोशल मीडिया पर साझा किया, जहां हज़ारों नागरिकों ने उन्हें धन्यवाद दिया।
स्कूलों और कॉलेजों की भूमिका: बच्चों से भावनाओं का उपहार
2025 में यह भी देखने को मिला कि देशभर के हजारों स्कूलों ने अपने छात्रों को ‘रक्षा बंधन सैनिकों के नाम’ अभियान में शामिल किया। बच्चों ने न सिर्फ राखियां बनाई, बल्कि अपनी भावनाएं कविता, पत्र और चित्रों के माध्यम से व्यक्त कीं।
कई छात्रों ने अपने भाइयों की वर्दी में तस्वीरें बनाईं और सैनिकों के नाम समर्पण पत्र लिखे। यह भविष्य की पीढ़ी को देशभक्ति और संवेदनशीलता से जोड़ने का एक सुंदर माध्यम बना।
रक्षाबंधन के साथ आत्मीयता का संदेश
इस वर्ष की राखियों में सिर्फ धागे नहीं थे—उनमें एक आभार का भाव, सम्मान का प्रतीक, और रक्षा करने वालों के लिए रक्षा की भावना भी थी। जब सीमाओं पर तैनात सैनिकों को ये राखियां मिलीं, तो उनके चेहरे पर मुस्कान और आंखों में गर्व झलक रहा था।
क्या आपने इस अभियान में भाग लिया?
यदि नहीं, तो अगली बार जब राखी का पर्व आए, तो एक राखी उन भाइयों के नाम भी भेजिए जो आपके लिए दिन-रात सीमाओं पर खड़े हैं।
आप चाहे तो इस बार भी डाक, सोशल मीडिया या डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए अपना संदेश भेज सकते हैं। एक छोटी-सी डोर आपके और देश के जवानों के बीच बड़ा संबंध जोड़ सकती है।
एक राखी, एक राष्ट्र, एक परिवार
रक्षा बंधन 2025 ने यह साबित कर दिया कि देश की बेटियां, बहनें और माताएं सिर्फ अपने परिवार तक सीमित नहीं हैं—वे पूरे राष्ट्र के सैनिकों को भाई मानती हैं। उनकी राखियां, उनके आशीर्वाद, और उनका सम्मान भारत की आत्मा में बसता है।