संसद का मानसून सत्र 2025 अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। 30 जुलाई को सत्र के आठवें दिन की कार्यवाही कई मायनों में अहम रही। केंद्र सरकार ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को छह महीने और बढ़ाने का प्रस्ताव लोकसभा में पेश किया, जिसे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के पटल पर रखा।
गौरतलब है कि इससे एक दिन पहले यानी सातवें दिन ऑपरेशन सिंदूर पर गृहमंत्री का बयान चर्चा का केंद्र रहा था। उस दिन की कार्यवाही में मणिपुर और पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा स्थिति पर विस्तृत चर्चा हुई थी।
पढ़ें: संसद के सातवें दिन ऑपरेशन सिंदूर पर अमित शाह का बयान
🟩 अमित शाह का प्रस्ताव: मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को बढ़ाने की मांग
लोकसभा में अमित शाह ने मणिपुर के हालात को लेकर चिंता जाहिर की और कहा कि राज्य की संवैधानिक स्थिति को स्थिर बनाए रखने के लिए राष्ट्रपति शासन को छह महीने तक और जारी रखना अनिवार्य है। उन्होंने बताया कि राज्य में चुनावों की परिस्थितियां अब भी अनुकूल नहीं हैं और कानून-व्यवस्था की स्थिति संवेदनशील बनी हुई है।
गृह मंत्री ने कहा कि “शांति बहाली की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन पूर्ण सामान्य स्थिति लौटने में अभी वक्त लगेगा।” इस बयान के साथ ही उन्होंने संवैधानिक अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन बढ़ाने की सिफारिश पेश की।
Parliament Monsoon Session: ‘Congress ने आतंक पनपने दिया’, केंद्रीय मंत्री Lalan Singh का विपक्ष पर हमला | Sansad Live#BreakingNews #LatestNews pic.twitter.com/AH7i8b2Fnn
— News18 India (@News18India) July 28, 2025
🟩 विपक्ष की प्रतिक्रिया और संसद में हंगामा
अमित शाह के प्रस्ताव के बाद विपक्ष ने संसद में हंगामा शुरू कर दिया। कांग्रेस, टीएमसी, आम आदमी पार्टी और डीएमके समेत कई विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार मणिपुर की स्थिति को सुधारने में विफल रही है और अब राष्ट्रपति शासन के जरिए वहां लोकतंत्र को कमजोर किया जा रहा है।
विपक्ष ने वॉकआउट भी किया और सदन के बाहर सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि यह फैसला “लोकतांत्रिक असफलता” है।
लोकसभा अध्यक्ष ने हंगामे के बीच सदन की कार्यवाही कुछ देर के लिए स्थगित भी करनी पड़ी।
🟩 ऑपरेशन सिंदूर पर जारी बहस का असर
सातवें दिन अमित शाह द्वारा दिए गए ऑपरेशन सिंदूर पर विस्तृत बयान का असर आज के सत्र में भी देखने को मिला। विपक्ष ने इसे मणिपुर में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने की एक “भूमिका तय करने वाला बयान” बताया। कई सांसदों ने कहा कि सरकार सुरक्षा अभियानों के नाम पर राजनीतिक स्थिरता को टाल रही है।
इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष ने जोर देकर कहा कि “ऑपरेशन सिंदूर” मणिपुर में आतंकी गतिविधियों के खिलाफ निर्णायक कदम है, और राष्ट्रपति शासन इस अभियान की सफलता के लिए ज़रूरी है।
🟩 अन्य प्रमुख घटनाएं: बिल, बहस और भाषण
Day 8 के दौरान सिर्फ मणिपुर नहीं, बल्कि अन्य अहम विधेयकों पर भी चर्चा हुई:
- आर्थिक अपराध (संशोधन) विधेयक पर विपक्ष की आपत्ति
- न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता पर सरकार का नया प्रस्ताव
- महिला आरक्षण बिल पर भी चर्चा संभव थी, लेकिन हंगामे के चलते स्थगित हो गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आज सदन में उपस्थित रहे लेकिन उन्होंने कोई बयान नहीं दिया। संभावना है कि वे अगले सत्र में इस मुद्दे पर अपनी बात रख सकते हैं।
Rajnath Singh In Parliament LIVE | Operation Sindoor | Pahalgam | Parliament Monsoon Session https://t.co/HdPneTKVcL
— The Hindu (@the_hindu) July 29, 2025
🟩 मणिपुर पर राष्ट्रपति शासन: संवैधानिक और राजनीतिक दृष्टिकोण
अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन तब लागू किया जाता है जब राज्य सरकार संवैधानिक प्रावधानों का पालन नहीं कर पाती है। मणिपुर में यह शासन पहले ही लागू था, और अब इसे जनवरी 2026 तक बढ़ाया जाने की सिफारिश की गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला चुनावों से पहले राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है, खासकर जब पूर्वोत्तर में बीजेपी को अपने आधार को बनाए रखना है।
🟩 जनता की नज़र से संसद सत्र
सोशल मीडिया पर #Manipur President Rule ट्रेंड कर रहा है। जनता दो हिस्सों में बंटती दिख रही है — एक ओर वे जो सुरक्षा के नाम पर इस फैसले को सही मानते हैं, दूसरी ओर वे जो इसे लोकतंत्र पर चोट बताते हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों में मिश्रित प्रतिक्रिया है। कुछ ने इसे “स्थिति को संभालने का सही कदम” बताया, तो कुछ ने कहा कि “जनता को मतदान का अधिकार छीना जा रहा है।”
🟩 संसद की दिशा तय करेगा मणिपुर का फैसला
अब सवाल यह है कि क्या संसद मणिपुर में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने को मंजूरी देगी? और यदि दे दी गई, तो क्या यह कदम राज्य में शांति और लोकतंत्र बहाली की दिशा में सार्थक होगा?
विपक्ष के लगातार विरोध और हंगामे के बावजूद, सरकार अपने फैसले पर अडिग दिख रही है। मणिपुर का भविष्य अब संसद की बहस और जनमत पर निर्भर करता है।