भारत-अमेरिका रिश्तों के बीच ऊर्जा तनाव
भारत और अमेरिका के रिश्तों में पिछले कुछ वर्षों में गहराई आई है, लेकिन हाल ही में अमेरिका के एक प्रभावशाली राजनैतिक सलाहकार ने भारत की रूस से तेल खरीद पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि भारत, रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीद कर यूक्रेन युद्ध को परोक्ष रूप से आर्थिक समर्थन दे रहा है।
यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए रूस से तेल खरीद को बढ़ावा दे रहा है, और अमेरिका में चुनावी माहौल गरमा रहा है।
🧾 मिलर ने क्या कहा?
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति की टीम के वरिष्ठ सलाहकार ने कहा कि उनके और प्रधानमंत्री मोदी के बीच “बेहतरीन रिश्ते” हैं, लेकिन यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि भारत रूस से तेल खरीदकर युद्ध को फंड कर रहा है।
🔹 “भारत रूस से तेल खरीद कर युद्ध को फंड कर रहा है”
🔹 “हमारे बेहतरीन रिश्ते मोदी जी से हैं, लेकिन यह मंज़ूर नहीं”
इस बयान के आते ही भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंधों को लेकर नई चर्चा शुरू हो गई है।
🛢️ भारत की रणनीति या मजबूरी?
भारत ने वैश्विक ऊर्जा संकट और घरेलू जरूरतों को ध्यान में रखते हुए रूस से कच्चे तेल की खरीद को प्राथमिकता दी है। रूस द्वारा भारत को भारी छूट पर तेल उपलब्ध कराया गया, जिससे ऊर्जा लागत में भारी कमी आई।
🔹 भारत की रूस से कच्चे तेल की खरीद में 10 गुना वृद्धि
🔹 प्रतिबंधों के बावजूद भारत का तेल आयात जारी
भारत ने यह स्पष्ट किया है कि ऊर्जा सुरक्षा देश की प्राथमिकता है और वह किसी भी प्रकार के राजनीतिक दबाव में निर्णय नहीं लेगा।
With Russian oil at risk, India’s crude import bill may spike by ₹78k–96k Cr. Expect a major pivot to LNG & Hydrogen to reduce dependence, control costs & secure energy. Infra push = big boost for LNG, Green Hydrogen, cryogenic tech & allied sectors. #NIFTY #GIFTNIFTY #DII #FII pic.twitter.com/FSi9vdPTHf
— RESEARCH | & | ANALYSIS 𓃵 (@ROKZANDER) August 3, 2025
⚖️ अमेरिका दबाव और भारत का रुख
पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीद जारी रखी है। अमेरिका ने इस पर अप्रत्यक्ष रूप से नाराजगी जाहिर की है, लेकिन भारत की नीति स्पष्ट है — वह रणनीतिक स्वतंत्रता के सिद्धांत पर काम करता है।
🔹 भारत के आयात बिल में $9-11 बिलियन की संभावित वृद्धि
🔹 इस विषय पर भारत की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया
भारत की विदेश नीति के तहत किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं।
🗳️ चुनावी पृष्ठभूमि और बयान की टाइमिंग
यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका में चुनावी माहौल चल रहा है। विदेश नीति के मुद्दे अक्सर घरेलू राजनीति के उपकरण बन जाते हैं। यह बयान भी एक ऐसी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है, जहां भारत की आलोचना करके घरेलू मतदाताओं को संदेश दिया जा रहा है कि अमेरिका अपने हितों के प्रति प्रतिबद्ध है।
🔹 भारत को कठघरे में खड़ा करना चुनावी रणनीति का हिस्सा
🔹 ट्रंप भारत को पसंद करते हैं, लेकिन प्राथमिकता अमेरिका के हित
यह संतुलन बनाना राजनीतिक रूप से लाभकारी हो सकता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में इसके प्रभाव भी पड़ सकते हैं।
📊 विशेषज्ञ दृष्टिकोण: भारत को क्या करना चाहिए?
विदेश नीति विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बयान भारत के लिए चेतावनी है कि आने वाले समय में अमेरिका का दबाव बढ़ सकता है। हालांकि भारत और अमेरिका के बीच संबंध इतने मजबूत हैं कि वे केवल बयानों के आधार पर नहीं टूटते।
🔹 भारत को अपनी रणनीति को संतुलित करना होगा
🔹 इस बयान से रिश्तों में दूरी नहीं, बल्कि सतर्क संकेत मिलते हैं
भारत को वैश्विक राजनीतिक समीकरणों के बीच अपना स्थान बनाते हुए ऊर्जा सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच संतुलन साधना होगा।
Russia now supplies 45% of India’s crude imports, up from just 3% in 2020. This isn’t a small dependency, it’s a structural shift.
At most, India could replace about 600,000 barrels/day by overpaying Middle Eastern suppliers. The remaining 1–1.5 million barrels/day have no… https://t.co/QOnZB5rKWB pic.twitter.com/NSI6mIdejF
— Anurag (@Jhunjhunuwala_) August 2, 2025
🔚 क्या बढ़ेगा दबाव?
यह बयान एक बार फिर बताता है कि भारत की ऊर्जा नीति केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है। अमेरिका के साथ बेहतर संबंध बनाए रखना भी जरूरी है, लेकिन राष्ट्रीय हितों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
🔹 क्या अमेरिका फिर से भारत पर दबाव बनाएगा?
🔹 भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता कितनी प्रभावी साबित होगी?
📌 लेख पढ़ने के बाद आपकी राय ज़रूर बताएं — क्या भारत को अमेरिका की नाराज़गी की परवाह करनी चाहिए, या अपनी ऊर्जा नीति पर अडिग रहना चाहिए?