भारतीय राजनीति हमेशा से ही अप्रत्याशित फैसलों और अचानक हुए बदलावों के लिए जानी जाती है। लेकिन इस बार भाजपा ने जो किया, उसने सभी को चौंका दिया। उपराष्ट्रपति पद के लिए CP राधाकृष्णन का नाम सामने लाना न केवल NDA सहयोगियों बल्कि विपक्षी दलों के लिए भी अप्रत्याशित कदम साबित हुआ।
अब तक अनुमान लगाया जा रहा था कि जगदीप धनखड़ को दोबारा मौका मिल सकता है। वे वर्तमान उपराष्ट्रपति हैं और अपनी तेजतर्रार और मुखर छवि के लिए जाने जाते हैं। लेकिन भाजपा का रुख अचानक बदल जाना यह संकेत देता है कि पार्टी नई रणनीति के साथ मैदान में है।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह कदम सिर्फ नाम बदलने भर का नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरा राजनीतिक संदेश छुपा है। यह फैसला भाजपा के भविष्य के चुनावी समीकरण और राष्ट्रीय स्तर पर उसकी सोच को दर्शाता है।
CP राधाकृष्णन और जगदीप धनखड़ का राजनीतिक सफर
CP राधाकृष्णन दक्षिण भारत से आने वाले वरिष्ठ भाजपा नेता हैं। वे तमिलनाडु से सांसद रह चुके हैं और कई वर्षों से भाजपा संगठन के साथ जुड़े हुए हैं। राधाकृष्णन की पहचान एक साफ-सुथरे और जमीनी नेता के रूप में रही है। वे जनता के बीच सीधा संवाद बनाने और स्थानीय मुद्दों को उठाने के लिए जाने जाते हैं।
दूसरी ओर, जगदीप धनखड़ ने अपना राजनीतिक सफर वकालत से शुरू किया और फिर धीरे-धीरे राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह बनाई। वे पहले राज्यपाल रहे और फिर उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचे। उनकी छवि एक ऐसे नेता की है जो संसद में खुलकर बोलते हैं और विपक्ष के सवालों का तीखा जवाब देते हैं।
इन दोनों नेताओं की राजनीतिक पृष्ठभूमि बिल्कुल अलग है। जहां धनखड़ का चेहरा राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत है, वहीं राधाकृष्णन को दक्षिण भारत में एक जनप्रिय विकल्प माना जाता है। यही वजह है कि भाजपा का यह चयन और भी दिलचस्प हो गया है।
VIDEO | Lucknow: On NDA picking Maharashtra Governor CP Radhakrishnan as the vice-president candidate, Congress leader Manish Hindvi (@manishhindvi) says, “The problem is not about who they want as Vice President, the real issue is the way they are making governance dance to… pic.twitter.com/RVnzJLeUek
— Press Trust of India (@PTI_News) August 17, 2025
BJP का 180-डिग्री टर्न: चौंकाने वाला फैसला
भाजपा का यह फैसला राजनीतिक गलियारों में “180-डिग्री टर्न” कहा जा रहा है। वजह साफ है—जहां सभी को लग रहा था कि भाजपा निरंतरता बनाए रखते हुए धनखड़ पर भरोसा जताएगी, वहीं पार्टी ने अचानक राधाकृष्णन को आगे कर दिया।
- इस कदम से भाजपा ने यह संदेश दिया है कि वह हमेशा अप्रत्याशित चालें चलने में माहिर है।
- पार्टी यह भी दिखाना चाहती है कि उसके पास नए और अनुभवी दोनों तरह के विकल्प मौजूद हैं।
- विपक्ष और मीडिया दोनों ही इस फैसले को भाजपा की रणनीतिक राजनीति के रूप में देख रहे हैं।
इस फैसले का असर केवल उपराष्ट्रपति पद तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह आने वाले चुनावों और पार्टी की राष्ट्रीय छवि पर भी गहरा प्रभाव डालेगा।
रणनीति के पीछे का राजनीतिक गणित
भाजपा का यह कदम केवल एक नाम बदलने की कवायद नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई स्तरों पर राजनीतिक गणित काम कर रहा है।
- दक्षिण भारत में विस्तार
भाजपा लंबे समय से दक्षिण भारत में अपनी पैठ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। राधाकृष्णन जैसे नेता को आगे लाकर पार्टी ने यह संकेत दिया कि वह तमिलनाडु और आसपास के राज्यों में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहती है।
- जातीय और क्षेत्रीय संतुलन
उत्तर भारत में भाजपा पहले से मजबूत है। अब पार्टी दक्षिण भारत के नेताओं को आगे लाकर क्षेत्रीय संतुलन साध रही है। इससे भाजपा अपनी छवि को राष्ट्रीय संतुलन वाली पार्टी के रूप में प्रस्तुत करना चाहती है।
- आगामी चुनावों की तैयारी
2026 और उसके बाद होने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए भाजपा चाहती है कि उसका हर कदम विपक्ष को चौंकाने वाला और रणनीतिक हो। यह फैसला भी उसी दिशा में एक प्रयास है। - यहाँ एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संदर्भ भी जुड़ता है: हाल ही में Trump–Putin Alaska summit आयोजित हुआ, जहाँ युक्रेन में युद्धविराम को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ, लेकिन शांतिपूर्ण दिशा की एक बड़ी कोशिश की गई—इस कदम ने वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी। (पूरा विवरण आप यहाँ पढ़ सकते हैं)
- यह घटना वैश्विक पृष्ठभूमि में भाजपा के फ्यूचर-फोकस्ड फैसलों को और भी तर्कसंगत बनाती है, क्योंकि किसी भी निर्णय के लिए स्थानीय रणनीति का साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय माहौल भी मायने रखता है।
राधाकृष्णन बनाम धनखड़: जनता और राज्यों पर असर
राधाकृष्णन की छवि एक ऐसे नेता की है जो जनता से सीधे जुड़े रहते हैं। उनकी लोकप्रियता विशेषकर दक्षिण भारत में है, और यह भाजपा को वहां चुनावी लाभ दे सकती है।
वहीं धनखड़ की छवि पहले से ही मजबूत है। उन्होंने उपराष्ट्रपति के रूप में खुद को सक्रिय और सशक्त साबित किया है। लेकिन भाजपा का रुझान अब राधाकृष्णन की ओर झुकना यह दर्शाता है कि पार्टी भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखकर निर्णय ले रही है।
यह बदलाव न केवल नेताओं की छवि से जुड़ा है बल्कि इससे यह भी साफ होता है कि भाजपा अब नई पीढ़ी और नए क्षेत्रों को प्राथमिकता दे रही है।
विपक्ष का रुख और सवाल
भाजपा के इस फैसले पर विपक्ष ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। कई विपक्षी नेताओं ने इसे भाजपा की रणनीतिक असमंजस बताया। उनका कहना है कि पार्टी को धनखड़ पर भरोसा करना चाहिए था, लेकिन उसने अचानक बदलाव करके यह दिखाया कि उसकी भीतरी राजनीति में असंतुलन है।
हालांकि, कुछ विपक्षी दलों ने यह भी माना कि भाजपा का यह कदम चालाकी भरा और दूरगामी है। उनका कहना है कि इससे भाजपा को दक्षिण भारत में चुनावी फायदा मिल सकता है, भले ही फिलहाल यह जोखिम भरा लगे।
आने वाले चुनावों पर संभावित असर
विशेषज्ञ मानते हैं कि भाजपा का यह फैसला आने वाले 2026 के लोकसभा चुनावों और राज्य चुनावों पर बड़ा असर डालेगा।
- अगर भाजपा इस कदम के जरिए दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मजबूत कर पाती है, तो यह उसके लिए रणनीतिक जीत होगी।
- लेकिन अगर जनता इसे केवल एक राजनीतिक प्रयोग मानकर खारिज कर देती है, तो यह पार्टी के लिए नुकसानदेह भी साबित हो सकता है।
यानी यह फैसला भाजपा के लिए दोहरी चुनौती और अवसर दोनों लेकर आया है।
क्या यह कदम BJP के लिए फायदेमंद होगा?
भाजपा का यह फैसला साफ तौर पर दिखाता है कि पार्टी हमेशा नई दिशा में सोचती है और अप्रत्याशित चालें चलती है। अब देखना यह होगा कि राधाकृष्णन की लोकप्रियता और धनखड़ की मौजूदा छवि के बीच भाजपा किस तरह तालमेल बनाती है।
👉 अब सवाल आपके लिए है—क्या आपको लगता है कि भाजपा का यह 180-डिग्री टर्न उसके लिए फायदेमंद होगा या यह एक बड़ा राजनीतिक जोखिम है? अपनी राय नीचे कमेंट में ज़रूर दें।