अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में अमेरिका की नीतियों का असर हमेशा से व्यापक रहा है। खासकर जब मामला टैरिफ यानी व्यापारिक शुल्क का हो, तो इसका सीधा प्रभाव कई देशों की अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलता है। भारत और रूस जैसे देशों के बीच व्यापार लगातार बढ़ा है, लेकिन अमेरिका की टैरिफ नीतियों ने इसमें नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।
भारत की विदेश नीति हमेशा बहु-आयामी रही है। एक ओर अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना जरूरी है, वहीं दूसरी ओर रूस भारत का पुराना और भरोसेमंद सहयोगी रहा है। ऐसे में ट्रंप की टैरिफ नीतियां भारत को बीच का रास्ता निकालने पर मजबूर कर रही हैं।
ट्रंप की टैरिफ नीति और उसका असर
डोनाल्ड ट्रंप जब भी सत्ता में रहे हैं, उनकी आर्थिक नीति “अमेरिका फर्स्ट” पर केंद्रित रही है। इस नीति का सीधा असर अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर पड़ा। भारत जैसे देशों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की वजह से कई सेक्टर प्रभावित हुए, खासकर स्टील और एल्युमिनियम उद्योग।
भारत के लिए चुनौती यह है कि ट्रंप की नीतियां सिर्फ अमेरिका-भारत संबंधों तक सीमित नहीं रहीं। रूस जैसे देशों के साथ व्यापार पर भी इसका असर दिखने लगा। अमेरिका ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हुए हैं। ऐसे में भारत को अमेरिका और रूस के बीच संतुलन साधना पड़ रहा है।
EAM JAISHANKAR in Russia : “We need to work on reducing trade imbalance between Russia, India urgently. Trade deficit is due to Oil buy” pic.twitter.com/EBlZMXEPpF
— Times Algebra (@TimesAlgebraIND) August 20, 2025
भारत से अमेरिका को निर्यात पर बढ़े शुल्क ने प्रतिस्पर्धा घटाई है। वहीं रूस से तेल और गैस खरीदने में भी दबाव देखा गया है। यही वजह है कि टैरिफ पॉलिसी भारत-रूस व्यापार के लिए अहम मुद्दा बन गई है।
भारत-रूस व्यापारिक रिश्ते: वर्तमान स्थिति
भारत और रूस का व्यापार ऐतिहासिक और रणनीतिक दोनों दृष्टिकोण से अहम रहा है। रक्षा सौदों से लेकर ऊर्जा क्षेत्र तक, दोनों देशों के बीच सहयोग लंबे समय से जारी है।
वर्तमान में भारत रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल आयात करता है। रूस के लिए भारत एक बड़ा बाजार है, वहीं भारत के लिए रूस ऊर्जा सुरक्षा का अहम स्रोत है। लेकिन इस बढ़ते व्यापार के बावजूद व्यापार संतुलन (ट्रेड बैलेंस) की समस्या बनी हुई है।
भारत का रूस से आयात निर्यात की तुलना में कहीं अधिक है, जिससे ट्रेड डिफिसिट बढ़ता है। ट्रंप के टैरिफ और पश्चिमी देशों के दबाव ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है।
जयशंकर की रूस यात्रा और मुख्य बिंदु
विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हालिया मास्को यात्रा इसी पृष्ठभूमि में हुई। उन्होंने रूस के नेताओं से मुलाकात कर भारत की चिंताओं को सामने रखा।
जयशंकर ने साफ कहा कि भारत-रूस व्यापार की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो पा रहा है। ऊर्जा के अलावा अन्य क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि निवेश और व्यापार दोनों को नए स्तर पर ले जाने की रणनीति बनानी चाहिए।
रूस ने भी इस बात को स्वीकार किया कि दोनों देशों को वैश्विक दबाव से ऊपर उठकर अपने रिश्तों को और मजबूत करना होगा। यह संकेत देता है कि भारत-रूस साझेदारी सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं, बल्कि व्यापक रणनीतिक दृष्टिकोण का हिस्सा है।
यूरेशियन इकॉनॉमिक यूनियन FTA की अहमियत
भारत और रूस दोनों ही यूरेशियन इकॉनॉमिक यूनियन (EAEU) के फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को लेकर बातचीत कर रहे हैं। यह समझौता अगर जल्दी होता है, तो भारत के लिए कई नए अवसर खुल सकते हैं।
FTA के जरिए भारत रूस और मध्य एशियाई देशों में अपने सामान आसानी से भेज सकेगा। साथ ही, रूस से आयातित वस्तुएं भी सस्ती हो सकती हैं। हालांकि इसके साथ कुछ जोखिम भी हैं, जैसे स्थानीय उद्योग पर दबाव।
फिर भी, विशेषज्ञ मानते हैं कि EAEU FTA भारत-रूस व्यापार को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकता है।
वैश्विक प्रभाव और भारत की रणनीति
अमेरिका, चीन और यूरोप की नीतियां भी भारत-रूस व्यापार पर असर डालती हैं। चीन पहले से ही रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। ऐसे में भारत के सामने चुनौती है कि वह अपनी हिस्सेदारी कैसे बढ़ाए।
ट्रंप के टैरिफ ने भारत को अमेरिका और रूस दोनों के साथ संतुलन बनाने के लिए मजबूर कर दिया है। भारत की रणनीति यह है कि वह किसी एक खेमे में पूरी तरह शामिल न हो, बल्कि बहु-आयामी संबंध बनाए रखे।
यही वजह है कि भारत अमेरिका के साथ भी साझेदारी बढ़ा रहा है और रूस से भी गहरे संबंध बनाए रख रहा है।
भविष्य की संभावनाएं और विकल्प
भारत के लिए सबसे बड़ा विकल्प व्यापार का विविधीकरण है। केवल तेल और गैस पर निर्भर रहने के बजाय तकनीक, दवाइयां और कृषि क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाया जा सकता है।
वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान देना भी जरूरी है। रूस के साथ परमाणु ऊर्जा, अक्षय ऊर्जा और विज्ञान-तकनीकी क्षेत्र में साझेदारी की संभावनाएं हैं।
निवेश को बढ़ावा देकर भारत रूस से अधिक संतुलित व्यापार कर सकता है। इससे दोनों देशों के लिए दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित होगा।
चुनौतियां और अवसर
भारत-रूस व्यापार पर ट्रंप की टैरिफ नीतियों का असर साफ दिख रहा है। हालांकि, चुनौतियों के साथ-साथ अवसर भी मौजूद हैं।
भारत को अमेरिका के साथ अपने रिश्ते संभालने हैं, लेकिन रूस से पुराने और भरोसेमंद संबंधों को भी बनाए रखना है। यही बैलेंस भारत की विदेश नीति की सबसे बड़ी ताकत है।
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि ट्रंप प्रशासन की नीतियां केवल भारत-रूस व्यापार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि अमेरिका की सुरक्षा नीतियों से भी जुड़ी हुई हैं।
हाल ही में इस पर चर्चा भी हुई थी कि अमेरिका यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी देने के लिए एयर सपोर्ट पर विचार कर रहा है, जो भारत की विदेश नीति के लिए भी एक संकेत है।
भारत के लिए यह समय है कि वह अपने व्यापारिक रिश्तों को और मजबूत करे और वैश्विक स्तर पर संतुलन बनाए।