हाल के दिनों में अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाने के फैसले ने वैश्विक व्यापार जगत को हिला दिया है। भारत पर इन टैरिफ का सीधा और अप्रत्यक्ष असर दोनों देखने को मिल रहा है। निर्यातकों के सामने यह चुनौती है कि वे अपने उत्पादों को अमेरिकी बाज़ार तक पहले की तरह पहुँचाएँ या फिर नए रास्ते तलाशें।
यह फैसला सिर्फ व्यापारिक बाधा नहीं है, बल्कि इसने एक पुराने सवाल को भी फिर से सामने ला दिया है—भारत के बाज़ार विकृतियाँ (market distortions)। लंबे समय से भारत में सब्सिडी, टैक्स स्ट्रक्चर और पॉलिसी से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होती रही है, और अब अमेरिकी टैरिफ ने इस बहस को और तेज़ कर दिया है।
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ को लेकर तनाव पहले भी सामने आ चुका है। उस समय भी स्थिति को लेकर असमंजस था, जिस पर हमने अपनी रिपोर्ट ट्रंप कैबिनेट ने अमेरिकी पारस्परिक टैरिफ निर्णय में देरी की थी में विस्तार से चर्चा की थी।
अमेरिकी टैरिफ का भारत पर असर
भारत के लिए अमेरिका एक बड़ा व्यापारिक साझेदार है। टेक्सटाइल, स्टील, फार्मा और एग्रीकल्चर जैसे सेक्टर सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं। कई निर्यातकों ने माना कि यह अचानक लिया गया कदम उनकी सप्लाई चेन और लागत संरचना पर बड़ा दबाव डाल रहा है।
भारतीय स्टील उद्योग पर अतिरिक्त टैरिफ से निर्यात महंगा हो गया है। वहीं टेक्सटाइल और फार्मा सेक्टर को भी नए compliance और लागत का सामना करना पड़ रहा है।
इस परिस्थिति ने भारत के भीतर ही यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारी व्यापारिक नीतियाँ इतनी मज़बूत हैं कि ऐसे झटकों को संभाल सकें?
🚨First major admission comes from Harsh Shringla, RS MP & ex-Ambassador to US:
~ ‘We are looking to DIVERT our Exports from America to other markets’ as Trump’s fresh tariffs hit today.
Clear signal. Bharat won’t KNEEL🎯
pic.twitter.com/kdPaOIpO2o— The Analyzer (News Updates🗞️) (@Indian_Analyzer) August 27, 2025
भारत के बाज़ार विकृतियाँ: पुरानी समस्या फिर हाइलाइट
भारत के बाज़ार ढांचे पर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं।
- सब्सिडी सिस्टम कई बार प्रतिस्पर्धा को असमान बनाता है।
- टैक्स स्ट्रक्चर जटिल होने से विदेशी निवेशक और साझेदार परेशान होते हैं।
- लॉजिस्टिक्स और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमज़ोरियाँ भी निर्यात क्षमता पर असर डालती हैं।
यही वजह है कि अमेरिकी टैरिफ ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। कई विश्लेषक मानते हैं कि यदि भारत को लंबे समय तक वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी रहना है, तो इन विकृतियों को दूर करना बेहद ज़रूरी है।
निर्यातकों की रणनीतियाँ: वर्कअराउंड और रिलोकेशन
अमेरिकी बाज़ार पर निर्भर रहने के बजाय भारतीय निर्यातक अब वर्कअराउंड और रिलोकेशन रणनीतियों की ओर बढ़ रहे हैं।
- सप्लाई चेन डाइवर्सिफिकेशन: कई कंपनियाँ दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरोप जैसे नए बाज़ारों में प्रवेश कर रही हैं।
- नए बाज़ार तलाशना: अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में निर्यात की संभावनाएँ देखी जा रही हैं।
- प्रोडक्शन शिफ्ट: कुछ कंपनियाँ अपनी यूनिट्स उन देशों में लगाने की सोच रही हैं जहाँ टैरिफ का दबाव कम है।
- MSMEs बनाम बड़े निर्यातक: जहाँ बड़ी कंपनियाँ relocation कर सकती हैं, वहीं छोटे निर्यातक स्थानीय वर्कअराउंड ढूँढ रहे हैं, जैसे लागत घटाने और value addition बढ़ाने पर ज़ोर।
सरकार की भूमिका और संभावित कदम
भारत सरकार के सामने दोहरी चुनौती है।
- अमेरिकी टैरिफ पर कूटनीतिक स्तर पर बातचीत
- घरेलू स्तर पर सुधार
सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ और PLI स्कीम जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनका मकसद भारतीय उद्योगों को आत्मनिर्भर और प्रतिस्पर्धी बनाना है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर टैक्स सुधार और नीति पारदर्शिता पर तेज़ी से काम न हुआ, तो ऐसे टैरिफ झटकों से उबरना मुश्किल होगा।
US has put new tariffs on many Indian exports. This will affect different sectors in different ways:
Pharma & Solar panels → Neutral impact
Textiles, Agriculture, Smartphones → Slightly positive
Gems & Jewellery, Chemicals, Auto parts, Aluminium → Negative impact
Steel →… pic.twitter.com/5YA84VAzQL
— Swapnil Kommawar (@KommawarSwapnil) August 27, 2025
वैश्विक परिदृश्य और व्यापारिक रिश्तों पर असर
भारत और अमेरिका के रिश्ते सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं हैं। दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी भी मज़बूत है। इसके बावजूद टैरिफ जैसे कदम रिश्तों में तनाव पैदा करते हैं।
दूसरी ओर, भारत को रूस, चीन और यूरोप जैसे अन्य साझेदारों के साथ भी संतुलन साधना पड़ रहा है। वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की भूमिका लगातार बढ़ रही है और यही वजह है कि छोटे बदलाव भी दूरगामी असर डालते हैं।
विशेषज्ञों की राय और भविष्य की संभावनाएँ
कई आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि भारतीय निर्यातकों को अब सिर्फ अमेरिकी बाज़ार पर निर्भर रहने की बजाय विविधीकरण करना होगा। आने वाले समय में अगर भारत अपने घरेलू बाज़ार को मज़बूत करता है और सुधारों पर ध्यान देता है, तो यह टैरिफ संकट भी एक अवसर में बदल सकता है।
भारत के लिए सबक और आगे का रास्ता
अमेरिकी टैरिफ ने यह साफ कर दिया है कि भारत को अपनी बाज़ार विकृतियों को दूर करना होगा। निर्यातकों ने वर्कअराउंड और रिलोकेशन के रास्ते तलाशने शुरू कर दिए हैं, लेकिन दीर्घकालीन समाधान तभी संभव है जब नीतियों में सुधार किया जाए।
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