भारत की अर्थव्यवस्था में जीएसटी काउंसिल की बैठकों को बेहद अहम माना जाता है, क्योंकि यहीं पर केंद्र और राज्य मिलकर टैक्स से जुड़ी नीतियों का फैसला करते हैं। ताज़ा बैठक में सबसे बड़ा मुद्दा विपक्ष शासित राज्यों की उस मांग को लेकर सामने आया, जिसमें उन्होंने राजस्व सुरक्षा (Revenue Protection) और एक नए मुआवज़ा प्लान की ज़रूरत पर जोर दिया। राज्यों का कहना है कि पिछले मुआवज़ा प्लान खत्म होने के बाद उनकी आय पर दबाव बढ़ गया है और इससे विकास योजनाओं पर असर पड़ रहा है।
विपक्षी राज्यों की बड़ी मांग
बैठक में कई विपक्ष शासित राज्यों ने साफ कहा कि अगर केंद्र सरकार उनकी राजस्व सुरक्षा की गारंटी नहीं देती तो आगे चलकर राज्य स्तर पर बजट संतुलन मुश्किल हो जाएगा। राज्यों ने यह भी ज़िक्र किया कि 2017 में जीएसटी लागू करते समय उन्हें आश्वासन दिया गया था कि पहले पाँच साल तक राजस्व घाटे की भरपाई की जाएगी। यह अवधि 2022 में पूरी हो गई और उसके बाद मुआवज़ा बंद हो गया।
राज्यों का कहना है कि महामारी और आर्थिक सुस्ती के कारण उनकी कमाई अभी भी स्थिर नहीं हो पाई है। ऐसे में एक नए compensation mechanism की ज़रूरत है।
केंद्र सरकार का रुख
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस मुद्दे पर कहा कि केंद्र सरकार राज्यों की चिंता समझती है, लेकिन अब टैक्स ढांचे को और सरल बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है। बैठक में दो स्लैब वाले टैक्स स्ट्रक्चर का प्रस्ताव भी रखा गया, ताकि टैक्स सिस्टम को आसान बनाया जा सके।
केंद्र ने यह भी कहा कि राज्यों को अपने आंतरिक संसाधनों पर अधिक ध्यान देना चाहिए और नए निवेश को बढ़ावा देना चाहिए। हालांकि, राज्यों का मानना है कि टैक्स सुधारों के साथ-साथ राजस्व सुरक्षा भी उतनी ही ज़रूरी है।
राज्यों के सामने चुनौतियाँ
राज्यों की प्रमुख चिंता यह है कि जीएसटी से पहले वे अलग-अलग कर लगाकर पर्याप्त राजस्व जुटा लेते थे। जीएसटी लागू होने के बाद उनकी आय केंद्र पर निर्भर हो गई। अब जब compensation cess बंद हो चुका है, तो राज्य शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसी योजनाओं पर खर्च करने में दबाव महसूस कर रहे हैं।
यही तरह की प्रक्रिया संबंधी चुनौतियाँ हाल ही में चुनावी शिकायतों में भी दिखीं, जब कांग्रेस ने बिहार में 89 लाख मतदाता शिकायतों दर्ज कराने का दावा किया था और निर्वाचन अधिकारी ने प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे। यह बताता है कि चाहे वित्तीय हो या लोकतांत्रिक ढांचा—पारदर्शिता और भरोसा, दोनों ही बेहद ज़रूरी हैं।
✊🏾 Without protecting State revenues, #GST reforms cannot serve the people.
▶ Hon’ble Finance Ministers of eight Opposition ruled States met in Delhi to deliberate on the Union Govt’s proposed GST rate rationalisation.
▶ While welcoming the intent of reform, we stressed that… pic.twitter.com/OVeYVMUNt8
— M.K.Stalin (@mkstalin) August 29, 2025
पिछला बैकग्राउंड
2017 में जब जीएसटी लागू हुआ तो केंद्र ने आश्वासन दिया था कि 14% की वार्षिक वृद्धि दर के हिसाब से राजस्व की गारंटी दी जाएगी। इस अंतर को पूरा करने के लिए जीएसटी मुआवज़ा उपकर (Compensation Cess) लगाया गया। यह योजना जुलाई 2022 तक चली।
लेकिन योजना खत्म होने के बाद राज्यों को अब अपने राजस्व की भरपाई खुद करनी पड़ रही है। महामारी और वैश्विक आर्थिक संकट ने स्थिति और कठिन बना दी। यही कारण है कि अब फिर से मुआवज़ा देने की चर्चा तेज हो गई है।
उपभोक्ता और बाज़ार पर असर
अगर राज्यों को राजस्व सुरक्षा नहीं मिली तो इसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर पड़ सकता है। राज्यों को अपने बजट संतुलन के लिए स्थानीय टैक्स बढ़ाने पड़ सकते हैं, जिससे मुद्रास्फीति (Inflation) का खतरा बढ़ेगा।
साथ ही, बुनियादी ढांचे के प्रोजेक्ट धीमे पड़ सकते हैं। यह स्थिति निवेशकों के भरोसे को भी प्रभावित कर सकती है। लंबे समय में इसका असर पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर दिखाई देगा।
आगे का रास्ता
काउंसिल की बैठक में इस मुद्दे पर कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया, लेकिन चर्चा जारी रखने पर सहमति बनी। उम्मीद है कि आने वाले महीनों में केंद्र और राज्य मिलकर कोई साझा समाधान निकालेंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि राज्यों की चिंता को नजरअंदाज किया गया तो यह सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) की भावना को कमजोर कर सकता है।
विशेषज्ञों का विश्लेषण
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि केंद्र और राज्यों के बीच भरोसे का रिश्ता बनाए रखना बेहद ज़रूरी है। टैक्स सुधार जरूरी हैं लेकिन उनके साथ राज्यों की वित्तीय सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी होगी।
कई विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि नए टैक्स स्लैब की बजाय पहले compensation framework को फिर से लागू करना चाहिए। इससे राज्यों को स्थिरता मिलेगी और वे अपनी विकास योजनाओं को आगे बढ़ा पाएंगे।
पाठकों की राय
जीएसटी काउंसिल की बैठक ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि केंद्र और राज्य दोनों को मिलकर ही अर्थव्यवस्था का संतुलन बनाए रखना होगा। विपक्षी राज्यों की मांगें जहां जायज़ दिखती हैं, वहीं केंद्र के लिए भी टैक्स सुधार जरूरी हैं।
अब देखना यह होगा कि आने वाले समय में इस मुद्दे पर क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं।
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