उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग से जुड़ा यह मामला पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गया है। छह अलग-अलग लोगों ने एक ही नाम ‘अर्पित सिंह’ से X-ray तकनीशियन की सरकारी नौकरी हासिल की और यह फर्जीवाड़ा लगातार नौ साल तक चलता रहा।
जांच में सामने आया कि इन नियुक्तियों में न सिर्फ फर्जी दस्तावेज़ों का इस्तेमाल हुआ, बल्कि विभागीय स्तर पर इतनी बड़ी गड़बड़ी को लंबे समय तक कोई पकड़ ही नहीं पाया। यह घटना दिखाती है कि सिस्टम में कितनी बड़ी खामियां हैं।
कैसे हुआ खुलासा
फर्जीवाड़े का पर्दाफाश तब हुआ जब विभागीय स्तर पर कर्मचारियों के रिकॉर्ड की जांच शुरू की गई।
- अलग-अलग जिलों से आए दस्तावेज़ों में सभी कर्मचारियों का नाम ‘अर्पित सिंह’ पाया गया।
- पहचान पत्र और शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में भी गड़बड़ी की आशंका जताई गई।
- अस्पतालों ने यह मानकर नियुक्ति दी थी कि दस्तावेज़ असली हैं, लेकिन समय पर सत्यापन नहीं हुआ।
जांच में यह तथ्य सामने आया कि वर्षों तक वेतन निकालने और तैनाती बदलने के बावजूद किसी अधिकारी को शक नहीं हुआ।
नौ साल तक कैसे चला फर्जीवाड़ा
यह सवाल सबसे अहम है कि आखिर इतने लंबे समय तक यह खेल कैसे चलता रहा।
- नियुक्ति प्रक्रिया में डिजिटल वेरिफिकेशन की कमी थी।
- अलग-अलग जिलों के अस्पतालों के पास डेटा साझा करने का कोई सिस्टम नहीं था।
- HR विभाग मैनुअल रिकॉर्ड और दस्तावेज़ों पर ही भरोसा करता रहा।
- हर नियुक्त व्यक्ति अलग जिले में था, इसलिए स्थानीय स्तर पर गड़बड़ी पकड़ना मुश्किल हो गया।
इन्हीं खामियों का फायदा उठाकर छह लोग वर्षों तक सरकारी नौकरी का लाभ उठाते रहे।
बड़ा खुलासा :
सपा सरकार 2016 में कैसे एक ही व्यक्ति को 6 जगह नौकरी दी गई सुनो… FIR दर्ज हो गयी है?
सपा सरकार में अर्पित सिंह को 6 जगह एक्सरे टेक्नीशियन की नौकरी दे दी गयी? pic.twitter.com/5iVEDcb6aM
— Sudhir Mishra 🇮🇳 (@Sudhir_mish) September 8, 2025
जांच में सामने आए तथ्य
जांच टीम ने जब गहराई से रिकॉर्ड खंगाले तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
- सभी नियुक्ति पत्र फर्जी पाए गए।
- नौ साल तक नियमित वेतन और भत्ते जारी किए गए।
- विभाग ने सभी रिकॉर्ड जब्त कर लिए हैं और कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
सूत्रों के अनुसार, यह भी आशंका जताई जा रही है कि इस घोटाले में भीतर के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत हो सकती है।
आर्थिक नुकसान और असर
इस घोटाले से राज्य सरकार को सीधा आर्थिक नुकसान हुआ।
- नौ साल तक छह लोगों को वेतन और अन्य सुविधाएँ दी गईं।
- करोड़ों रुपये सरकारी खजाने से निकल गए।
- असली और योग्य उम्मीदवार नौकरी से वंचित रह गए।
- अस्पतालों की सेवाएँ भी प्रभावित हुईं क्योंकि कई जगह तकनीकी स्टाफ की कमी बनी रही।
अधिकारियों की लापरवाही
जांच रिपोर्ट के बाद अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
- अस्पताल प्रशासन ने नियुक्ति पत्र और पहचान दस्तावेजों का समय पर सत्यापन नहीं किया।
- विभागीय अफसरों ने नियमित ऑडिट और जांच को गंभीरता से नहीं लिया।
- अब कई अधिकारी भी जांच के दायरे में आ गए हैं और जिम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
यह घोटाला दिखाता है कि जब प्रशासन समय पर कार्रवाई नहीं करता तो सिस्टम में गंभीर खामियाँ लंबे समय तक छिपी रह जाती हैं। इसी तरह हाल ही में उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी प्रशासनिक सख्ती देखने को मिली, जब कोर्ट ने मंत्री दया शंकर सिंह के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। ऐसे मामलों से साफ है कि चाहे स्वास्थ्य विभाग हो या राजनीतिक तंत्र, जवाबदेही सुनिश्चित करना अब बेहद ज़रूरी हो गया है।
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UP में 1 व्यक्ति 6 जगह नौकरी कर रहा है !! 🤔
उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग में अर्पित नामक एक्सरे टेक्नीशियन 6 जिलों में नौकरी कर रहा है बेरोजगार युवकों को 1 नौकरी मिलती नही है वहीं वर्ष 2016 से अर्पित सिंह के नियुक्ति पत्र पर छह अलग-अलग जिलों में से अलग-अलग लोग नौकरी कर रहे हैं… pic.twitter.com/wDxuElsfdZ
— Dr.Ahtesham Siddiqui (@AhteshamFIN) September 5, 2025
सुधार की ज़रूरत
यह मामला स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है।
- नियुक्तियों के लिए डिजिटल वेरिफिकेशन और बायोमेट्रिक सिस्टम अनिवार्य होना चाहिए।
- कर्मचारियों का centralized database बनना जरूरी है ताकि एक नाम से कई नौकरियाँ न हो सकें।
- समय-समय पर थर्ड-पार्टी ऑडिट किया जाए ताकि ऐसी गड़बड़ी जल्द पकड़ में आ सके।
जनता और मरीजों की प्रतिक्रिया
स्थानीय लोगों और मरीजों ने इस घोटाले पर नाराजगी जताई है।
- लोगों का कहना है कि अस्पतालों पर पहले से ही भरोसा कम है और इस घटना ने स्थिति और खराब कर दी है।
- मरीजों का कहना है कि अगर सिस्टम में ऐसे फर्जी लोग काम कर रहे थे तो इलाज की गुणवत्ता पर भी असर पड़ा होगा।
- कई लोगों ने इसे सरकारी तंत्र की असफलता करार दिया है।
निष्कर्ष
नौ साल तक चला यह फर्जीवाड़ा स्वास्थ्य विभाग की गंभीर खामियों को उजागर करता है। इससे सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ, जनता का भरोसा टूटा और असली उम्मीदवारों का हक मारा गया।
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या भविष्य में आधुनिक सिस्टम और सख्त कार्रवाई से ऐसे मामले पूरी तरह रोके जा सकेंगे।
पाठकों से सवाल: क्या आपको लगता है कि डिजिटल वेरिफिकेशन और बायोमेट्रिक सिस्टम इस तरह की धोखाधड़ी को रोक पाएंगे? अपनी राय कमेंट में ज़रूर दें।