पंजाब के औद्योगिक इतिहास में एक लंबा विवाद आखिरकार खत्म हो गया है। साल 1999 में पंजाब लेदर कॉरपोरेशन के कई कर्मचारियों को अचानक नौकरी से निकाल दिया गया था। इस फैसले के खिलाफ कर्मचारियों ने कानूनी लड़ाई लड़ी, जो पूरे 26 साल चली। अब पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने इन बर्खास्त कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाकर उन्हें बड़ी राहत दी है।
यह निर्णय सिर्फ प्रभावित कर्मचारियों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी सरकारी और अर्ध-सरकारी संस्थाओं में काम करने वाले लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है। न्याय में देरी हुई, लेकिन आखिरकार मिला।
पंजाब लेदर कॉरपोरेशन का परिचय
पंजाब लेदर कॉरपोरेशन की स्थापना का उद्देश्य राज्य में चमड़ा उद्योग को बढ़ावा देना और रोजगार के नए अवसर पैदा करना था। इस संस्थान के माध्यम से न केवल स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ा, बल्कि चमड़ा उत्पादों के निर्यात में भी योगदान मिला।
शुरुआती वर्षों में यह कॉरपोरेशन काफी सक्रिय रहा, लेकिन समय के साथ आर्थिक चुनौतियों, बाजार में प्रतिस्पर्धा और प्रबंधन की कठिनाइयों के कारण इसका प्रदर्शन प्रभावित होने लगा। यही वह दौर था जब संस्थान ने लागत कम करने के लिए कठोर कदम उठाने शुरू किए।
1999 की छंटनी – विवाद की शुरुआत
साल 1999 में अचानक कई कर्मचारियों को सेवा से हटा दिया गया। प्रबंधन का तर्क था कि कंपनी वित्तीय संकट से गुजर रही है और उसे लागत में कटौती करनी पड़ रही है।
इस छंटनी में शामिल कई कर्मचारी वर्षों से सेवा दे रहे थे। इन कर्मचारियों का मानना था कि यह निर्णय मनमाना और अन्यायपूर्ण था, क्योंकि बिना उचित कारण और प्रक्रिया के उन्हें बाहर किया गया। छंटनी के तुरंत बाद कर्मचारियों ने एकजुट होकर कानूनी रास्ता अपनाने का फैसला किया।
पंजाब लेदर कॉर्पोरेशन के वो पूर्व कर्मचारी, जिन्हें 1992 की absorption पॉलिसी के तहत दूसरे विभागों में नहीं भेजा गया था, अंततः उच्च न्यायालय से राहत पा गए।https://t.co/Lrlcqm40Pf#PunjabLeatherStaff #HighCourtRelief #JusticeAfter26Years #LaborRightsIndia pic.twitter.com/piePTrF4yF
— Zee Hulchul (@zeehulchul) August 13, 2025
कानूनी लड़ाई – सालों का संघर्ष
कर्मचारियों ने सबसे पहले श्रम न्यायालय और फिर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। इस दौरान कई बार सुनवाई टली, सरकार बदली, और नीतियों में परिवर्तन हुआ।
26 वर्षों तक इस मामले की सुनवाई होती रही। इस लंबे अंतराल में कई कर्मचारी रिटायर हो गए, कुछ की मृत्यु हो गई, लेकिन उनके परिवार ने लड़ाई जारी रखी।
कर्मचारियों का तर्क था कि उन्हें बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के निकाला गया, जो श्रम कानूनों के खिलाफ है।
हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मामले की गहन सुनवाई के बाद कहा कि छंटनी के समय उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। कोर्ट ने आदेश दिया कि प्रभावित कर्मचारियों को मुआवजा और अन्य लाभ दिए जाएं।
मुख्य बिंदु:
- छंटनी को अवैध करार दिया गया
- प्रभावित कर्मचारियों को मुआवजा देने का आदेश
- सेवा अवधि के आधार पर भुगतान की गणना
यह फैसला उन सभी श्रमिकों के लिए एक मजबूत संदेश है जो मनमानी छंटनी के खिलाफ आवाज उठाते हैं।
फैसले के बाद की संभावित कार्रवाई
अब राज्य सरकार और संबंधित विभाग को हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार कदम उठाने होंगे। इसमें मुआवजे की राशि का निर्धारण और उसका समय पर वितरण शामिल है।
इसके अलावा, इस फैसले के बाद भविष्य में किसी भी विभाग द्वारा छंटनी करने से पहले कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने की संभावना बढ़ जाएगी।
पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई
हादसे की सूचना मिलते ही पुलिस और स्थानीय प्रशासन की टीमें मौके पर पहुंचीं। क्रेन और गैस कटर की मदद से गाड़ी में फंसे लोगों को बाहर निकाला गया। इस दौरान अधिकारी यह भी सुनिश्चित कर रहे थे कि जांच प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी हो, ठीक वैसे ही जैसे हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जेल अधिकारी की दोषसिद्धि बरकरार रखी थी।
घायलों को एंबुलेंस के जरिए तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया और ड्राइवर के खिलाफ लापरवाही से मौत का मामला दर्ज किया गया।
लेबर राइट्स पर व्यापक दृष्टिकोण
भारत में श्रमिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं। लेकिन अक्सर इनका पालन सही तरीके से नहीं किया जाता।
यह मामला इस बात का उदाहरण है कि अगर कर्मचारी एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ें, तो देर से ही सही, न्याय मिल सकता है।
जनता और सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
फैसले के बाद प्रभावित परिवारों और उनके समर्थकों में खुशी की लहर है। सोशल मीडिया पर भी इस निर्णय का स्वागत किया जा रहा है। कई लोगों का कहना है कि यह फैसला न केवल कर्मचारियों के लिए, बल्कि न्याय व्यवस्था में भरोसा बढ़ाने वाला है।
न्याय में देरी, लेकिन इनकार नहीं
26 साल बाद आए इस फैसले ने साबित किया कि कानून की नजर में हर व्यक्ति समान है, चाहे मामला कितना भी पुराना क्यों न हो। यह घटना आने वाले समय में श्रमिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक मिसाल के तौर पर याद रखी जाएगी।