भारत और चीन के रिश्ते पिछले कुछ वर्षों से तनाव की स्थिति में रहे हैं, खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में। ऐसे समय में जब दोनों देशों के बीच विश्वास की बहाली की जरूरत है, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट एक ऐसा मंच बना जहाँ बातचीत की गुंजाइश बनी। इसी मौके पर भारत के रक्षा मंत्री ने चीन को एक स्पष्ट और सधा हुआ संदेश दिया।
🟢 SCO समिट की भूमिका: सामूहिक सुरक्षा का साझा मंच
SCO समिट महज़ एक औपचारिक मंच नहीं बल्कि एशियाई देशों के बीच संवाद और सहयोग को गहरा करने का एक अवसर है। इस वर्ष की बैठक में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। इसमें सदस्य देशों के आपसी संबंधों के साथ-साथ क्षेत्रीय शांति बनाए रखने पर भी जोर रहा।
Held talks with Admiral Don Jun, the Defence Minister of China, on the sidelines of SCO Defence Minitsers’ Meeting in Qingdao. We had a constructive and forward looking exchange of views on issues pertaining to bilateral relations.
Expressed my happiness on restarting of the… pic.twitter.com/dHj1OuHKzE
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) June 27, 2025
🟢 भारत-चीन बैठक: कूटनीतिक सलीके से सख्त संकेत
इस सम्मेलन की सबसे अहम बात रही भारत और चीन के रक्षा मंत्रियों की द्विपक्षीय बैठक। दोनों देशों के बीच यह संवाद सौहार्द्रपूर्ण लेकिन गंभीर रहा। भारत की ओर से साफ कर दिया गया कि संबंधों को बिगाड़ने वाली नई जटिलताओं से हर हाल में बचना चाहिए।
रक्षा मंत्री ने कहा कि सीमा पर अमन और स्थिरता दोनों देशों के रिश्तों की बुनियाद हैं। जब तक सीमाओं पर शांति कायम नहीं होगी, तब तक आपसी विश्वास संभव नहीं है। यह बयान सीधे तौर पर संकेत करता है कि भारत अब किसी भी तरह की अस्पष्टता या आक्रामकता को नजरअंदाज नहीं करेगा।
🟢 मानसरोवर यात्रा: आस्था और रणनीति का संगम
बैठक में एक और अहम पहलू था — कैलाश मानसरोवर यात्रा का जिक्र। यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि कूटनीतिक नजरिए से भी अहम माना जाता है। भारत की ओर से इस यात्रा की सुविधा को फिर से शुरू करने की बात उठाई गई। यह मुद्दा आम लोगों की आस्था से जुड़ा होने के साथ-साथ दो देशों के बीच संपर्क बहाल करने का भी प्रतीक हो सकता है।
🟢 भारत का रुख: स्पष्ट, सशक्त और गरिमामय
भारत ने बातचीत में किसी भी तरह की टालमटोल से परहेज़ किया। रक्षा मंत्री ने चीन को साफ बताया कि किसी भी तरह का टकराव या भ्रम दोनों देशों के लिए हानिकारक होगा। संवाद और शांति ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।
उन्होंने इस दौरान यह भी दोहराया कि भारत किसी भी परिस्थिति में अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से कोई समझौता नहीं करेगा। यह संदेश संकेत करता है कि भले ही भारत बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन राष्ट्रीय हितों की कीमत पर नहीं।
🟢 संयुक्त वक्तव्य पर भारत की असहमति: क्यों नहीं किया समर्थन?
SCO समिट में चीन द्वारा तैयार किए गए संयुक्त वक्तव्य में कुछ ऐसे बिंदु शामिल थे जिन्हें लेकर भारत असहमत रहा। खासतौर पर जिन विषयों में भारत के दृष्टिकोण को पूरी तरह से जगह नहीं मिली, उन पर भारत ने हस्ताक्षर नहीं किए।
इससे पहले भी भारत ने SCO के एक अन्य संयुक्त वक्तव्य को ठुकरा दिया था, जिसमें बलूचिस्तान और पहलगाम जैसे संवेदनशील मुद्दों का ज़िक्र किया गया था। इसपर अधिक जानकारी के लिए आप यह विस्तृत रिपोर्ट पढ़ सकते हैं।
यह दर्शाता है कि भारत अब वैश्विक मंचों पर केवल उपस्थिति दर्ज कराने के बजाय नीतिगत स्पष्टता और राष्ट्रीय स्वाभिमान को प्राथमिकता दे रहा है।
🟢 चीन की प्रतिक्रिया: सतर्क लेकिन लचीली भाषा
बैठक में चीन की ओर से भी सौम्यता दिखाई दी। बातचीत को “रचनात्मक और सकारात्मक” बताया गया। हालांकि, कोई ठोस प्रतिबद्धता नहीं दी गई, लेकिन यह साफ हुआ कि चीन भारत के सुर में सुर मिलाकर रिश्तों को सुधारने का इच्छुक है — या कम से कम ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहा है।
🟢 भविष्य की दिशा: क्या यह एक नए संवाद का आरंभ है?
यह बैठक दिखाती है कि दोनों देशों के पास अब भी डायलॉग का चैनल खुला है। हालांकि, असली परीक्षा सीमा पर व्यवहार में बदलाव की होगी। भारत की तरफ से जो रुख सामने आया है, वह ना केवल दृढ़ता का प्रतीक है बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की बढ़ती भूमिका का संकेत भी देता है।
🟢 सशक्त कूटनीति, संयमित संप्रेषण
भारत ने इस बैठक में जो भाषा और लहजा अपनाया, वह ना आक्रामक था और ना ही नरम। यह संतुलन दर्शाता है कि भारत अब केवल प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं रहा, बल्कि नीति-निर्माता और दिशा देने वाला देश बन चुका है। भारत ने यह साफ कर दिया है कि शांति की राह संवाद से होकर जाती है, लेकिन अगर कोई भ्रम फैलाने की कोशिश करेगा, तो भारत चुप नहीं बैठेगा।