कोल्हापुर के लिए 18 अगस्त 2025 एक ऐतिहासिक दिन होगा। बॉम्बे हाई कोर्ट की पांचवीं बेंच अब यहां स्थापित की जा रही है, जिससे न्याय की पहुंच सीधे तौर पर लोगों के द्वार तक आएगी। लगभग 40 वर्षों से इस बेंच की मांग की जा रही थी, जो अब जाकर पूरी हो रही है। यह बेंच पश्चिम महाराष्ट्र, कोंकण और आसपास के जिलों को बड़ी राहत देगी, जहां अब तक केस की सुनवाई के लिए मुंबई या अन्य दूर के शहरों में जाना पड़ता था।
यह कदम देश की न्यायिक प्रणाली में विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्तर पर न्याय सुलभता बढ़ाने की दिशा में अहम माना जा रहा है।
बॉम्बे हाई कोर्ट की अब तक की बेंचें
बॉम्बे हाई कोर्ट की मुख्य पीठ मुंबई में है। इसके अलावा, तीन और खंडपीठें पहले से मौजूद हैं:
- नागपुर (1936 से)
- औरंगाबाद (1981 से)
- पणजी (गोवा) (1982 से)
इन बेंचों के माध्यम से राज्य के विभिन्न हिस्सों में न्याय व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाया जाता है। हालाँकि, पश्चिम महाराष्ट्र और दक्षिण कोकण क्षेत्र के लोग अब भी काफी दूर तक यात्रा करके न्याय प्राप्त करते हैं। इसीलिए कोल्हापुर में नई बेंच की स्थापना का फैसला बेहद अहम है।
यह निर्णय भारत की न्यायपालिका को और व्यवस्थित तथा लोक-केंद्रित बनाएगा।
#BigBreaking: Bombay High Court to get its fourth bench at Kolhapur district in Maharashtra from August 18, 2025. #BombayHighCourt #KolhapurBench pic.twitter.com/Le97APV4G4
— Live Law (@LiveLawIndia) August 1, 2025
कोल्हापुर में पांचवीं बेंच: क्यों है यह कदम ऐतिहासिक?
कोल्हापुर, जो कि सांगली, सातारा, रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग जैसे जिलों का न्यायिक केंद्र बनने जा रहा है, लंबे समय से हाई कोर्ट बेंच की मांग कर रहा था। यहाँ के वकील, सामाजिक संगठन और स्थानीय जनप्रतिनिधि 1981 से इस मुद्दे को उठाते आ रहे थे।
यह इलाका न केवल भूगोलिक रूप से विविध है बल्कि इसमें केस लोड भी लगातार बढ़ता रहा है। लोगों को अब तक मुंबई या औरंगाबाद तक जाना पड़ता था, जिससे न सिर्फ आर्थिक बोझ बढ़ता था बल्कि समय और ऊर्जा भी खर्च होती थी।
बेंच बनने से:
- सुनवाई की गति तेज होगी
- स्थानीय न्याय सुलभ होगा
- वकीलों को नया प्लेटफार्म मिलेगा
- युवा कानून छात्रों के लिए भी अवसर बढ़ेंगे
इस निर्णय को प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी एक बड़ी पहल माना जा रहा है, जैसे कि हाल ही में उत्तर प्रदेश में एस.पी. गोयल को मुख्य सचिव बनाए जाने का फैसला जो प्रशासनिक दक्षता का प्रतीक है।
40 वर्षों की लंबी कानूनी लड़ाई
1981 में औरंगाबाद और 1982 में गोवा में बेंच बनने के बाद ही कोल्हापुर में भी इसकी मांग शुरू हुई। वकीलों ने कई बार हड़तालें, प्रदर्शन और ज्ञापन सौंपे। कई मामलों में जनहित याचिकाएं भी दायर की गईं।
स्थानीय बार एसोसिएशन, नेताओं और समाजसेवियों ने इस दिशा में लगातार कोशिशें कीं। मांग केवल कानूनी नहीं बल्कि जनहित से जुड़ी सामाजिक मांग बन गई थी।
महाराष्ट्र सरकार, भारत के कानून मंत्रालय, और सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से विचार-विमर्श के बाद इस फैसले पर मुहर लगी।
यह भी माना जा रहा है कि यह निर्णय आने वाले समय में अन्य राज्यों को भी प्रेरित करेगा जहाँ आज भी केवल एक हाई कोर्ट बेंच है।
बेंच का कार्यक्षेत्र और उद्घाटन की तैयारियाँ
कोल्हापुर बेंच 18 अगस्त से “सर्किट बेंच” के तौर पर काम शुरू करेगी। इसका कार्यक्षेत्र निम्न जिलों तक सीमित होगा:
- कोल्हापुर
- सातारा
- सांगली
- रत्नागिरी
- सिंधुदुर्ग
शुरुआत में बेंच प्रयोगात्मक तौर पर कुछ सप्ताहों के लिए काम करेगी, ताकि आवश्यक लॉजिस्टिक्स और व्यवस्था को परखा जा सके। इसके बाद इसे स्थायी बेंच का दर्जा देने पर विचार किया जाएगा।
स्थानीय प्रशासन ने कोर्ट परिसर के लिए अस्थायी भवन तय किया है। न्यायाधीशों की नियुक्ति, कर्मचारी व्यवस्थाएं और सुरक्षा इंतजामों को लेकर तेजी से काम हो रहा है।
The new Bombay High Court bench in Kolhapur will begin from August 18.
A big relief for citizens of Satara, Sangli, Sindhudurg, Ratnagiri, Solapur, and Kolhapur faster and easier access to justice.
A landmark reform by the Maharashtra government under CM Fadnavis.@Dev_Fadnavis pic.twitter.com/hRQ5w0KHqI
— Sanatanii (@Sanatanii_) August 2, 2025
जनता और वकीलों को क्या लाभ होगा?
इस बेंच के शुरू होने से न केवल वकीलों को नए केसों पर काम करने का अवसर मिलेगा, बल्कि आम नागरिकों को भी कई फायदे होंगे:
- मुंबई की यात्रा से छुटकारा
- फीस, रहन-सहन और दस्तावेजी कार्यों में कमी
- तत्काल सुनवाई का मौका
- स्थानीय भाषा और संदर्भों में सुनवाई
इससे ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों के लोगों को भी न्याय के लिए समान अवसर मिल सकेंगे।
वकीलों, संगठनों और नेताओं की प्रतिक्रियाएं
कोल्हापुर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने इसे “जनता की जीत” बताया। कई वरिष्ठ वकीलों ने कहा कि इससे महाराष्ट्र में न्याय प्रणाली में संतुलन आएगा।
राज्य सरकार और केंद्र के अधिकारियों ने भी बेंच की मंजूरी को संवैधानिक दायित्व की पूर्ति बताया।
कुछ प्रमुख वकीलों ने सुझाव दिया कि अब इसे स्थायी बेंच के तौर पर जल्द मान्यता देनी चाहिए, ताकि स्थिरता और भरोसे को बढ़ावा मिले।
भविष्य की दिशा और संभावित चुनौतियाँ
हालांकि यह फैसला स्वागतयोग्य है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ अब भी बाकी हैं:
- स्थायी बेंच के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण
- पर्याप्त संख्या में जजों और स्टाफ की नियुक्ति
- डिजिटल केस मैनेजमेंट सिस्टम का समावेश
इन बिंदुओं पर भविष्य में ध्यान देना होगा, ताकि यह बेंच सफलतापूर्वक कार्य कर सके।
निष्कर्ष
कोल्हापुर में बॉम्बे हाई कोर्ट की बेंच का आना केवल कानूनी नहीं, सामाजिक और प्रशासनिक सुधार भी है। इससे जनता को त्वरित और सुलभ न्याय मिलेगा, और स्थानीय स्तर पर न्यायिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा।
इस निर्णय से महाराष्ट्र का यह क्षेत्र और भी मजबूत होगा – प्रशासनिक, सामाजिक और विधिक हर दृष्टिकोण से।