पंजाब विधानसभा में हाल ही में भाखड़ा-नंगल परियोजना पर केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) की तैनाती के खिलाफ एक विशेष प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के इस कदम को पंजाब के अधिकार क्षेत्र में दखल बताया और इसे संविधान की संघीय भावना के खिलाफ बताया।
मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में सरकार ने यह प्रस्ताव सदन में पेश किया, जिसे आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायकों के बहुमत से पारित कर दिया गया। इस दौरान कांग्रेस ने प्रस्ताव का विरोध करते हुए सदन से वॉकआउट कर दिया।
भाखड़ा डैम की सुरक्षा पर क्यों छिड़ा विवाद?
भाखड़ा-नंगल परियोजना लंबे समय से उत्तर भारत के लिए जीवनरेखा मानी जाती है। पंजाब का दावा है कि यह डैम राज्य की भूमि पर स्थित है, इसलिए इसकी सुरक्षा और प्रशासनिक नियंत्रण भी राज्य सरकार के पास होना चाहिए।
वहीं, केंद्र सरकार ने हाल ही में आदेश दिया कि डैम की सुरक्षा अब CISF संभालेगी। इस कदम को लेकर पंजाब सरकार ने आपत्ति जताई और इसे राज्य के अधिकारों पर हमला बताया।
विधानसभा में क्या हुआ?
स्पीकर कुलतार संधवां की अध्यक्षता में हुए विशेष सत्र के दौरान मुख्यमंत्री भगवंत मान ने प्रस्ताव पढ़ा और कहा कि केंद्र सरकार पंजाब के संवैधानिक अधिकारों को लगातार चुनौती दे रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र द्वारा CISF की तैनाती बिना राज्य की सहमति के की गई, जो कि सीधे-सीधे संविधान के संघीय ढांचे के विरुद्ध है।
इस प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान विपक्षी कांग्रेस के विधायकों ने विरोध जताया और सदन से वॉकआउट कर दिया। कांग्रेस ने कहा कि इस तरह का प्रस्ताव लाकर आप सरकार संवेदनशील विषयों का राजनीतिकरण कर रही है।
केंद्र सरकार ने हमेशा पंजाब के साथ अन्याय किया है।
अब डैमों पर CISF थोपकर हमारे लोगों पर आर्थिक बोझ डाल रही है।
हमारे डैम, हमारी ज़िम्मेदारी
पंजाब खुद सुरक्षा कर सकता है। हम ये फैसला रद्द करेंगे।
– @BhagwantMann pic.twitter.com/MbHox7rsox— चयन 🇮🇳 (@Tweet2Chayan) July 11, 2025
कांग्रेस का विरोध और सदन से वॉकआउट
कांग्रेस विधायकों ने इस प्रस्ताव को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी। उनका कहना था कि सुरक्षा जैसे राष्ट्रीय मुद्दों को केवल राजनीतिक लाभ के लिए उछालना सही नहीं है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या राज्य की सुरक्षा से जुड़े मामलों में केवल भावनात्मक बयानबाज़ी से कोई समाधान निकलेगा?
विधानसभा से बाहर जाते हुए कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि राज्य सरकार को केंद्र से संवाद बनाना चाहिए था, न कि प्रस्तावों से टकराव बढ़ाना।
केंद्र और BBMB का पक्ष
भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) ने CISF की तैनाती का बचाव करते हुए कहा है कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए जरूरी है। BBMB ने बताया कि डैम पर पहले पंजाब पुलिस और बोर्ड का स्टाफ तैनात था, लेकिन अब केंद्रीय एजेंसी द्वारा सुरक्षा को और मज़बूत किया जा रहा है।
केंद्र सरकार का मानना है कि ऐसे महत्वपूर्ण संस्थानों की सुरक्षा पर किसी तरह की ढील नहीं दी जा सकती, और CISF का ट्रेंड स्टाफ इस काम के लिए उपयुक्त है।
क्या संवैधानिक दृष्टिकोण से राज्य सही है?
कई संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है कि भाखड़ा डैम जैसे प्रोजेक्ट्स, भले ही राज्य की सीमा में हों, लेकिन उनकी राष्ट्रीय उपयोगिता को देखते हुए केंद्र को भी अधिकार हैं। हालांकि, यह भी सच है कि ऐसे मामलों में दोनों पक्षों की सहमति और संवाद आवश्यक होता है।
पंजाब सरकार का यह कहना भी महत्वपूर्ण है कि अगर डैम की सुरक्षा केंद्र को सौंप दी जाए, तो क्या भविष्य में प्रशासनिक निर्णय भी राज्य सरकार से छीने जाएंगे?
सोशल मीडिया पर क्या कह रहे हैं लोग?
इस मुद्दे पर जनता की राय बंटी हुई है। कुछ लोग राज्य सरकार के फैसले को सही ठहरा रहे हैं और मानते हैं कि यह पंजाब के अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी है। वहीं, अन्य लोगों का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है और इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए।
ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह बहस तेज़ हो गई है कि क्या डैम जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों की सुरक्षा पर भी राजनीति होनी चाहिए?
आगे क्या?
अब सवाल यह उठता है कि यह प्रस्ताव पास होने के बाद क्या केंद्र सरकार कोई प्रतिक्रिया देगी? क्या पंजाब इसे सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएगा? या फिर केंद्र और राज्य के बीच कोई वार्ता की संभावना बन सकती है?
फिलहाल, डैम पर CISF की तैनाती शुरू हो चुकी है और इसे हटाने का कोई संकेत केंद्र की ओर से नहीं मिला है। पंजाब सरकार ने अभी तक अदालत का रुख नहीं किया है, लेकिन राजनीतिक संकेत यही हैं कि यह टकराव जल्द खत्म नहीं होगा।
हालिया कानूनी टिप्पणियों से मिलता जुलता विवाद
पंजाब में अधिकारों को लेकर यह पहली बार नहीं है जब सरकार केंद्र पर निशाना साध रही हो। इससे पहले भी पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा कैदियों की पैरोल में देरी को लेकर सरकार को फटकार लगाई गई थी। ये सारे घटनाक्रम एक बड़े ट्रेंड की ओर इशारा करते हैं, जहां राज्य अपने अधिकारों को लेकर और मुखर हो रहा है।
निष्कर्ष
भाखड़ा डैम पर CISF की तैनाती को लेकर पारित प्रस्ताव न सिर्फ सुरक्षा बल्कि संविधान के संघीय ढांचे को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति होनी चाहिए या संवाद से समाधान निकलना चाहिए?
आपकी राय क्या है? क्या पंजाब सरकार का यह कदम उचित है? क्या केंद्र को राज्य सरकार की सहमति के बिना ऐसे निर्णय लेने चाहिए? नीचे कमेंट करके ज़रूर बताएं।