देवउठनी एकादशी क्या है और क्यों मनाई जाती है?
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी या देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। यह वह दिन है जब भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा के बाद जागते हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान सोते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इन्हीं चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है, जिसमें विवाह जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते।
2025 में देवउठनी एकादशी कब है? तिथि और शुभ मुहूर्त
- तारीख: 1 नवंबर 2025, शनिवार
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 31 अक्टूबर रात 11:48 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 1 नवंबर रात 09:32 बजे
- पारणा (व्रत खोलने का समय): 2 नवंबर सूर्योदय के बाद
पूजा का शुभ समय:
- ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 4:45 से 5:30 बजे
- विष्णु जागरण पूजा – शाम 5:30 से 7:00 बजे
- तुलसी विवाह का उत्तम समय – शाम 6:00 से 8:00 बजे
देवउठनी एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
- भगवान विष्णु के जागने का शुभ क्षण – इस दिन से देवताओं द्वारा सृष्टि का संचालन पुनः प्रारंभ होता है।
- चातुर्मास का अंत – चार महीने का धार्मिक विराम खत्म हो जाता है।
- शुभ कार्यों की शुरुआत – विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार जैसे मंगल कार्य इसी दिन से शुरू होते हैं।
- आस्था के अनुसार – इस व्रत को करने से सहस्र गाय दान का फल मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
भगवान विष्णु के शयन से जागरण की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय देवताओं व दानवों का संघर्ष बढ़ गया। देवताओं ने विष्णु जी से सहायता मांगी। तब भगवान ने कहा कि वे चार महीने विश्राम करेंगे और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागकर पुनः व्यवस्था संभालेंगे।
जागरण के समय भक्त शंख, घंटियाँ बजाकर कहते हैं – “उठो देव, जागो देव, धरती पर शुभ समय लाओ देव।”
तुलसी विवाह: देवउठनी के बाद होने वाला पहला शुभ संस्कार
देवउठनी एकादशी के अगले दिन या उसी शाम तुलसी विवाह किया जाता है। इसमें तुलसी (वृंदा) का विवाह भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम से कराया जाता है।
- इसे धर्म-संस्कार में सबसे पवित्र विवाह माना जाता है।
- तुलसी विवाह के बाद ही हिंदू घरों में विवाह, सगाई, गृह प्रवेश जैसे कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं।
शुभ कार्य इन्हीं दिनों से क्यों शुरू होते हैं?
- माना जाता है कि भगवान विष्णु के सोने के समय (चातुर्मास) में शुभ कार्य करने से कुछ कार्य अधूरे रह सकते हैं।
- देवउठनी के दिन से ग्रहों की स्थिति भी शुभ मानी जाती है।
- इसी कारण 1 नवंबर 2025 के बाद शादियों का सीजन शुरू होगा।
देवउठनी एकादशी की पूजा विधि (Step-by-Step)
- सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
- घर या मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- शंख, दीपक, तुलसी व पंचामृत से भगवान की पूजा करें।
- प्रातः यह मंत्र बोले:
“ऊठो देव, ऊठो हरि, ब्रह्मा आदि देवता जगो।” - शाम को तुलसी के पौधे के पास दीप जलाएं व शालिग्राम के साथ तुलसी विवाह करें।
- अगले दिन पारणा करके व्रत पूर्ण करें।
इस दिन किए जाने वाले शुभ उपाय और उनके लाभ
| उपाय | लाभ |
| शालिग्राम और तुलसी की पूजा | दांपत्य जीवन में सुख |
| पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाना | पितृ दोष समाप्त |
| 11 तुलसी पत्र भगवान विष्णु को चढ़ाना | मनोकामना पूर्ण |
| जरूरतमंद को अन्न-दान | पाप क्षय और पुण्य लाभ |
2025 में नई अपडेट / विवाह सीज़न / समाज में बदलाव
- 2025 में देवउठनी के साथ ही नवंबर माह से विवाह का शुभ मुहूर्त शुरू हो जाएगा।
- इस बार विवाह की तिथियाँ कम होने के कारण शादी हॉल और वेडिंग बुकिंग पहले से ही शुरू हो गई हैं।
- सोशल मीडिया पर तुलसी विवाह और देवउठनी से जुड़े फोटो, मंदिर तैयारियों और सजावट की झलकें पहले से वायरल हो रही हैं।
कई मान्यताओं के अनुसार, देवउठनी एकादशी से देवताओं का पृथ्वी पर आगमन होता है। इसी कारण विवाह, गृह प्रवेश और तुलसी विवाह को अत्यंत मंगलकारी माना जाता है।
अगर आप इस पर्व से जुड़ी तिथि, पूजा विधि और धार्मिक मान्यताओं को और विस्तार से समझना चाहते हैं, तो हमारी वेबसाइट पर मौजूद Dev Uthani Ekadashi 2025 विशेष रिपोर्ट को भी पढ़ सकते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से देवउठनी एकादशी का महत्व
- इस समय मौसम बदलता है – वर्षा ऋतु के बाद प्रकृति में संतुलन आता है।
- धार्मिक उपवास शरीर को डिटॉक्स करते हैं, मानसिक शांति देते हैं।
- तुलसी पौधा प्राकृतिक एंटीबायोटिक है, इसलिए इसे पूजा में शामिल करना स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी है।
निष्कर्ष
देवउठनी एकादशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति का वह अध्याय है जो आस्था, विज्ञान और जीवन शैली को जोड़ता है। यह दिन बताता है कि थकान के बाद विश्राम और फिर नई शुरुआत जीवन का नियम है।




















