पंजाब सरकार की भूमि समेकन (Land Pooling) योजना को लेकर एक बार फिर बवाल खड़ा हो गया है। किसान संगठनों ने योजना को किसान विरोधी बताते हुए विरोध दर्ज कराया है। खासतौर पर किसान नेता सरवजीत सिंह डल्लेवाल ने इस स्कीम को ‘गुपचुप तरीके से लागू करने की कोशिश’ करार दिया है और सरकार पर सीधा हमला बोला है। किसानों का आरोप है कि विकास की आड़ में उनकी ज़मीनें छीनी जा रही हैं, और उन्हें मालिकाना हक से वंचित किया जा सकता है।
लैंड पूलिंग योजना क्या है?
पंजाब सरकार की यह योजना राज्य में नियोजित शहरी विकास के लिए बनाई गई है, जिसके तहत किसानों की ज़मीन को सरकार अपने अधीन लेकर उसे विकसित करती है और बाद में एक निर्धारित हिस्से को मालिकों को वापस करती है। इस प्रक्रिया में किसानों को भूमि के बदले में पुनर्वितरण किया जाता है, लेकिन इस स्कीम को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं।
सरकार का दावा है कि इससे किसानों की जमीन की कीमत बढ़ेगी और उन्हें आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर का लाभ मिलेगा। लेकिन किसानों का स्पष्ट कहना है कि उन्हें इस योजना की सही जानकारी नहीं दी गई और न ही उनकी सहमति ली गई।
किसानों का विरोध: डल्लेवाल की चेतावनी
भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रहां) के प्रमुख सरवजीत सिंह डल्लेवाल ने इस योजना को खारिज करते हुए कहा कि यह किसानों के अधिकारों के खिलाफ है। उन्होंने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि किसानों को जानकारी दिए बिना इस नीति को लागू करने की कोशिश की जा रही है।
डल्लेवाल ने कहा, “यह पूरी तरह से किसान विरोधी नीति है। इसमें न पारदर्शिता है और न ही किसानों की सहमति। अगर सरकार ने जल्द इस पर कदम नहीं उठाए तो हम राज्यव्यापी आंदोलन करेंगे।”
🚨Stop Land pooling @BhagwantMann
Farmers give 100% of their land, and get back only 20-30%, even though it’s their ancestral property.
Returned land is often in less desirable or fragmented locations.
Farmers left in limbo can’t farm, can’t sell, can’t build. #Panjab… pic.twitter.com/1y0Vbga2d5— Ravleen Gill 🇨🇦 (@_ArdabMutiyaar) August 1, 2025
लुधियाना-खन्ना में जोरदार विरोध प्रदर्शन
हाल ही में लुधियाना और खन्ना में किसानों ने एकजुट होकर इस स्कीम के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। विरोध के दौरान किसानों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा।
किसानों का आरोप है कि यह योजना “भूमि अधिग्रहण” नहीं बल्कि “भूमि हड़पने की योजना” है। उनका कहना है कि यदि यह योजना सही मायनों में किसान हितैषी होती, तो इसे पारदर्शी तरीके से सभी की सहमति से लागू किया जाता।
मोहाली में भी विवाद: GMADA डम्पिंग ग्राउंड मामला
योजना के खिलाफ रोष केवल भूमि पूलिंग तक सीमित नहीं है। हाल ही में मोहाली में 40 एकड़ ज़मीन पर डम्पिंग ग्राउंड बनाए जाने को लेकर भी विवाद सामने आया। स्थानीय निवासियों और समाजसेवियों ने प्रशासन पर आरोप लगाया कि पर्यावरण और स्वास्थ्य को खतरे में डालते हुए यह प्रोजेक्ट बिना स्पष्ट जानकारी के शुरू किया गया।
इस विषय में मोहाली के मेयर द्वारा दी गई जानकारी और पूरे घटनाक्रम को विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें – “मोहाली में 40 एकड़ जमीन पर कूड़ा डंपिंग ग्राउंड: मेयर ने दी जानकारी”
योजना की विसंगतियां और किसानों की आपत्तियां
किसानों का सबसे बड़ा आरोप यह है कि योजना में मालिकाना हक के भविष्य को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।
वे पूछते हैं कि जब सरकार भूमि को अधिग्रहण करेगी और फिर हिस्सों में लौटाएगी, तो क्या मालिकाना हक पहले जैसा ही रहेगा?
इसके अलावा, जिन भूमियों का पुनर्वितरण होगा, वे किस जगह होंगी, कितनी उपजाऊ होंगी, इस पर भी कोई भरोसेमंद आश्वासन नहीं है।
किसानों को डर है कि भूमि के मूल्य निर्धारण में उन्हें ठगा जा सकता है, और निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए यह योजना चलाई जा रही है।
अकाली दल की सख्त प्रतिक्रिया
विपक्षी दल शिरोमणि अकाली दल ने इस स्कीम को किसान विरोधी बताते हुए सरकार को घेरा है। पार्टी के नेताओं ने साफ शब्दों में कहा कि यदि सरकार ने किसानों की ज़मीन पर इस तरह की मनमानी की, तो पार्टी सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेगी।
अकाली दल के नेता ने कहा, “यह सरकार सिर्फ बिल्डरों और कंपनियों की सुन रही है, किसानों की नहीं। यह गलत परंपरा शुरू की जा रही है, जिसे तुरंत रोका जाना चाहिए।”
सरकार का पक्ष: विकास के नाम पर नई सोच
सरकार की ओर से अधिकारियों ने कहा है कि यह स्कीम पूरी तरह पारदर्शी होगी और किसानों का हक बना रहेगा। उनके अनुसार, यह योजना राज्य के विकास के लिए जरूरी है और किसानों को इससे लाभ ही होगा।
अधिकारियों का दावा है कि जो भी भूमि ली जाएगी, उसका एक हिस्सा किसानों को विकसित रूप में लौटाया जाएगा, जिसमें बेहतर सड़कें, सीवरेज, पार्क और अन्य सुविधाएं होंगी।
साथ ही यह भी कहा गया कि पुनर्वास और मुआवजा प्रक्रिया को किसान हितों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है।
विशेषज्ञों की राय
नीति विश्लेषकों और कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि भूमि पूलिंग जैसी योजनाएं ज़रूरी हैं, लेकिन इन्हें तभी लागू किया जाना चाहिए जब सभी पक्षों की सहमति और विश्वास हो।
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि किसानों को विश्वास में लिए बिना कोई योजना लागू की जाती है तो उसका नतीजा अशांति और अविश्वास होता है। कई राज्यों में इसी प्रकार की योजनाएं पारदर्शिता से लागू की गई हैं, जिससे किसानों को लाभ मिला है।
उनका सुझाव है कि सरकार को संवाद के रास्ते पर चलना चाहिए और स्कीम की हर बात स्पष्ट रूप से सभी किसानों तक पहुंचानी चाहिए।
संवाद से निकलेगा रास्ता
यह स्पष्ट है कि पंजाब सरकार की लैंड पूलिंग योजना फिलहाल किसानों और प्रशासन के बीच विवाद का बड़ा कारण बन चुकी है।
सरकार अगर वास्तव में किसानों के हित में काम करना चाहती है, तो उसे संवाद के माध्यम से भरोसा बनाना होगा। योजना में पारदर्शिता, सही जानकारी और स्वैच्छिक सहमति जरूरी है।
किसानों की जमीन केवल ‘विकास’ के नाम पर नहीं, सम्मानजनक साझेदारी के आधार पर उपयोग की जानी चाहिए। तभी विकास भी होगा और किसानों का हक भी सुरक्षित रहेगा।