पंजाब में किसानों ने एक बार फिर सरकार की भूमि पूलिंग नीति के खिलाफ सड़कों पर उतरने का फैसला किया है। इस बार विरोध का तरीका थोड़ा अलग और प्रभावशाली रहा—मोटरसाइकिल मार्च। सैकड़ों किसान अपने ट्रैक्टर-ट्रॉलियों और मोटरसाइकिलों पर सवार होकर गांव-गांव पहुंचे, ताकि इस नीति के संभावित नुकसान के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके। रैली में शामिल किसानों का कहना है कि यह सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि अपने अधिकारों की रक्षा के लिए एक संघर्ष है।
भूमि पूलिंग नीति – किसानों की चिंता का कारण
भूमि पूलिंग नीति को लेकर किसानों में गहरी नाराजगी है। किसानों का मानना है कि इस योजना के तहत उनकी जमीन का नियंत्रण धीरे-धीरे सरकार और निजी डेवलपर्स के पास चला जाएगा। उनका तर्क है कि भूमि पूलिंग की शर्तें छोटे और सीमांत किसानों के लिए प्रतिकूल हैं और इससे उनकी जीविका पर खतरा मंडरा सकता है। इस नीति को लेकर पहले भी पंजाब के कई जिलों में विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं, लेकिन इस बार का आंदोलन अधिक संगठित और व्यापक दिखाई दे रहा है।
किसान नेताओं के आरोप और मांगें
किसान नेताओं का कहना है कि भूमि पूलिंग नीति किसानों के हित में नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि नीति बनाते समय किसानों से कोई व्यापक सलाह-मशविरा नहीं किया गया और सरकार ने सिर्फ अपने दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी। उनका कहना है कि यह नीति लंबे समय में किसानों को उनकी ही जमीन से बेदखल कर सकती है। किसान संगठनों की मुख्य मांग है कि सरकार इस नीति को तुरंत वापस ले और किसानों के सुझावों के आधार पर नई योजना तैयार करे।
The farmer bikers of @KissanMajdoor Kisan Majdoor Sangharsh Committee Panjab started their protest against the #LandPoolingPolicy of @BhagwantMann in Jandiala Guru, Amritsar. pic.twitter.com/ZKxOzy6LN8
— Kisan Majdoor Morcha (@KMajdoormorcha) August 11, 2025
मोटरसाइकिल मार्च: रैली का पैमाना और माहौल
रैली का आयोजन सुबह से ही शुरू हो गया था। किसान झंडे, पोस्टर और बैनर लेकर निकले। कई स्थानों पर स्थानीय लोग भी किसानों का स्वागत करने और समर्थन जताने के लिए सड़क किनारे खड़े नजर आए। रैली में युवाओं से लेकर बुजुर्ग किसानों तक, हर वर्ग ने सक्रिय भागीदारी दिखाई। मोटरसाइकिल, स्कूटर, ट्रैक्टर और जीप की लंबी कतारों ने माहौल को जोशीला बना दिया। जगह-जगह पर भाषण हुए, जिसमें नेताओं ने किसानों को एकजुट रहने और अपने अधिकारों की लड़ाई जारी रखने का संदेश दिया।
ग्रामीण इलाकों में बढ़ता समर्थन
यह विरोध प्रदर्शन सिर्फ एक जिले तक सीमित नहीं रहा। पंजाब के कई गांवों और कस्बों में किसानों ने इस रैली को लेकर मजबूत समर्थन जताया। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खुद रैली में शामिल होने आए, जबकि कई गांवों में महिलाओं ने घरों से बाहर निकलकर प्रदर्शनकारियों को पानी, चाय और नाश्ता देकर सहयोग किया। इससे यह साफ है कि यह आंदोलन सिर्फ किसानों का नहीं, बल्कि पूरे समाज का मुद्दा बनता जा रहा है।
ਇਹਨੂੰ dictatorship ਨਹੀਂ ਕਹਾਂਗੇ ਤਾਂ ਹੋਰ ਕੀ ਕਹਾਂਗੇ?
Forced land acquisition from farmers is unacceptable, regardless of the land’s fertility. No one should claim land without the owner’s consent. The #LandPoolingPolicy is a sham we need to stand against it.#Farmers #Panjab pic.twitter.com/slHkDF3NVA— moosa jatt (@kaur672447642) July 25, 2025
सरकार का पक्ष और मौजूदा रुख
हालांकि सरकार का कहना है कि भूमि पूलिंग नीति विकास कार्यों को तेज करने और किसानों को दीर्घकालिक लाभ पहुंचाने के लिए है, लेकिन किसानों को इस पर भरोसा नहीं है। सरकार ने अभी तक इस नीति को वापस लेने का कोई संकेत नहीं दिया है। कुछ अधिकारियों ने यह जरूर कहा है कि किसानों के साथ चर्चा की जाएगी और उनकी चिंताओं को सुना जाएगा।
भूमि पूलिंग पर जारी विरोध का नया चरण
भूमि पूलिंग नीति को लेकर यह विवाद नया नहीं है। इससे पहले भी किसान संगठनों ने इसे लेकर कई बार विरोध दर्ज कराया है। हाल ही में भूमि पूलिंग योजना में किसानों को गुमराह किया गया: दल्लीवाल का गंभीर आरोप में भी किसान नेताओं ने गंभीर आरोप लगाए थे कि किसानों को गुमराह करके नीति को लागू किया जा रहा है। इस बार का मोटरसाइकिल मार्च उसी विवाद का ताजा रूप है, जो किसानों की बढ़ती नाराजगी को दर्शाता है।
नीति का किसानों की आजीविका पर प्रभाव
किसानों का मानना है कि भूमि पूलिंग नीति का असर सीधे उनकी आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा। छोटे किसानों के लिए जमीन सिर्फ आजीविका का साधन नहीं, बल्कि उनकी पहचान और सुरक्षा का प्रतीक है। इस नीति के लागू होने से उनकी जमीन का मूल्य घटने और खेती की स्वतंत्रता खत्म होने का डर है। कई किसान इसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए खतरे के रूप में देख रहे हैं।
कृषि विशेषज्ञों की राय
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि भूमि पूलिंग जैसी योजनाएं तभी सफल हो सकती हैं, जब किसानों को पूरी तरह से विश्वास में लिया जाए। वे कहते हैं कि नीति निर्माण में पारदर्शिता और किसानों की भागीदारी जरूरी है। यदि किसानों की राय को नजरअंदाज किया गया, तो विरोध और बढ़ सकता है, जिससे विकास परियोजनाओं पर भी असर पड़ेगा।
निष्कर्ष
किसान संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानीं, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। उनका कहना है कि यह संघर्ष सिर्फ नीति के खिलाफ नहीं, बल्कि किसानों की आवाज को दबाने की कोशिशों के खिलाफ भी है। आने वाले दिनों में यह आंदोलन और बड़े पैमाने पर फैल सकता है, जिससे पंजाब की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति पर गहरा असर पड़ेगा।