शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक क्षेत्रीय मंच है, जो एशियाई देशों को सुरक्षा, सहयोग और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर साझा विचार और समाधान के लिए जोड़ता है। भारत इस मंच का सक्रिय सदस्य रहा है और सदैव आतंकवाद के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाता रहा है।
हाल ही में हुई SCO बैठक में एक अप्रत्याशित मोड़ तब आया जब भारत ने साझा बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। इसके पीछे दो प्रमुख कारण थे—पहलगाम आतंकी हमले पर चुप्पी और बलूचिस्तान का अप्रत्यक्ष उल्लेख।
⚠️ संयुक्त बयान पर भारत की आपत्ति क्यों?
सभी सदस्य देशों द्वारा अनुमोदित साझा बयान में इस बार हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले का कोई जिक्र नहीं था। यह वही हमला था जिसमें निर्दोष श्रद्धालुओं को निशाना बनाया गया था। भारत को उम्मीद थी कि आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता दिखाने के लिए इस हमले का ज़िक्र अवश्य होगा।
साथ ही, बयान में बलूचिस्तान से संबंधित एक संदर्भ भी जोड़ा गया था, जिसे भारत ने राजनीतिक रूप से प्रेरित और अनुचित माना। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह किसी भी ऐसे बयान का समर्थन नहीं कर सकता जिसमें उसकी संप्रभुता या सुरक्षा से संबंधित मुद्दों की अनदेखी की गई हो।
India refused to sign the joint declaration at #SCO
India refused to sign the joint declaration, citing biased language that ignored the recent terrorist attack in #Pahalgam while selectively including references to incidents in Pakistan. pic.twitter.com/SamOLWMNtk
— Defence Decode® (@DefenceDecode) June 26, 2025
🗣️ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की स्पष्ट प्रतिक्रिया
SCO बैठक में भारत की ओर से भाग ले रहे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दो टूक शब्दों में कहा कि आतंकवाद के मुद्दे पर कोई भी राजनीतिक नरमी स्वीकार नहीं की जाएगी।
उन्होंने साझा बयान में पहलगाम हमले की अनुपस्थिति को अत्यंत गंभीर चूक बताया और बलूचिस्तान संबंधी जिक्र पर गंभीर आपत्ति जताई।
“आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस हमारी नीति है और रहेगी,” उन्होंने मंच से साफ कहा।
Defence Minister @rajnathsingh ji REFUSED to sign the SCO document as it did not condemn the Pahalgam Terrorist Attack.
🔥 India stands firm — no compromise when it comes to national security and zero tolerance for terrorism. pic.twitter.com/5BjoNqQ4Ut
— Pradeep Bhandari(प्रदीप भंडारी)🇮🇳 (@pradip103) June 26, 2025
🌐 पाकिस्तान-चीन की भूमिका और SCO की वैधता पर प्रश्न
भारत का यह रुख इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पाकिस्तान और चीन ने इस साझा बयान में नरमी दिखाने की कोशिश की। आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे को सामान्य शब्दों में समेटने का प्रयास भारत को स्वीकार नहीं हुआ।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह प्रश्न खड़ा कर दिया कि क्या SCO वास्तव में आतंकवाद विरोधी संगठन की भूमिका निभा पा रहा है या फिर यह कुछ सदस्य देशों के राजनीतिक एजेंडे का मंच बन गया है?
🔥 पहलगाम आतंकी हमला: भारत की नाराज़गी का मुख्य कारण
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में तीर्थयात्रियों की बस पर हमला किया गया था। इसमें कई लोग घायल हुए और यह भारत के लिए गंभीर सुरक्षा चुनौती बना।
भारत को यह उम्मीद थी कि SCO के सदस्य देश इस हमले की निंदा करेंगे और आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता दिखाएंगे। लेकिन संयुक्त बयान में इस पर एक शब्द भी नहीं था, जो भारत को अस्वीकार्य लगा।
🧭 बलूचिस्तान जिक्र: एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर अनुचित संकेत
बलूचिस्तान पाकिस्तान का आंतरिक मामला है लेकिन उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाकर भारत पर आरोप लगाना एक राजनीतिक चाल मानी जाती है।
भारत ने यह साफ किया कि बलूचिस्तान के जिक्र को स्वीकार करना उसकी विदेश नीति और राष्ट्रीय हितों के विपरीत है। ऐसा कोई भी दस्तावेज़ भारत का समर्थन नहीं पा सकता।
🛡️ भारत की आतंकवाद पर नीति: बिना समझौता
भारत की नीति आतंकवाद को लेकर हमेशा सख्त रही है। चाहे वो संयुक्त राष्ट्र हो या SCO, भारत ने हर बार यही रुख अपनाया है कि आतंकवाद का कोई धर्म, कोई सीमा नहीं होती।
इस बैठक में भी भारत ने अपने उसी रुख को दोहराया और स्पष्ट किया कि यदि आतंकवाद पर समझौता किया गया तो भारत समर्थन नहीं करेगा।
🔮 क्या SCO का स्वरूप बदल रहा है?
इस घटना ने SCO की भूमिका और भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि इस मंच का उपयोग कुछ सदस्य देश अपने राजनीतिक हित साधने के लिए करते हैं, तो इसका वास्तविक उद्देश्य खो जाएगा।
भारत के इनकार से यह संकेत भी मिला है कि यदि मंच की कार्यशैली निष्पक्ष नहीं रही, तो भारत जैसे बड़े सदस्य की भागीदारी भी प्रभावित हो सकती है।
🌍 भारत की वैश्विक नीति और स्पष्ट छवि
भारत का यह कदम केवल SCO के भीतर ही नहीं, बल्कि वैश्विक मंचों पर भी उसकी स्थिति को और मजबूत करता है।
स्पष्ट विदेश नीति, आतंकवाद पर सख्ती और संप्रभुता की रक्षा—यह भारत की नीति के तीन मुख्य स्तंभ हैं।
इसी नीति की झलक हमें शुभांशु शुक्ला के अंतरिक्ष मिशन जैसी पहल में भी देखने को मिली, जहां भारत ने वैज्ञानिक, रणनीतिक और कूटनीतिक तीनों स्तरों पर संतुलन दिखाया।