भारतीय फुटबॉल क्लब Bengaluru FC ने हाल ही में एक ऐसा निर्णय लिया है जिसने देशभर के फुटबॉल प्रेमियों को चौंका दिया है। क्लब ने सभी खिलाड़ियों की सैलरी तत्काल प्रभाव से अस्थायी रूप से रोक दी है, जिसमें भारतीय फुटबॉल के सबसे बड़े सितारे सुनील छेत्री भी शामिल हैं।
“क्लब ने आर्थिक असमंजस के चलते यह कठिन निर्णय लिया।” यह बयान सीधे उन कारणों की ओर इशारा करता है जिनकी वजह से भारतीय फुटबॉल में संकट गहराता जा रहा है। मौजूदा हालात में इंडियन सुपर लीग (ISL) के संचालन को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है और इसकी सीधी मार खिलाड़ियों पर पड़ रही है।
क्लब का यह निर्णय तब आया है जब ISL के आगामी सीजन को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या भारतीय फुटबॉल एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है?
ISL और AIFF के बीच टकराव का कारण
ISL और अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFF) के बीच चल रही तनातनी कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार मामला गहराता नजर आ रहा है। AIFF और FSDL (Football Sports Development Limited) के बीच संचालन और नियंत्रण के अधिकारों को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है।
AIFF चाहता है कि लीग की संरचना में बदलाव हो, जिससे खिलाड़ियों और क्लबों को बेहतर सुविधाएं और पारदर्शिता मिले। वहीं FSDL का कहना है कि पहले से तय फ्रेंचाइज़ी मॉडल को इस प्रकार बदलना आसान नहीं है।
“AIFF और ISL क्लबों के बीच रजामंदी नहीं बन पा रही है।” इसका नतीजा यह है कि लीग के भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं और खिलाड़ियों को अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए जूझना पड़ रहा है।
Darkest hour for Indian Football‼️
Several top clubs have already told players to search for other clubs, suspending operations indefinitely.
The ISL, once hailed as the league that would transform Indian football is now on the brink of shutting down 👎 🚫
On August 7, AIFF will… pic.twitter.com/IPjcYP0Klz— 90rfootball (@90rfootball) August 4, 2025
खिलाड़ियों पर मानसिक और आर्थिक दबाव
सैलरी रोके जाने का सबसे बड़ा असर उन खिलाड़ियों पर पड़ता है जो पहले से सीमित संसाधनों में अपने करियर को संवारने की कोशिश कर रहे हैं। कई युवा खिलाड़ी ऐसे हैं जिनके लिए यह खेल नहीं, जीविका का माध्यम है।
“खिलाड़ियों के लिए यह केवल खेल नहीं, जीविका का भी प्रश्न है।” मानसिक दबाव, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ, और भविष्य की चिंता – इन सबने मिलकर खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को गहरा झटका दिया है।
टीम मैनेजमेंट और कोचिंग स्टाफ भी इस अनिश्चितता से परेशान हैं। कोचों को न तो टीम की ट्रेनिंग तय समय पर मिल रही है और न ही खिलाड़ियों की उपलब्धता की जानकारी। इस स्थिति से टीम भावना और प्रदर्शन दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
सुनील छेत्री: क्या यह अंत की शुरुआत है?
भारत के सबसे भरोसेमंद स्ट्राइकर और कप्तान सुनील छेत्री ने हाल ही में इंटरनेशनल फुटबॉल से संन्यास की घोषणा की थी। ऐसे समय में उनके घरेलू क्लब से जुड़ी यह खबर उनके प्रशंसकों के लिए दोहरी मार जैसी है।
“सुनील छेत्री जैसे लीजेंड को इस हालात का सामना करना पड़े, यह दुर्भाग्यपूर्ण है।” वे वर्षों से बेंगलुरु एफसी का चेहरा रहे हैं और उनके नेतृत्व में क्लब ने कई ट्रॉफियां जीती हैं। इस फैसले से ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह एक युग का अंत हो सकता है।
हालांकि छेत्री ने अभी तक इस पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन यह साफ है कि उन्हें भी इस स्थिति ने निराश किया होगा।
AIFF की 7 अगस्त की अहम बैठक से उम्मीदें
AIFF ने इस संकट को देखते हुए सभी ISL क्लबों के साथ 7 अगस्त को एक अहम बैठक बुलाई है। इस बैठक में खिलाड़ियों की स्थिति, लीग का भविष्य, और संचालन मॉडल पर चर्चा की जाएगी।
“AIFF की बैठक पर टिकी हैं करोड़ों फुटबॉल प्रशंसकों की निगाहें।” यह मीटिंग तय करेगी कि क्या लीग मौजूदा स्वरूप में जारी रहेगी या फिर किसी नए प्रारूप को अपनाया जाएगा।
AIFF अध्यक्ष ने यह भी संकेत दिए हैं कि वे क्लबों की वित्तीय स्थिति पर भी मंथन करेंगे और किसी सहायक फंड की संभावना को लेकर चर्चा करेंगे। इस बैठक में FSDL की भागीदारी भी अहम होगी, क्योंकि बदलाव तभी संभव हैं जब दोनों पक्ष एकमत हों।
भारतीय फुटबॉल की दिशा: संकट या बदलाव का दौर?
भारतीय फुटबॉल की मौजूदा स्थिति को केवल संकट कहना शायद अधूरा होगा। इसे एक संभावित बदलाव का संकेत भी माना जा सकता है। ISL का मौजूदा मॉडल लंबे समय से आलोचना झेलता रहा है – कम प्रमोशन/रेलीगेशन, फ्रेंचाइज़ी सिस्टम और पारदर्शिता की कमी।
“हर संकट अपने साथ बदलाव का बीज भी लाता है।” यह वक्त है कि AIFF और FSDL मिलकर एक ऐसा ढांचा तैयार करें जिसमें खिलाड़ियों, क्लबों और दर्शकों – तीनों का हित सुरक्षित रहे।
युवा खिलाड़ियों के लिए लीग को एक ऐसा मंच बनाना जरूरी है जहां वे अपने टैलेंट को बिना किसी मानसिक और आर्थिक दबाव के निखार सकें। अगर अब बदलाव नहीं हुआ, तो भविष्य में भारतीय फुटबॉल को और भी बड़े संकटों से गुजरना पड़ सकता है।
क्या यह पहली बार है? इतिहास में ऐसे और भी मौके आए हैं
यह पहली बार नहीं है जब भारत में खेल से जुड़े आर्थिक या प्रशासनिक मसलों ने खिलाड़ियों को प्रभावित किया हो। उदाहरण के लिए, हाल ही में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट मैच में अंपायरिंग को लेकर दिनेश कार्तिक और नासिर हुसैन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी, जो विवाद का विषय बना।
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इससे साफ है कि चाहे क्रिकेट हो या फुटबॉल, भारत में खेलों की संरचना में अब पेशेवर बदलाव की ज़रूरत है।
पाठकों से सवाल – आप क्या सोचते हैं?
बेंगलुरु एफसी द्वारा खिलाड़ियों की सैलरी रोकना एक चेतावनी है – न केवल क्लबों के लिए, बल्कि प्रशासन के लिए भी। यह दर्शाता है कि यदि खेलों के संचालन में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं होगी तो खिलाड़ी, दर्शक और पूरे खेल की साख पर असर पड़ेगा।
“आप इस स्थिति को कैसे देखते हैं? क्या AIFF को खिलाड़ियों की मदद करनी चाहिए? क्या ISL को नई संरचना की ज़रूरत है? कृपया नीचे कमेंट करके अपनी राय ज़रूर दें।”