कर्नाटक की राजनीति में फिर से हलचल तेज हो गई है। राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के बीच रिश्तों को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। हाल ही में दिए गए “मेरे पास क्या विकल्प है?” जैसे बयान को लेकर राजनीतिक गलियारों में खलबली मच गई।
कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी समीकरण और नेतृत्व को लेकर हो रही बातचीत ने मीडिया का ध्यान खींचा है। हालांकि, पार्टी फिलहाल इस पूरे मुद्दे को शांत दिखाने की कोशिश कर रही है।
डीके शिवकुमार की सफाई: “मेरी पार्टी पहले है”
डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान को तोड़ा-मरोड़ा गया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा:
“मैं अपनी पार्टी के साथ हूं। मेरी पार्टी सबसे पहले है। मैं मुख्यमंत्री जी का समर्थन करता हूं।”
उनके अनुसार, मीडिया ने उनके बयान को उस संदर्भ से बाहर पेश किया जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हुई। उन्होंने यह भी जोड़ा कि उनके और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बीच किसी प्रकार की खींचतान नहीं है।
The #Karnataka Chief Minister #Siddaramaiah said,”Our Govt will remain as strong as a boulder for the full five years,no matter who says what the bond between him and #DKShivakumar remains strong”..@INCKarnataka @siddaramaiah @DKShivakumar pic.twitter.com/HBmQOEX0Ze
— Yasir Mushtaq (@path2shah) June 30, 2025
सिद्धारमैया का शांत रवैया, नेतृत्व पर भरोसा बरकरार
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने पूरे घटनाक्रम पर कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी, बल्कि यह संकेत दिया कि उनकी सरकार स्थिर है और पार्टी एकजुट है। वे पहले भी कह चुके हैं कि कांग्रेस की सरकार लोगों के भरोसे पर बनी है और वह पांच साल तक चलेगी।
“राज्य में कोई राजनीतिक संकट नहीं है”, यह संदेश देने की कोशिश लगातार की जा रही है। सिद्धारमैया का रवैया यह दर्शाता है कि वे फिलहाल किसी भी टकराव से बचना चाहते हैं।
आलाकमान का रुख: बदलाव की कोई संभावना नहीं
कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने भी संकेत दिए हैं कि कर्नाटक सरकार में फिलहाल कोई बड़ा फेरबदल नहीं किया जाएगा। उन्होंने दोनों नेताओं को सार्वजनिक बयानों से बचने की सलाह दी है।
“हम एकजुट रहेंगे तो जीतेंगे” – इस सिद्धांत पर चलते हुए पार्टी नेतृत्व ने शांति बनाए रखने की दिशा में पहल की है।
जैसे हाल ही में पीएम मोदी की बहुप्रतीक्षित विदेश यात्रा को लेकर बीजेपी एकमत नजर आई, वैसे ही कांग्रेस भी कर्नाटक में एकजुटता की छवि बनाए रखना चाहती है।
भाजपा की प्रतिक्रिया: अंदरखाने कुछ और पक रहा है
विपक्षी भाजपा ने इस पूरे प्रकरण को कांग्रेस की अंदरूनी कलह के रूप में पेश किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी के भीतर सत्ता को लेकर खींचतान चल रही है जिसे छुपाने की कोशिश की जा रही है।
हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इन आरोपों को खारिज करते हुए यह कह चुके हैं कि पार्टी में कोई भी असहमति नहीं है।
पार्टी कार्यकर्ता और जनता में क्या संदेश गया?
इस पूरे घटनाक्रम का असर पार्टी कार्यकर्ताओं और आम जनता पर भी पड़ा है। कई लोगों को यह भ्रम हुआ कि क्या पार्टी में फूट पड़ रही है।
लेकिन डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया द्वारा लगातार दिए जा रहे समर्थन वाले बयानों ने कुछ हद तक स्थिति को संभाला है।
2028 की तैयारी और नेतृत्व को लेकर संभावनाएं
भविष्य को लेकर भी कयास लगाए जा रहे हैं। कई विश्लेषकों का मानना है कि डीके शिवकुमार भविष्य में मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी कर सकते हैं। ऐसे में उनका हालिया बयान एक रणनीतिक कदम भी हो सकता है।
हालांकि, फिलहाल वे खुलकर कह रहे हैं कि:
“मैं पूरी तरह से पार्टी के साथ हूं, और सिद्धारमैया जी हमारे नेता हैं।”
कांग्रेस को 2028 में फिर से सत्ता में लौटना है, ऐसे में आंतरिक एकता और स्पष्ट नेतृत्व की आवश्यकता सबसे अधिक है।
एकता बनाए रखने की बड़ी चुनौती
पूरे घटनाक्रम से साफ है कि कर्नाटक कांग्रेस को आंतरिक समन्वय बनाए रखने की सख्त जरूरत है। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार दोनों वरिष्ठ नेता हैं और जनता के बीच उनकी लोकप्रियता भी बनी हुई है।
लेकिन सार्वजनिक बयानबाजी और मीडिया में गलतफहमियों से पार्टी की छवि को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए, जरूरत है संयम और समन्वय की।
स्थिरता और एकजुटता ही भविष्य की कुंजी
कांग्रेस पार्टी अगर कर्नाटक में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहती है, तो स्पष्ट नेतृत्व, शांत रवैया और आपसी विश्वास की नीति अपनानी होगी। बयानबाजी से अधिक ज़रूरत है ज़मीनी काम की।