🪔 ब्रज की सांसों में घुली कृष्ण-भक्ति
भाद्रपद मास की अष्टमी जैसे-जैसे नजदीक आती है, ब्रज की गलियों का माहौल बदलने लगता है। मथुरा और वृंदावन में सुबह से ही मंदिरों की घंटियां और कीर्तन की आवाजें गूंजने लगती हैं। हर दुकान पर रंगीन फूलों की झालरें, बंदनवार, और सजावट का सामान सजा होता है।
यहां की जन्माष्टमी सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐसा पर्व है जो कला, संस्कृति और आस्था का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करता है। खासकर झांकियां — जिनमें बाल कृष्ण के खेल, गोपियों के साथ रास, और गोकुल के दृश्य इतने जीवंत रूप में दिखाए जाते हैं कि देखने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है।
🎨 त्योहार की तैयारी: हर कोना सजने लगता है
जन्माष्टमी से कई दिन पहले ही मंदिरों के पुजारी, सेवक और स्थानीय लोग तैयारियों में जुट जाते हैं। शहर की गलियों को इस तरह सजाया जाता है कि मानो आप किसी विशाल मेले में घूम रहे हों।
- फूलों का महत्व – गेंदा, गुलाब, और चंपा के फूलों की मालाएं मंदिरों के द्वार और झांकियों के किनारों को सुशोभित करती हैं।
- रोशनी का जादू – शाम ढलते ही गलियां रंग-बिरंगी लाइटों से जगमगाने लगती हैं।
- कारीगरी और सृजनशीलता – कलाकार लकड़ी, कपड़े और मिट्टी का उपयोग करके मंच और मूर्तियां तैयार करते हैं, जिन्हें बाद में रंगों और आभूषणों से सजाया जाता है।
यह तैयारी सिर्फ मंदिरों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि मोहल्लों और घरों में भी भक्त छोटे-छोटे झूले और सजावट करते हैं।
🛕 मुख्य मंदिरों में झांकियों का जादू
कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में जन्माष्टमी की रात अलग ही दृश्य होता है। प्रवेश द्वार से लेकर गर्भगृह तक का हर कोना फूलों से सजा होता है। मुख्य झांकी में कृष्ण जन्म का दृश्य इतनी बारीकी से सजाया जाता है कि भक्त बार-बार देखने को मजबूर हो जाते हैं।
वृंदावन के बैंके बिहारी मंदिर में परदा दर्शन का उत्साह झांकियों के बीच और बढ़ जाता है। जैसे ही परदा हटता है, भक्तों की निगाहें भगवान और उनकी सजी हुई लीला पर ठहर जाती हैं।
अन्य प्रमुख मंदिर जैसे राधा रमण, मदन मोहन, प्रेम मंदिर और इस्कॉन मंदिर भी इन दिनों आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं। प्रेम मंदिर की रात की लाइटिंग और झांकियां तो मानो किसी स्वप्नलोक में ले जाती हैं।
🎭 रासलीला: मंच पर जीवंत होती कहानियां
मथुरा और वृंदावन की जन्माष्टमी रासलीला के बिना अधूरी है। शाम को जब मंदिरों और मैदानों में रासलीला शुरू होती है, तो लोग जमीन पर बैठकर मंत्रमुग्ध होकर देखते हैं।
- बाल कलाकारों द्वारा कृष्ण और बलराम की बाल लीलाएं
- राधा-कृष्ण का रास और गोपियों के साथ संवाद
- संगीत में मृदंग, हारमोनियम और बांसुरी की मधुर धुन
ये नाटक न केवल धार्मिक भावनाओं को जागृत करते हैं, बल्कि ब्रज की लोक संस्कृति को भी जीवित रखते हैं।
🌙 मध्यरात्रि का उत्सव: आनंद की पराकाष्ठा
ठीक रात के बारह बजे का क्षण जन्माष्टमी का चरम होता है। मंदिरों में शंख और घंटियों की गूंज, जय-जयकार की आवाज, और भक्तों का भावपूर्ण गायन वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है।
इस समय भगवान का पंचामृत अभिषेक किया जाता है — जिसमें दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल से स्नान कराया जाता है। फिर उन्हें नये वस्त्र, फूलों के आभूषण और मुकुट पहनाकर झूले पर बैठाया जाता है।
भक्तजन बारी-बारी से झूला झुलाते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह क्षण ऐसा होता है कि हर किसी के चेहरे पर संतोष और खुशी साफ झलकती है।
🌺 दिन-रात चलने वाला दर्शन और मेल-मिलाप
दिन में झांकियों का दर्शन करते हुए लोग ब्रज के गलियारों में घूमते हैं, वहीं रात में लाइट और सजावट के बीच झांकियों की भव्यता और भी निखर जाती है।
- बाहर से आने वाले यात्री स्थानीय भोजन और मिठाइयों का स्वाद लेते हैं।
- प्रसाद वितरण और भजन-कीर्तन से माहौल भक्तिमय बना रहता है।
- यह पर्व लोगों को एक-दूसरे से जोड़ता है, चाहे वे किसी भी क्षेत्र या भाषा के हों।
📜 आस्था, कला और संस्कृति का संगम
मथुरा-वृंदावन की जन्माष्टमी में सजने वाली झांकियां सिर्फ आंखों को आनंद नहीं देतीं, बल्कि मन को भी शांति और भक्ति से भर देती हैं। यहां का हर दृश्य यह एहसास दिलाता है कि भगवान की लीला केवल कहानियों में नहीं, बल्कि लोगों की भावनाओं और संस्कृति में भी जीवित है।
और अगर आप जन्माष्टमी के शुभ मुहूर्त और पूजा विधि की पूरी जानकारी चाहते हैं, तो यह विशेष लेख अवश्य पढ़ें।