मेरठ की एक प्रमुख यूनिवर्सिटी में हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने छात्र समुदाय को हैरानी में डाल दिया है। विश्वविद्यालय परिसर में हुए एक मामूली प्रदर्शन के बाद 23 छात्रों को ₹5 लाख के शांति बॉन्ड भरने के नोटिस भेजे गए हैं।
प्रशासन का कहना है कि यह कार्यवाही “शांति भंग” की आशंका के तहत की गई है, जबकि छात्र पक्ष इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर कुठाराघात मान रहा है।
यह मामला न केवल मेरठ बल्कि देशभर में छात्र राजनीति और उनके अधिकारों को लेकर एक नई बहस खड़ा कर रहा है।
📌 किस आधार पर मिला नोटिस?
इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत तब हुई जब कुछ छात्र विश्वविद्यालय परिसर में एक स्थानीय मुद्दे को लेकर अपनी आवाज़ उठा रहे थे। छात्रों ने किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ नहीं की और न ही कोई हिंसात्मक गतिविधि की सूचना है।
प्रशासन ने इसे ‘शांति भंग’ की श्रेणी में रखते हुए प्रक्रिया शुरू की और 23 छात्रों को नोटिस थमा दिया गया।
इन छात्रों को भारतीय कानून की धारा 107/116 के तहत कार्रवाई का सामना करना पड़ा, जिसके तहत यदि किसी व्यक्ति से शांति भंग की आशंका हो, तो उसे बॉन्ड भरकर आश्वासन देना होता है कि वह भविष्य में ऐसा कोई कृत्य नहीं करेगा।
इस बॉन्ड की राशि ₹5 लाख रखी गई, जो छात्रों के लिए न केवल भारी है बल्कि मानसिक रूप से भी दबाव डालने वाली है।
🎓 छात्रों की प्रतिक्रिया और सवाल
छात्रों ने इस कदम को अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक बताया है। उनका कहना है कि ना तो कोई हिंसा हुई, ना ही किसी तरह का गैरकानूनी कृत्य किया गया, फिर भी इस प्रकार का नोटिस देना न केवल गलत है बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है।
कई छात्रों ने यह भी सवाल उठाए कि बिना किसी एफआईआर या गिरफ्तारी के केवल आशंका के आधार पर इतनी बड़ी धनराशि के बॉन्ड की मांग कैसे की जा सकती है?
“क्या अब शांतिपूर्ण तरीके से सवाल पूछना भी अपराध हो गया है?” – इस सवाल ने यूनिवर्सिटी के गलियारों से लेकर सोशल मीडिया तक बहस छेड़ दी है।
Meerut यूनिवर्सिटी के 23 छात्रों को ₹5 लाख के बॉन्ड पर रखा गया!
शांतिभंग के आरोप में कोर्ट ने छात्र नेताओं सहित सभी को एक साल तक विशेष शर्तों के साथ बाउंड किया है।https://t.co/XQO2CApnNC#MeerutUniversity #StudentBondNotice #PeaceBreach #CCSUStudents pic.twitter.com/y9OWSDIM1E— Zeehulchul (@Zeehulchulnews) July 4, 2025
🏛️ प्रशासन की दलील: व्यवस्था बनाना जरूरी
प्रशासन का तर्क है कि यह कार्यवाही पूरी तरह सावधानी के तौर पर की गई है। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय का माहौल बिगड़ने से रोकने के लिए यह जरूरी था कि पहले से ही स्थिति को नियंत्रित किया जाए।
उनका यह भी कहना है कि पहले हुए घटनाक्रमों से सीख लेकर यह कदम उठाया गया ताकि कोई बड़ा विवाद न हो।
प्रशासन इस कदम को ‘रोकथाम’ का तरीका मान रहा है, जबकि छात्र इसे ‘दमन’ का प्रयास।
कई बार ऐसा देखा गया है कि छात्र संगठनों द्वारा अचानक की गई गतिविधियां बड़े स्तर पर बढ़ सकती हैं, जिससे कानून-व्यवस्था पर असर पड़ता है – इसी चिंता को आधार बनाकर नोटिस जारी किया गया।
📱 सोशल मीडिया और अभिव्यक्ति की आज़ादी का प्रश्न
इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर छात्रों और नागरिकों की तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स पर #StudentsVoice और #UniversityRights जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
लोगों का मानना है कि अगर विश्वविद्यालयों में भी छात्रों की आवाज़ को दबाया जाएगा, तो लोकतंत्र का क्या मतलब रह जाएगा?
“क्या अब सवाल पूछना और अपनी बात रखना भी जुर्म बन गया है?” – सोशल मीडिया पर यह सवाल लगातार उभर रहा है।
छात्रों का मानना है कि यह मामला सिर्फ एक विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन सभी आवाज़ों के लिए खतरा है जो अपने हक के लिए खड़े होते हैं।
⚖️ कानूनी पहलू: धारा 107/116 क्या है?
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 107 और 116 ऐसी धाराएं हैं जो व्यक्ति विशेष से भविष्य में शांति भंग की आशंका के आधार पर कार्रवाई की अनुमति देती हैं।
धारा 107 के तहत, अगर किसी व्यक्ति से सार्वजनिक शांति भंग होने की संभावना है, तो प्रशासन उसे नोटिस जारी कर सकता है। वहीं धारा 116 उस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का रास्ता है, जिसके तहत व्यक्ति से बॉन्ड भरवाकर आश्वासन लिया जाता है।
यह कानून पूरी तरह से एहतियाती है, लेकिन कई मामलों में इसका दुरुपयोग भी देखा गया है, खासकर तब जब आरोप सिद्ध भी नहीं हुए हों और व्यक्ति पर केवल संदेह के आधार पर यह कदम उठाया जाए।
छात्रों के मामले में यही सवाल खड़ा हो रहा है — क्या केवल प्रदर्शन में शामिल होने से कोई ‘खतरा’ माना जा सकता है?
🧭 आगे का रास्ता
इस विवाद ने छात्रों और प्रशासन के बीच भरोसे की दीवार को हिला दिया है।
एक तरफ छात्र हैं जो अपने अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े हैं, और दूसरी तरफ प्रशासन है जो शांति और व्यवस्था बनाए रखने की बात कर रहा है।
इस मामले में आगे क्या होगा यह आने वाले दिनों में पता चलेगा, लेकिन इतना तो तय है कि यह मुद्दा सिर्फ एक कानूनी प्रश्न नहीं है बल्कि यह अभिव्यक्ति, लोकतंत्र और छात्रों की स्वतंत्रता का भी विषय है।
उम्मीद की जा सकती है कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत का रास्ता खुले और किसी निष्पक्ष मंच के जरिए समाधान निकले।
📝अगर आपको लगता है कि छात्रों के साथ न्याय होना चाहिए या प्रशासन का कदम सही था — तो अपनी राय नीचे कमेंट में ज़रूर साझा करें।