उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखीमपुर खीरी जिले के मुस्तफाबाद गांव का नाम बदलकर कबीरधाम करने का प्रस्ताव रखा है। यह घोषणा उन्होंने हाल ही में लखीमपुर खीरी में आयोजित स्मृति प्राकट्योत्सव मेला-2025 में की। इस कदम का मकसद संत कबीर की दिव्य विरासत को पुनर्जीवित करना है, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का अहम हिस्सा है। प्रदेश सरकार इस निर्णय के जरिये सामाजिक सद्भाव और सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ावा देना चाहती है।
मुस्तफाबाद का इतिहास और कबीरधाम का सांस्कृतिक महत्व
उत्तर प्रदेश सरकार ने मुस्तफाबाद गांव का नाम बदलकर कबीरधाम करने का प्रस्ताव रखा है, जो संत कबीर की सांस्कृतिक विरासत को सम्मानित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसी प्रकार, राज्य की पर्यटन नीतियों में भी तेजी आई है, जैसा कि हाल ही में घोषणा हुई कि जंगल सफारी उत्तर प्रदेश में दो हफ्ते जल्दी शुरू होंगी, जिससे वहां के प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता का बेहतर उपयोग संभव होगा। यह दोनों पहलें राज्य के सांस्कृतिक और पर्यावरणीय विकास को दिखाती हैं।
प्रस्ताव का विवरण और कारण
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि वर्तमान में मुस्तफाबाद गांव में मुस्लिम आबादी नहीं है। इस कारण और संत कबीर की विरासत के सम्मान में नाम परिवर्तन आवश्यक है। उन्होंने कहा कि पुराने नाम से क्षेत्र की पूर्व पहचान मिटने लगी थी, इसलिए इसे कबीरधाम करना समय की मांग है। यह प्रस्ताव बहुत जल्द प्रशासनिक स्तर पर मंजूरी के लिए भेजा जाएगा और अंतिम स्वरूप प्राप्त करने के बाद इसका कार्यान्वयन होगा।
मैंने यहां गांव का नाम पूछा तो बताया गया कि गांव का नाम है मुस्तफाबाद, एक भी मुस्लिम आबादी यहां नहीं रहती है, लेकिन नाम मुस्तफाबाद हो गया। हमने कहा कि अब ये नाम बदलना चाहिए। ‘कबीरधाम’ इसका नाम रखा जाए। हम प्रस्ताव मंगाकर इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाएंगे।
यही है आत्मीयता का भाव।… pic.twitter.com/LmZ7DJ45by
— CM Office, GoUP (@CMOfficeUP) October 27, 2025
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
इस प्रस्ताव ने राजनीतिक दलों और जनता में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। कुछ लोग इसे सांस्कृतिक पुनरुत्थान का सही कदम मानते हैं, जबकि अन्य इसे विवादित भी बताते हैं। सामाजिक विश्लेषकों का कहना है कि यह फैसला स्थानीय स्तर पर सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ावा देगा, परन्तु इसे शांतिपूर्वक और संवेदनशीलता से लागू करना आवश्यक है।
उत्तर प्रदेश में नाम परिवर्तन का व्यापक संदर्भ
उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछली सरकारों के विरुद्ध कई स्थानों के नाम बदलने का अभियान चलाया है। इसके अंतर्गत अयोध्या (फैजाबाद), प्रयागराज (इलाहाबाद) जैसे शहरों के नाम बदले गए हैं। यह अभियान क्षेत्रीय और सांस्कृतिक पहचान को सशक्त बनाने का एक प्रयास है। इस संदर्भ में मुस्तफाबाद को कबीरधाम नाम देना इसी प्रक्रिया का हिस्सा माना जा सकता है।
उत्तर प्रदेश सरकार न केवल सांस्कृतिक विरासत को सशक्त बनाने के कदम उठा रही है बल्कि प्रदेश के पर्यावरण संरक्षण एवं पर्यटन क्षेत्र को भी नई दिशा देने में अग्रसर है। इसी संदर्भ में हाल ही में यह घोषणा हुई है कि उत्तर प्रदेश में जंगल सफारी दो हफ्ते पहले शुरू होंगी, जिससे प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। यह पहल पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में भी सहायक होगी। सांस्कृतिक नाम परिवर्तनों के साथ-साथ इस तरह के पर्यावरणीय और पर्यटन विकास के प्रयास यह दर्शाते हैं कि उत्तर प्रदेश न केवल अपनी ऐतिहासिक पहचानों को संजो रहा है, बल्कि भविष्य की समृद्धि और संतुलित विकास को भी कायम रखना चाहता है।
प्रशासनिक प्रक्रिया और क्रियान्वयन
नाम परिवर्तन के लिए प्रस्ताव संबंधित सरकारी विभागों को भेजा जाएगा, जहां से इसे आवश्यक समस्त स्वीकृतियां मिलेंगी। स्वीकृति मिलने के बाद जिला प्रशासन और अन्य सरकारी निकायों द्वारा आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। नए नाम को सरकारी दस्तावेजों, सड़क चिन्हों, नक्शों तथा अन्य सभी आधिकारिक अभिलेखों में दर्ज किया जाएगा।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
कबीरधाम नामकरण से यह संदेश जाएगा कि संत कबीर की शिक्षाएं और उनकी सांस्कृतिक विरासत आज भी हमारे सामाजिक ताने-बाने में जीवित हैं। यह कदम युवाओं और समाज के सभी वर्गों को अपनी परंपराओं, जाति और धर्म से ऊपर उठकर एकता और सहिष्णुता की ओर प्रेरित करेगा। साथ ही, यह नाम परिवर्तन स्थानीय एकात्मता को बढ़ावा देने के साथ क्षेत्र की छवि को भी सुदृढ़ करेगा।
निष्कर्ष
मुस्तफाबाद का नाम कबीरधाम करने का प्रस्ताव न केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक एकता और सांस्कृतिक सम्मान को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह परिवर्तन संत कबीर की अमूल्य शिक्षाओं को फिर से लोगों के बीच जीवित करेगा और क्षेत्रीय गौरव को नई पहचान देगा। इस पहल पर समाज के विभिन्न वर्गों से प्रतिक्रियाएं और चर्चाएं इस परिवर्तन को और भी सार्थक बनाएंगी।
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