इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच लंबे समय से चला आ रहा संघर्ष एक बार फिर सुर्ख़ियों में है। इस बार वजह है इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का बड़ा बयान। उन्होंने घोषणा की कि यॉर्डन नदी के पश्चिम में कभी कोई फ़िलिस्तीनी राज्य नहीं बनेगा। यह बयान ऐसे समय में आया है जब यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फ़िलिस्तीन को राज्य के रूप में मान्यता देने का निर्णय लिया है। इन देशों का मानना है कि यह कदम शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने और दो-राज्य समाधान की दिशा में प्रयास है। लेकिन नेतन्याहू ने इसे आतंकवाद को इनाम देने जैसा बताया और इसे सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा करार दिया।
इज़राइल-फ़िलिस्तीन विवाद
इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच संघर्ष की जड़ें दशकों पुरानी हैं। 1948 में इज़राइल के गठन और उसके बाद हुए युद्धों ने क्षेत्र की राजनीतिक सीमाओं को बदल दिया। फ़िलिस्तीनी लोग लंबे समय से स्वतंत्र राज्य की मांग कर रहे हैं, जबकि इज़राइल सुरक्षा चिंताओं और धार्मिक-ऐतिहासिक कारणों से इस मांग को स्वीकार नहीं करता।
दो-राज्य समाधान, जिसमें इज़राइल और फ़िलिस्तीन अलग-अलग लेकिन मान्यता प्राप्त राज्यों के रूप में अस्तित्व में रहें, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा चर्चा का विषय रहा है। हालांकि, बार-बार की हिंसा, बस्तियों का विस्तार और राजनीतिक अविश्वास इस समाधान को कभी हकीकत में बदलने नहीं देते।
“There will be no Palestinian state”, Netanyahu hits back strongly at the UK, Canada and Australia. pic.twitter.com/knOmdN3FsL
— Raja Muneeb (@RajaMuneeb) September 21, 2025
यूके, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया का फैसला
हाल ही में ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फ़िलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने का ऐलान किया। इन देशों ने कहा कि यह फैसला मानवीय संकट को देखते हुए और शांति प्रक्रिया को गति देने के लिए लिया गया है। इनके अनुसार, फ़िलिस्तीनी लोगों को राज्य का अधिकार देकर संघर्ष का समाधान खोजने की दिशा में एक मजबूत संदेश दिया गया है।
यह कदम दर्शाता है कि वैश्विक राजनीति में फ़िलिस्तीन को लेकर समर्थन बढ़ रहा है। पश्चिमी देशों की यह पहल अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर इज़राइल पर और दबाव डाल सकती है।
नेतन्याहू का बयान और चेतावनी
नेतन्याहू ने इन तीनों देशों के फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि “यॉर्डन नदी के पश्चिम में कभी कोई फ़िलिस्तीनी राज्य नहीं बनेगा”। यह बयान दर्शाता है कि इज़राइल किसी भी अंतरराष्ट्रीय मान्यता को अपने लिए बाध्यकारी नहीं मानता।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि फ़िलिस्तीन को मान्यता देने वाले देश आतंकवादियों को बड़ा इनाम दे रहे हैं। नेतन्याहू का कहना था कि ऐसे कदम इज़राइल की सुरक्षा को कमजोर करेंगे और संघर्ष को और गहरा देंगे।
इसके साथ ही उन्होंने संकेत दिया कि इज़राइल बस्तियों का विस्तार जारी रखेगा और इस नीति में किसी भी तरह का बदलाव संभव नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ
फ़िलिस्तीन की मान्यता पर दुनियाभर में अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। फ़िलिस्तीनी नेतृत्व ने इसे स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया है। वहीं कुछ देशों का मानना है कि इस फैसले से शांति प्रक्रिया को नया जीवन मिल सकता है।
दूसरी ओर, कुछ बड़े राष्ट्रों ने कहा कि केवल मान्यता देना काफी नहीं है। जब तक दोनों पक्ष वार्ता की मेज पर नहीं बैठते और विवादित मुद्दों का हल नहीं निकलता, तब तक स्थायी शांति संभव नहीं है।
अरब देशों ने इस कदम का स्वागत किया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि अब दुनिया को वास्तविक मानवीय सहायता और राजनीतिक दबाव बढ़ाने की जरूरत है।
भारत और एशिया का दृष्टिकोण
भारत ने हमेशा संतुलित नीति अपनाई है। एक ओर वह फ़िलिस्तीनी लोगों के अधिकारों का समर्थन करता है, तो दूसरी ओर इज़राइल के साथ उसके मजबूत कूटनीतिक और सुरक्षा संबंध भी हैं। ऐसे में भारत की स्थिति तटस्थ और व्यवहारिक रहती है।
चीन और जापान जैसे देशों ने भी कहा है कि केवल मान्यता देने से समस्या हल नहीं होगी। उनके अनुसार, स्थायी शांति के लिए सीधे संवाद और भरोसेमंद समझौते ज़रूरी हैं।
The wanted terrorist speaks about his terrorism..
“There will be NO Palestinian state”
Netanyahu rejected the idea of Palestinian state & said he will deliver Israel’s answer to recent recognitions of Palestine by Western countries once he returns from the US & UN G. Assembly. pic.twitter.com/w9Q8SMi5gP— Khan, BA🇵🇸 (@leonsbakhan) September 21, 2025
संभावित प्रभाव
इस पूरी घटनाक्रम से शांति प्रक्रिया और भी जटिल हो सकती है। अगर पश्चिमी देशों का दबाव बढ़ता है तो इज़राइल अपने रुख को और सख्त कर सकता है। इससे वार्ता की संभावना कमजोर हो जाएगी। दूसरी ओर, अगर और देश फ़िलिस्तीन को मान्यता देते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इज़राइल के लिए अकेलापन बढ़ सकता है।
वैश्विक राजनीति पर ऐसे निर्णयों का असर अलग-अलग देशों की अर्थव्यवस्था और कूटनीति पर भी दिखता है। हाल ही में अमेरिका की नीतियों को लेकर उठी चिंताओं ने भारतीय आईटी सेक्टर को भी प्रभावित किया था। इसी संदर्भ में पढ़ें हमारी यह रिपोर्ट: Donald Trump’s $100K Fee on H1B – Indian IT Sector को लेकर चिंताएँ।
बस्तियों का विस्तार और हिंसक झड़पें अगर जारी रहीं, तो यह स्थिति लंबे समय तक अस्थिरता बनाए रखेगी। वहीं, अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय एकजुट होकर वार्ता का दबाव बनाए, तो शांति की राह खुल सकती है।
निष्कर्ष
नेतन्याहू का यह बयान कि “यॉर्डन नदी के पश्चिम में कोई फ़िलिस्तीनी राज्य नहीं बनेगा” वैश्विक राजनीति में बड़ा संदेश है। यूके, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की ओर से फ़िलिस्तीन की मान्यता ने उम्मीदें जगाई हैं, लेकिन इज़राइल के सख्त रुख ने शांति की राह को और कठिन बना दिया है।
अब सवाल यही है कि क्या यह मान्यता वास्तव में दो-राज्य समाधान की दिशा में ठोस कदम बनेगी या फिर यह सिर्फ कूटनीतिक इशारा रह जाएगी।
पाठकों से सवाल:
आपके अनुसार, क्या फ़िलिस्तीन की मान्यता शांति की राह खोल पाएगी या इससे संघर्ष और गहराएगा? अपनी राय नीचे कमेंट में साझा करें।