उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से प्रस्तावित स्कूल मर्जिंग (विलय) नीति के खिलाफ नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) ने राज्य भर में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। संगठन का दावा है कि इस कदम से प्रदेश के 27,000 से अधिक ग्रामीण स्कूलों पर ताले लग सकते हैं, जिससे लाखों छात्रों की पढ़ाई पर असर पड़ेगा।
NSUI का आरोप: गरीब और ग्रामीण बच्चों की शिक्षा खतरे में
NSUI का कहना है कि सरकार की यह नीति सीधे तौर पर उन गांवों को प्रभावित करेगी जहां पहले से ही शिक्षा संसाधनों की भारी कमी है। संगठन के मुताबिक, अगर इस योजना को लागू किया गया तो हजारों बच्चे, विशेषकर गरीब और दलित समुदायों के, शिक्षा से वंचित हो जाएंगे।
संगठन ने आरोप लगाया कि:
- कई छोटे स्कूलों को बड़े स्कूलों में जोड़ने की योजना RTE एक्ट (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) का सीधा उल्लंघन है।
- बच्चों को अब अधिक दूरी तय करनी पड़ेगी, जिससे खासकर छात्राओं की पढ़ाई पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
- ये कदम शिक्षा को सुलभ बनाने की बजाय और जटिल बना सकता है।
Vidhan Sabha Gherao | Lucknow
NSUI workers were detained during a massive Vidhan Sabha Gherao in Lucknow, protesting against the closure of 5000 government schools by the Yogi-Modi government.
Shutting down schools means shutting the doors of opportunity for lakhs of children.… pic.twitter.com/eXI8qlTQMa
— NSUI (@nsui) July 1, 2025
कई जिलों में प्रदर्शन, ज्ञापन सौंपने की योजना
NSUI कार्यकर्ताओं ने लखनऊ, मेरठ, कानपुर और वाराणसी जैसे शहरों में प्रदर्शन किए हैं। कुछ जगहों पर छात्रों ने शांति मार्च निकालकर सरकार के फैसले के विरोध में आवाज़ उठाई।
संगठन ने साफ किया है कि अगर सरकार ने योजना को वापस नहीं लिया, तो राज्यव्यापी आंदोलन शुरू किया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि जल्द ही मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा जाएगा जिसमें नीति रद्द करने की मांग रखी जाएगी।
आज लखनऊ में कांग्रेस NSUI ने प्रदर्शन किया। ये विरोध शिक्षा कि लौ जलाये रखने के लिए था। यूपी सरकार 5 हजार स्कूलों का मर्जर कर रही है। जिसके बाद बेरोजगारी बढ़ेगी। वो बच्चे जिसके पास संसाधन का आभाव है पैदल चल कर अपने घर के बगल के विद्यालयों में शिक्षा हासिल कर लेते थे उनके बारे में… pic.twitter.com/ORElZA7c5J
— Sumit Kumar (@skphotography68) July 1, 2025
इसी बीच सरकार की दूसरी योजनाओं को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि यूपी सरकार 1 जुलाई से घर-घर जाकर सर्वे कराने जा रही है, जिससे भी जनप्रतिनिधियों और संगठनों के बीच चिंताएं देखी जा रही हैं।
क्या कहती है सरकार की स्कूल मर्जिंग नीति?
सरकार का कहना है कि यह नीति उन स्कूलों को मिलाने के लिए बनाई गई है जहां छात्रों की संख्या बहुत कम है, अक्सर 20 से भी कम छात्र हैं। ऐसे में संसाधनों का समुचित उपयोग करना मुश्किल हो जाता है।
योजना के मुताबिक:
- छोटे स्कूलों को पास के बड़े स्कूलों में मिलाकर संसाधनों और शिक्षकों का बेहतर उपयोग किया जा सकेगा।
- इससे छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सकेगी और शिक्षकों की उपस्थिति व जवाबदेही बढ़ेगी।
हालांकि सरकार की ओर से अब तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि स्कूलों की कुल संख्या कितनी घटाई जाएगी।
शिक्षाविदों और विशेषज्ञों की चिंताएं
शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि योजना का उद्देश्य सही हो सकता है लेकिन इसकी व्यवहारिकता और सामाजिक असर को गंभीरता से जांचने की ज़रूरत है।
- ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की स्कूल ड्रॉपआउट दर पहले से ही अधिक है। दूरी बढ़ने पर ये समस्या और गहराएगी।
- स्कूल मर्जिंग से स्थानीय रोजगार (स्थानीय शिक्षक, सहायिका आदि) भी प्रभावित हो सकते हैं।
- हर गांव की भौगोलिक और सामाजिक स्थिति अलग होती है, ऐसे में एकसमान नीति लागू करना व्यावहारिक नहीं हो सकता।
ग्रामीण जनता की राय: “हमारे बच्चों का भविष्य छीन रहे हैं”
कई गांवों में इस नीति के खिलाफ आवाज़ उठने लगी है। कुछ अभिभावकों का कहना है कि स्कूल दूर होने से वे बच्चियों को पढ़ने नहीं भेज पाएंगे। कई पंचायतों ने भी इस पर आपत्ति जताई है।
वाराणसी के एक ग्रामीण ने कहा,
“हमारे बच्चों के लिए यही स्कूल था, अब वहां तक रोज़ भेजना मुश्किल होगा।”
कुछ क्षेत्रों में ग्राम प्रधानों ने ज्ञापन सौंपने की बात कही है, जबकि कई सामाजिक संगठन भी इस मुद्दे को उठाने लगे हैं।
NSUI की मांगें और रणनीति: “नीति वापस लो, सुधार लाओ”
NSUI ने मांग की है कि सरकार इस नीति को तुरंत प्रभाव से रद्द करे या इसकी समीक्षा करे। संगठन चाहता है कि:
- छोटे स्कूलों को बंद करने के बजाय शिक्षकों और संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाई जाए।
- स्कूलों को जोड़ने से पहले स्थानीय स्तर पर सर्वे और रायशुमारी की जाए।
- RTE के नियमों का सख्ती से पालन किया जाए।
NSUI के अनुसार, अगर मांगें नहीं मानी गईं तो राज्य भर में प्रदर्शन और सड़क से सदन तक लड़ाई जारी रहेगी।
शिक्षा नीति बनाम व्यावहारिक जरूरतें
उत्तर प्रदेश में स्कूल विलय नीति को लेकर स्थिति जटिल बन गई है। एक ओर सरकार संसाधनों के बेहतर उपयोग की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर NSUI और कई शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम ग्रामीण और हाशिए पर मौजूद छात्रों को नुकसान पहुंचा सकता है।
अब देखने वाली बात होगी कि सरकार इस पर पुनर्विचार करती है या नहीं, और NSUI का आंदोलन कितना प्रभावी साबित होता है।