हाल ही में पाकिस्तान की सरकार ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने की घोषणा की थी। यह फैसला उस समय आया जब ट्रंप ने अफगानिस्तान और यूक्रेन मुद्दों पर कथित मध्यस्थता की पेशकश की थी। इस बयान की वैश्विक राजनीति में हलचल मचना लाजमी था।
लेकिन जो बात सबको चौंकाने वाली लगी, वह थी पाकिस्तान का अगला कदम। मात्र 24 घंटे बाद ही अमेरिका ने ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर हवाई हमले किए, और पाकिस्तान ने उस पर तीखी प्रतिक्रिया दी।
“नोबेल की बात करते-करते पाकिस्तान अगले ही दिन अमेरिका पर बरस पड़ा।”
पाकिस्तान का दोहरा रवैया: तारीफ से तीखी आलोचना तक
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने शनिवार को एक प्रेस ब्रीफिंग में अमेरिका की कार्रवाई को “खतरनाक और उकसाने वाला” बताया। उन्होंने कहा कि ईरान को आत्मरक्षा का अधिकार है और ऐसे हमले अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए गंभीर खतरा हैं।
ट्रंप की तारीफ से लेकर अमेरिका की निंदा तक की यह यात्रा साफ संकेत देती है कि पाकिस्तान घरेलू और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बीच संतुलन नहीं बना पा रहा है।
— Ishaq Dar (@MIshaqDar50) June 22, 2025
“नोबेल की सिफारिश के 24 घंटे के भीतर ही अमेरिका पर ‘आक्रामक और असंवेदनशील’ करार।”
अमेरिका-ईरान टकराव की ताज़ा स्थिति
शुक्रवार को अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर लक्षित हमले किए। अमेरिका का दावा था कि यह कदम उसकी ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के लिए जरूरी था। व्हाइट हाउस की ओर से कहा गया कि यह हमला ईरान की ओर से हाल ही में सामने आए ड्रोन हमले की जवाबी कार्रवाई थी। वहीं ईरान ने इन हमलों को ‘अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन’ करार दिया और कहा कि वह आत्मरक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगा।
इसी बीच पश्चिम एशिया में पहले से ही तनाव बढ़ा हुआ है। हाल ही में इज़राइल-ईरान संघर्ष ने भी दूसरे सप्ताह में प्रवेश कर लिया है, जिससे पूरे क्षेत्र में अशांति और अस्थिरता की स्थिति बनी हुई है।
भारत की चुप्पी और रणनीतिक संतुलन
इस पूरे घटनाक्रम पर भारत सरकार ने कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। यह चुप्पी असामान्य नहीं है, क्योंकि भारत हमेशा से पश्चिम एशिया में तटस्थता और संतुलन की नीति अपनाता आया है।
भारत की ईरान और अमेरिका दोनों से रणनीतिक साझेदारी है। ऊर्जा आयात और व्यापारिक संबंधों के कारण भारत किसी पक्ष के समर्थन या विरोध से बचना चाहता है।
भारत फिलहाल स्थिति का आंकलन कर रहा है। हाल ही में हमने विश्व योग दिवस 2025 पर भी देखा कि भारत कैसे संतुलन साधने की कोशिश करता है।
“भारत फिलहाल देखो और इंतजार करो की नीति पर चल रहा है।”
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं: वैश्विक समुदाय की चिंता
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने ईरान पर अमेरिकी हमले को लेकर चिंता जाहिर की है। यूएन ने कहा कि ऐसे हमले क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ा सकते हैं और शांति प्रयासों पर पानी फेर सकते हैं।
यूरोपियन यूनियन ने भी अमेरिका से संयम बरतने की अपील की है, वहीं रूस और चीन ने हमलों की आलोचना करते हुए अमेरिका की नीति को “द्वंद्वात्मक” कहा।
“यूएन ने कहा – क्षेत्रीय शांति खतरे में पड़ सकती है।”
पाकिस्तान की राजनीतिक मंशा क्या है?
पाकिस्तान द्वारा ट्रंप की तारीफ करना और फिर अगले दिन अमेरिका की आलोचना करना कोई साधारण राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं मानी जा सकती।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह बयानबाज़ी पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति और अमेरिकी सत्ता से नजदीकी साधने की एक कोशिश थी। ट्रंप की वापसी की संभावनाओं को देखते हुए पाकिस्तान उन्हें खुश रखना चाहता है।
वहीं सेना और आईएसआई की अंदरूनी भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जो विदेश नीति को गुप्त रूप से प्रभावित करती रही है।
“ट्रंप को नोबेल की सिफारिश क्या सिर्फ राजनीतिक ड्रामा था?”
शांति की उम्मीद या युद्ध की आहट?
यह पूरा घटनाक्रम दर्शाता है कि वैश्विक राजनीति कितनी अस्थिर और असंवेदनशील हो सकती है। पाकिस्तान द्वारा ट्रंप को शांति के लिए नोबेल देने की सिफारिश और अगले ही दिन अमेरिका की आलोचना करना यह बताता है कि नीति और कूटनीति में कितनी तेजी से पलटाव आ सकता है।
ईरान और अमेरिका के बीच तनाव एक बार फिर चरम पर है। भारत, चीन और रूस जैसे देश फिलहाल स्थिति को देखकर अपनी रणनीति तय कर रहे हैं।
“शांति पुरस्कार की चर्चा के बीच दुनिया एक नए संघर्ष के मुहाने पर खड़ी दिख रही है।”