प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया साइप्रस यात्रा केवल एक सामान्य राजनयिक दौरा नहीं, बल्कि भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत है। साइप्रस, जो तुर्की का लंबे समय से विरोधी रहा है, साल 2026 में यूरोपीय संघ (EU) की अध्यक्षता संभालेगा। ऐसे समय में मोदी का वहां पहुंचना, न केवल रणनीतिक रूप से अहम है बल्कि यह भारत की “Act West” नीति की गंभीरता को भी दर्शाता है।
भारत पहले ही दक्षिण एशिया, अफ्रीका और खाड़ी देशों में अपनी भूमिका को मजबूत कर चुका है। अब यूरोपीय सहयोग पर फोकस स्पष्ट है।
साइप्रस: तुर्की का प्रतिद्वंदी और भारत का नया साझेदार
साइप्रस और तुर्की के बीच रिश्ते दशकों से तनावपूर्ण हैं। 1974 के बाद से उत्तर साइप्रस पर तुर्की का कब्ज़ा है, जिसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त नहीं है। तुर्की और साइप्रस के संबंधों में अक्सर कटुता देखी जाती रही है।
भारत ने ऐतिहासिक रूप से साइप्रस के एकीकृत और संप्रभु स्वरूप का समर्थन किया है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी का वहां जाना, तुर्की के लिए एक परोक्ष संदेश माना जा सकता है – कि भारत अब केवल निष्पक्ष दर्शक नहीं, बल्कि संतुलित कूटनीति का सक्रिय पक्षकार है।
India looks forward to deepening friendship with Cyprus!
Here are highlights from the welcome today… pic.twitter.com/JOU7lzF9EJ
— Narendra Modi (@narendramodi) June 15, 2025
भारत-साइप्रस संबंध: व्यापार, रक्षा और शिक्षा में नई साझेदारी
पीएम मोदी की यात्रा के दौरान साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडुलाइड्स के साथ हुई बैठक में कई मुद्दों पर चर्चा हुई – खासकर व्यापार, शिक्षा, रक्षा और डिजिटल सहयोग। भारत और साइप्रस के बीच वर्तमान व्यापार आंकड़े भले सीमित हों, परंतु दोनों देशों के बीच व्यापक संभावनाएं हैं।
भारत साइप्रस के माध्यम से यूरोपीय बाजारों में प्रवेश और तकनीकी निवेश की संभावनाएं तलाश रहा है। वहीं साइप्रस भारतीय छात्रों और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए शिक्षा और वीज़ा संबंधी सुधारों पर विचार कर रहा है।
यूरोपीय संघ की अध्यक्षता 2026: भारत के लिए अवसर
साइप्रस वर्ष 2026 में यूरोपीय संघ की अध्यक्षता करेगा। यह भारत के लिए एक अहम मौका है, क्योंकि EU भारत का एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार है। यदि भारत पहले से साइप्रस के साथ रिश्ते मजबूत करता है, तो आने वाले समय में EU स्तर पर नीति-निर्माण में भारतीय हितों का समर्थन आसान हो सकता है।
यह रणनीति भारत को चीन और अमेरिका के बीच संतुलन बनाए रखने में भी मदद करेगी, क्योंकि यूरोप भारत के “मल्टी-अलाइंमेंट” दृष्टिकोण में एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
Ενίσχυση των επιχειρηματικών δεσμών!
Ο Πρόεδρος Νίκος Χριστοδουλίδης και εγώ συναντηθήκαμε με κορυφαίους Διευθύνοντες Συμβούλους, με στόχο την ενίσχυση των εμπορικών δεσμών μεταξύ Ινδίας και Κύπρου. Τομείς όπως η καινοτομία, η ενέργεια, η τεχνολογία και άλλοι προσφέρουν… pic.twitter.com/GtrI1J40tm
— Narendra Modi (@narendramodi) June 15, 2025
भारत की विदेश नीति में बदलाव की बुनियाद
पिछले कुछ वर्षों में भारत की विदेश नीति में बड़े बदलाव देखे गए हैं – खासकर चीन, खाड़ी, अफ्रीका और अब यूरोप के साथ जुड़ाव में। साइप्रस यात्रा इस क्रम में एक और कड़ी है। यह स्पष्ट करता है कि भारत अब केवल प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं, बल्कि पहल करने वाला वैश्विक नेतृत्व चाहता है।
PM मोदी की यह रणनीति उस समय भी नज़र आई जब उन्होंने ब्रिक्स, SCO और G20 जैसे मंचों पर भारत की स्थिति को मज़बूती से रखा।
तुर्की को संदेश: वैश्विक कूटनीति में भारत की चतुराई
तुर्की ने अक्सर भारत के खिलाफ पाकिस्तान का समर्थन किया है – चाहे वह कश्मीर मुद्दा हो या यूएन में बयानबाज़ी। ऐसे में मोदी का साइप्रस जाना एक साफ संकेत है कि भारत अब कूटनीतिक संतुलन को अपने पक्ष में मोड़ना जानता है।
यह कदम न तो तुर्की से सीधे टकराव है, और न ही यूरोप को लुभाने की जल्दबाज़ी। यह रणनीतिक चुप्पी और संवाद दोनों का मिश्रण है – जो भारत की “चतुर कूटनीति” को दर्शाता है।
साइप्रस में प्रधानमंत्री का संदेश और साझा बयान
प्रधानमंत्री मोदी और साइप्रस के राष्ट्रपति ने संयुक्त प्रेस वार्ता में लोकतंत्र, नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था और आतंकवाद के खिलाफ साझा रुख पर बल दिया। दोनों नेताओं ने डिजिटल सहयोग, स्किल डेवलपमेंट और जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों पर भी गंभीर चर्चा की।
मोदी का यह कहना कि “भारत और साइप्रस लोकतंत्र की साझा विरासत को मजबूत करने में भरोसा रखते हैं,” न केवल मैत्री की भावना दर्शाता है बल्कि एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण का संकेत भी है।
जैसे हाल ही में अहमदाबाद विमान दुर्घटना ने वैश्विक स्तर पर मानव सुरक्षा और आपात स्थितियों में सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित किया, वैसे ही भारत-साइप्रस सहयोग भी वैश्विक स्थिरता के पक्ष में एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है।
भारत की नई विदेश नीति का संकेत
PM मोदी की साइप्रस यात्रा सिर्फ एक दौरा नहीं, बल्कि भारत की नई वैश्विक सोच का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि भारत अब केवल पारंपरिक साझेदारों तक सीमित नहीं, बल्कि जटिल वैश्विक समीकरणों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए तैयार है।
साइप्रस के साथ बढ़ते संबंधों से भारत न केवल यूरोप में नई रणनीतिक गहराई जोड़ेगा, बल्कि तुर्की जैसे देशों को भी स्पष्ट संदेश देगा – कि भारत अब निर्णायक, वैश्विक और प्रगतिशील विदेश नीति का नेतृत्व कर रहा है।
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