पंजाब सरकार द्वारा लाई गई भूमि पूलिंग नीति एक बार फिर सुर्खियों में है। सरकार इस नीति के ज़रिए विकास कार्यों के लिए निजी ज़मीनों को योजनाबद्ध तरीके से उपयोग में लाना चाहती है, लेकिन किसानों और खेती-किसानी से जुड़े संगठनों का विरोध इस प्रयास के खिलाफ मुखर हो गया है।
इस नीति के तहत सरकार की मंशा यह थी कि किसान अपनी ज़मीन सरकार को अस्थायी रूप से विकास कार्यों हेतु सौंपें, जिसके बदले में उन्हें वार्षिक किराया और विकसित भूखंड लौटाए जाएं। मगर इस नीति के प्रारंभिक स्वरूप पर सवाल उठाए गए—कहा गया कि इससे ज़मीन मालिकों को नुकसान होगा और ज़मीन की वास्तविक क़ीमत से उन्हें वंचित किया जाएगा।
पंजाब कैबिनेट ने नीति में किए ये अहम बदलाव
बढ़ते विरोध को देखते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान की अध्यक्षता में पंजाब कैबिनेट ने 21 जुलाई 2025 को भूमि पूलिंग नीति में कुछ महत्वपूर्ण बदलावों को मंज़ूरी दी। इनमें शामिल हैं:
- “Letter of Intent” की वैधता 15 दिनों से बढ़ाकर अब 21 दिन कर दी गई है।
- वार्षिक किराया ₹3 लाख से बढ़ाकर ₹5 लाख प्रति एकड़ कर दिया गया है।
- भूमि मालिकों की आपत्तियों को निपटाने के लिए एक मूल्यांकन समिति गठित की जाएगी।
- सभी बदलाव मौजूदा और भविष्य की परियोजनाओं पर लागू होंगे।
सरकार का दावा है कि इन बदलावों से किसानों को अब पहले से बेहतर लाभ मिलेगा और उनकी चिंताओं को ध्यान में रखा गया है।
With every acre, Punjab is building trust and progress 🌟
From uninterrupted registries to ₹1L/acre assured income, easy loan access, and flexible land options—Bhagwant Mann’s “Land Pooling” reform is a powerful step toward rural empowerment 🌾🙌🏻 pic.twitter.com/nn6rb0Fvbf
— India Wants Kejriwal (@iwkofficial) July 23, 2025
सरकार की सफाई: ‘भूमि मालिकों को नुकसान नहीं होगा’
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सरकार की मंशा किसी भी भूमि मालिक को नुकसान पहुँचाने की नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नीति पूरी तरह से स्वैच्छिक (voluntary) है और किसी किसान पर ज़मीन देने का दबाव नहीं डाला जाएगा।
सीएम ने यह भी कहा कि नीति के ज़रिए पंजाब में योजनाबद्ध विकास होगा। सरकार पहले भी किसानों और समाज के प्रति अपना कर्तव्य निभा चुकी है।
उदाहरण के लिए, हाल ही में राज्य सरकार ने 115 स्कूलों का नामकरण शहीद भगत सिंह और फौजा सिंह जैसे महानुभावों के नाम पर किया — जिससे समाज में प्रेरणा और सम्मान का भाव बढ़ेगा।
किसानों का विरोध: “यह मुआवज़ा नहीं, यह व्यवसायीकरण है”
किसान संगठनों ने सरकार के संशोधन को खारिज करते हुए विरोध जारी रखा है।
- उनका कहना है कि ₹5 लाख वार्षिक किराया ज़मीन की दीर्घकालिक क़ीमत की तुलना में बहुत कम है।
- किसानों को डर है कि एक बार ज़मीन दी गई तो उसे वापस पाना मुश्किल होगा।
- भारतीय किसान यूनियन (BKU) जैसे संगठन कह रहे हैं कि यह नीति कृषि की कॉर्पोरेटीकरण की दिशा में एक कदम है।
हाल ही में चंडीगढ़ और मोहाली में हुए प्रदर्शन इस विरोध की गंभीरता को दर्शाते हैं। किसानों ने साफ कहा कि अगर सरकार ने नीति को वापस नहीं लिया तो बड़े स्तर पर आंदोलन छेड़ा जाएगा।
नीति से कौन होंगे प्रभावित?
विशेषज्ञों के अनुसार, छोटे किसान इस नीति से सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
- उनके लिए ₹5 लाख का किराया भी जीवन यापन के लिए पर्याप्त नहीं है।
- वहीं, बड़े ज़मींदार और निवेशक वर्ग इस योजना से लाभ उठा सकते हैं।
यह स्थिति नीति में समानता और निष्पक्षता के सिद्धांत को चुनौती देती है।
कई क्षेत्रों में पहले से ज़मीन अधिग्रहण की प्रक्रियाएं किसानों के लिए कष्टदायक रही हैं, जिससे लोगों में अविश्वास की भावना बनी हुई है।
CM of Punjab doesn’t know the details of the land pooling policy and what it has for the farmers whose land ( 60000 acres ) they intend to acquire‼️
This clearly shows that Policies for Punjab are made by the powers in Delhi and for the people of Delhi‼️@AamAadmiParty… pic.twitter.com/7YIMHo45Bw
— Parambans Singh Romana (@ParambansRomana) July 23, 2025
क्या यह नीति सफल हो पाएगी?
हालांकि नीति में संशोधन किए गए हैं, लेकिन इसकी स्वीकार्यता पर अब भी सवाल हैं।
- ज़मीन के मुद्दे पर कोई भी नीति जबरन थोपना उचित नहीं है।
- नीति का दीर्घकालिक प्रभाव तभी सकारात्मक होगा जब सरकार किसानों के साथ निरंतर संवाद बनाए रखे।
- विपक्षी दलों ने भी सरकार पर “जल्दबाज़ी और दबाव की नीति” अपनाने का आरोप लगाया है।
सवाल यह भी है कि जब किसानों का विश्वास नहीं जीता जा सका, तो नीति का ज़मीन पर क्रियान्वयन कितना प्रभावी होगा?
समाधान संवाद में ही है
पंजाब सरकार की ज़मीन पूलिंग नीति और किसानों के विरोध ने एक बार फिर ये दिखा दिया है कि विकास और अधिकार के बीच संतुलन बेहद आवश्यक है।
- सरकार को चाहिए कि वो सिर्फ़ संशोधन न करे बल्कि नीति-निर्माण में किसानों की भागीदारी सुनिश्चित करे।
- किसान वर्ग को भी चाहिए कि विरोध के साथ-साथ बातचीत का रास्ता भी खुला रखें।
योजना का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि कितनी पारदर्शिता और भरोसे के साथ इसे लागू किया जाता है। यही सरकार और किसानों दोनों के लिए लाभदायक होगा।