भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने अगस्त 2025 की समीक्षा बैठक में रेपो रेट को 5.5% पर स्थिर रखने का फैसला किया है। यह लगातार आठवां मौका है जब रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया। केंद्रीय बैंक ने “Withdrawal of Accommodation” की नीति को बरकरार रखते हुए इशारा दिया है कि अभी नीतिगत सख्ती पूरी तरह खत्म नहीं हुई है।
गवर्नर संजय मल्होत्रा ने स्पष्ट किया कि वर्तमान वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए तत्काल कोई बदलाव उपयुक्त नहीं होगा। उनका मानना है कि आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए ब्याज दरों को यथावत रखना जरूरी है।
ट्रंप की टैरिफ चेतावनियों का असर, RBI बनी सतर्क
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर टैरिफ लगाने की चेतावनी और विश्व व्यापार में बढ़ती अस्थिरता के कारण RBI इस समय सावधानीपूर्वक रुख अपनाए हुए है। वैश्विक बाज़ारों में अस्थिरता, डॉलर की मजबूती और चीन-अमेरिका के बीच व्यापार तनावों ने भारत की मौद्रिक नीति पर भी प्रभाव डाला है।
RBI का मानना है कि वैश्विक मंदी और व्यापार नीतियों में अनिश्चितता भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डाल सकती है। इसीलिए, ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखना फिलहाल सबसे सुरक्षित विकल्प माना गया है।
#WATCH | Giving Monetary Policy statement, RBI Governor Sanjay Malhotra says, ” The uncertainties of tariffs are still evolving…”
“The MPC noted that while headline inflation is much lower than projected earlier, it is mainly due to volatile food prices. Inflation is… pic.twitter.com/dLmcCxuDZv
— ANI (@ANI) August 6, 2025
Q1 FY27 के लिए GDP और मुद्रास्फीति के लक्ष्य घोषित
इस बैठक में RBI ने वित्त वर्ष 2026-27 की पहली तिमाही के लिए GDP ग्रोथ का अनुमान 7.1% और मुद्रास्फीति (Inflation) का अनुमान 4.5% लगाया है। यह अनुमान देश की मौजूदा आर्थिक हालत और वैश्विक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है।
Core Inflation में कुछ सुधार जरूर देखा गया है, लेकिन खाद्य पदार्थों की कीमतें अभी भी चिंता का विषय बनी हुई हैं। फूड इंफ्लेशन का असर सीधे तौर पर गरीब और मध्यम वर्ग पर पड़ता है, जिसे नियंत्रित करने के लिए RBI ने रेपो रेट को स्थिर रखा है।
आम जनता के लिए RBI के फैसले का क्या मतलब है?
इस निर्णय का सीधा असर लोन, EMI और बचत पर पड़ता है। रेपो रेट में कोई बदलाव न होने से बैंक भी अपनी ब्याज दरों में बदलाव नहीं करेंगे, जिससे मौजूदा लोन पर EMI यथावत रहेगी। साथ ही, नई होम लोन या पर्सनल लोन लेने वालों को भी ब्याज दर में राहत या बढ़ोतरी नहीं मिलेगी।
FD और बचत खातों पर मिलने वाले ब्याज में भी कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिलेगा। हालांकि, यदि RBI अगले रिव्यू में नरमी बरतता है, तो आने वाले महीनों में लोन सस्ता हो सकते हैं।
यह फैसला उन लोगों के लिए राहत की खबर है जो फिलहाल किसी वित्तीय दबाव में हैं और चाहते हैं कि उनकी मासिक किश्तों में कोई बढ़ोतरी न हो।
बाजार और निवेश पर पड़ने वाला प्रभाव
RBI के इस निर्णय से शेयर बाजार में स्थिरता बनी रहने की संभावना है। ब्याज दर में स्थिरता से निवेशकों को यह संकेत मिलता है कि बाजार में कोई बड़ा झटका नहीं आएगा। इससे बॉन्ड यील्ड, रुपया-डॉलर विनिमय दर, और म्यूचुअल फंड की संभावनाओं पर भी असर पड़ेगा।
बिजनेस सेक्टर को भी इससे एक सकारात्मक संकेत मिला है कि अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे स्थिर हो रही है। छोटे और मझोले उद्योगों को इसका फायदा हो सकता है क्योंकि ब्याज दरों में स्थिरता से उनकी लागत में बड़ा बदलाव नहीं होगा।
गवर्नर संजय मल्होत्रा के बयान की मुख्य बातें
RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा,
“हम अब भी मौद्रिक सख्ती के चक्र के अंत तक नहीं पहुंचे हैं। हमें वैश्विक हालात और घरेलू संकेतकों की निरंतर निगरानी करनी होगी।”
उन्होंने यह भी कहा कि RBI का उद्देश्य केवल मुद्रास्फीति पर नियंत्रण ही नहीं, बल्कि समग्र आर्थिक स्थिरता बनाए रखना भी है। टैरिफ तनाव और वैश्विक अनिश्चितता को देखते हुए भविष्य की नीति बदलावों पर भी नजर रखनी होगी।
विशेषज्ञों की राय: RBI की समझदारी या सतर्कता?
अर्थशास्त्रियों और बाजार विशेषज्ञों ने RBI के इस फैसले को “सतर्क किन्तु व्यावहारिक कदम” करार दिया है। उनका मानना है कि जब तक वैश्विक हालात सामान्य नहीं होते, तब तक RBI को किसी भी तरह की जल्दबाजी से बचना चाहिए।
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि ट्रंप दोबारा सत्ता में आते हैं और टैरिफ लागू होते हैं, तो भारत को अपनी नीति में बदलाव करना पड़ सकता है। फिलहाल, मौजूदा नीति आम आदमी और बाज़ार दोनों के लिए संतुलन बनाए हुए है।
निष्कर्ष:
RBI ने जिस परिस्थिति में रेपो रेट को यथावत रखा है, वह भारत की आर्थिक नीतियों की स्थिरता को दर्शाता है। ट्रंप के टैरिफ खतरों और वैश्विक अनिश्चितता के बीच यह निर्णय संतुलित और रणनीतिक है। आम जनता, उद्योग जगत और निवेशकों के लिए यह एक राहत की खबर हो सकती है — कम से कम फिलहाल।