गोकर्ण की गुफा से उठी एक सच्ची कहानी
कर्नाटक के गोकर्ण में एक गुफा में रह रही रूसी महिला और उसके बच्चों को जब बाहर निकाला गया, तो मामला सिर्फ एक रेस्क्यू ऑपरेशन नहीं रहा। यह एक ऐसी कहानी बन गई, जिसने समाज, प्रशासन और मानवीय सोच— तीनों के बीच एक नई बहस को जन्म दे दिया।
महिला का आरोप है कि रेस्क्यू के नाम पर उसकी आज़ादी छीन ली गई। और सबसे गंभीर बात — उसके अनुसार, उसके दिवंगत बेटे की अस्थियों को भी जबरन ले लिया गया। इस दर्द से वह अभी तक उबर नहीं पाई है।
🟨 कौन है ये महिला और क्या है उसकी कहानी
यह महिला रूस की नागरिक है, जो वर्षों पहले भारत आई थी। यहां आने के बाद उसने सामान्य ज़िंदगी से कटकर एक अलग राह पकड़ ली — शहरी जीवनशैली से दूर, प्रकृति के बीच रहने की।
उसके तीन बच्चे हैं, जिनमें से एक का निधन हो चुका है। महिला के मुताबिक, बच्चों के पिता विदेशी मूल के हैं, और वह खुद पिछले कुछ सालों से गोकर्ण के पास एक गुफा में रह रही थी।
🟨 गुफा में जीवन: प्रकृति से जुड़ा, सादगी भरा
महिला ने बताया कि वह अपने बच्चों के साथ बहुत ही साधारण लेकिन आत्मनिर्भर जीवन जी रही थी। उनके दिन मिट्टी में खेलने, तैरने और समुद्र किनारे वक्त बिताने में गुजरते थे।
वह कहती है कि उन्हें ना किसी की मदद की जरूरत थी, ना ही किसी आधुनिक सुविधा की लालसा। उसके अनुसार, उसका परिवार उस प्राकृतिक माहौल में खुश था।
#WATCH | Bengaluru | Russian national Nina Kutina, who was found living with her two daughters in a remote cave near Gokarna in Karnataka, says, “We have a lot of experience staying in nature and we were not dying. I did not bring my children to die in the jungle…We used to… pic.twitter.com/iY0Bi8I6xb
— ANI (@ANI) July 14, 2025
🟨 बचाव या हस्तक्षेप? महिला की आंखों से देखिए
रेस्क्यू ऑपरेशन को लेकर महिला का दर्द अब खुलकर सामने आ चुका है। उसका कहना है:
“मुझे और मेरे बच्चों को जबरन निकाला गया। जो शांति और स्वतंत्रता हमें वहां मिल रही थी, वह अब छिन चुकी है।”
सबसे भावनात्मक बात उसने अपने बेटे को लेकर कही:
“मेरे बेटे की अस्थियां भी मुझसे छीन ली गईं। कोई कैसे एक मां से ऐसा कर सकता है?”
उसकी आंखों में गुस्सा कम और दुख ज़्यादा झलक रहा था।
🟨 अब कहां है महिला, और कैसी है उसकी हालत?
रेस्क्यू के बाद महिला को एक अस्थायी ठिकाने पर रखा गया है। लेकिन वह इसकी हालत से बेहद असंतुष्ट है।
वह बताती है,
“जहां रखा गया है, वहां बदबू है, गंदगी है। मैं कई दिनों से नहाई नहीं हूं। जो गुफा में चैन था, वो यहां बिल्कुल नहीं है।”
वह यह भी कहती है कि उसे बंदी की तरह महसूस कराया जा रहा है। ना खुला आकाश है, ना मिट्टी की सोंधी खुशबू, ना ही वह शांति।
🟨 प्रशासन का पक्ष: सुरक्षा पहले
स्थानीय अधिकारियों के मुताबिक, महिला और बच्चों की सुरक्षा के मद्देनज़र यह कदम उठाया गया था। प्रशासन ने माना कि बच्चों की उम्र को देखते हुए उन्हें गुफा में खुले में छोड़ना सही नहीं था।
रेस्क्यू के दौरान महिला ने विरोध भी किया, लेकिन अधिकारियों ने बच्चों के हित में निर्णय लिया।
A Russian woman found living in cave with kids for TWO MONTHS in India’s temple town of Gokarna.
Mediating in isolation with her two children, 4 & 6, after becoming devoted to Hinduism
Visa expired in 2017, now awaits deportation to Russia
Police say “all look healthy & sane” pic.twitter.com/glEHGAlgsy
— AppleSeed (@AppleSeedTX) July 14, 2025
🟨 बच्चों की स्थिति: मां से दूर, पर निगरानी में
बचाव के बाद बच्चों को अलग रखा गया है और उन पर लगातार स्वास्थ्य एवं मनोवैज्ञानिक निगरानी की जा रही है।
प्रशासन का कहना है कि बच्चों की स्थिति सामान्य है लेकिन उन्हें मां से अलग रखना आसान नहीं था।
उनके व्यवहार में बदलाव देखने को मिल रहा है — कभी चुप्पी, कभी बेचैनी। यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया मानी जा रही है।
🟨 महिला की शिकायतें और ताज़ा हालात
महिला बार-बार यही दोहरा रही है कि उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध एक बंद कमरे में रखा गया है।
“मेरे विचारों और जीवन को समझने की कोशिश किसी ने नहीं की,” वह कहती है।
उसे लगता है कि उसे गलत समझा गया है और उसके मातृत्व को नजरअंदाज कर दिया गया।
🟨 समाज का नजरिया: दो हिस्सों में बंटी राय
इस मामले में समाज की राय दो हिस्सों में बंट गई है।
कुछ लोग मानते हैं कि महिला को अपनी पसंद की ज़िंदगी जीने का पूरा अधिकार है, जब तक उसके बच्चों को किसी तरह की तकलीफ न हो। वहीं दूसरी ओर, कुछ का कहना है कि बच्चों की सुरक्षा और मानसिक विकास सबसे जरूरी है और इसके लिए हस्तक्षेप ज़रूरी हो सकता है।
ऐसे मामलों में इंसान की सेहत और मानसिक स्थिति को समझना बेहद जरूरी होता है, जैसा कि हाल ही में एक अंतरिक्ष यात्री के लौटने के बाद ISRO ने शुभांशु शुक्ला की स्थिति को लेकर बयान जारी किया था, जिसमें बताया गया कि उनका स्वास्थ्य स्थिर है और वो मेडिकल निगरानी में हैं।
🟨एक सवाल जो अभी भी खुला है
क्या एक महिला को अपने बच्चों के साथ जंगल में रहने का हक है?
या क्या बच्चों की भलाई के लिए समाज और प्रशासन को हस्तक्षेप करना चाहिए?
यह मामला सिर्फ एक रेस्क्यू का नहीं है — यह आज़ादी, मातृत्व और सामाजिक दायित्वों के बीच की जंग है।
यह कहानी शायद यहीं खत्म न हो — हो सकता है, आने वाले समय में यह कई कानूनी और सामाजिक विमर्शों को जन्म दे।