वैश्विक अस्थिरता में संवाद की नई ज़रूरत
भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि आज के वैश्विक परिदृश्य में भारत और चीन के बीच खुला और ईमानदार संवाद बेहद आवश्यक है। उनकी यह टिप्पणी केवल द्विपक्षीय रिश्तों तक सीमित नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर बढ़ती अस्थिरता और प्रतिस्पर्धा के बीच भारत की रणनीतिक सोच को भी दर्शाती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-गाज़ा संकट, और अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध जैसे वैश्विक कारक अब हर राष्ट्र को पुनः मूल्यांकन की स्थिति में खड़ा कर रहे हैं। ऐसे समय में भारत की यह कूटनीतिक पहल न सिर्फ क्षेत्रीय शांति की ओर एक कदम है, बल्कि रणनीतिक स्पष्टता का भी प्रतीक है।
गालवान के बाद पहली उच्चस्तरीय मुलाकात: रिश्तों में संभावित नरमी
2020 के गालवान संघर्ष के बाद यह पहली बार है जब कोई भारतीय विदेश मंत्री चीन की धरती पर औपचारिक रूप से किसी वरिष्ठ चीनी नेता से मिल रहा है। यह मुलाकात बीजिंग में हुई, जहां जयशंकर ने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से व्यापक बातचीत की।
इस दौरान सीमा विवाद, आर्थिक सहयोग, वैश्विक चुनौतियों और आपसी संवाद की बहाली जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। मुलाकात के बाद जयशंकर का यह बयान कि “दोनों देशों को स्पष्टता और खुले मन से बातचीत करनी चाहिए”, भविष्य में रिश्तों की दिशा को लेकर आशावादी संकेत देता है।
Pleased to meet Vice President Han Zheng soon after my arrival in Beijing today.
Conveyed India’s support for China’s SCO Presidency.
Noted the improvement in our bilateral ties. And expressed confidence that discussions during my visit will maintain that positive trajectory. pic.twitter.com/F8hXRHVyOE
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) July 14, 2025
सामरिक संतुलन और रणनीतिक सोच की झलक
जयशंकर की विदेश नीति का मूलमंत्र ‘स्पष्टता के साथ संप्रभुता’ है। भारत अब चीन जैसे देशों के साथ भी बिना दबाव के और खुले तौर पर बातचीत करने को तैयार है। इसका मतलब यह नहीं कि भारत अपने सुरक्षा हितों से समझौता करेगा — बल्कि यह दिखाता है कि भारत अब एक सशक्त, आत्मनिर्भर और रणनीतिक रूप से जागरूक राष्ट्र के रूप में उभर चुका है।
जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि सीमा शांति के बिना रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते। ऐसे वक्त में, जब पश्चिमी देश चीन को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहे हैं, भारत का यह संतुलन बनाए रखना सराहनीय है।
आर्थिक सहयोग और SCO में भारत की बढ़ती भूमिका
इस भेंट के समय शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (SCO) की भी पृष्ठभूमि मौजूद थी। SCO जैसे मंचों पर भारत की भूमिका अब केवल सदस्य राष्ट्र की नहीं, बल्कि सशक्त नेतृत्वकर्ता की हो चुकी है।
जयशंकर ने चीन के साथ व्यापारिक सहयोग, निवेश में पारदर्शिता और टेक्नोलॉजी के साझा उपयोग जैसे मुद्दों को भी उठाया। हालांकि भारत और चीन के बीच व्यापारिक असंतुलन बना हुआ है, फिर भी आर्थिक संवाद दोनों देशों को लाभ पहुंचा सकता है।
इसी से जुड़ा एक और बड़ा उदाहरण है Yamuna Rejuvenation Mission, जहां सरकार ने स्पष्ट समयसीमा तय की है। भारत अब हर क्षेत्र में लक्ष्य-निर्धारित नीति को अपनाता दिख रहा है — यही संदेश विदेश नीति में भी झलकता है।
My opening remarks at the meeting with Vice President Han Zheng of China.
https://t.co/9eAAZQuwoM— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) July 14, 2025
विदेश नीति की नई सोच: संवाद, स्पष्टता और आत्मविश्वास
जयशंकर का विदेश नीति दृष्टिकोण केवल reactions पर आधारित नहीं है, बल्कि proactive engagement को प्राथमिकता देता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत न तो किसी के दबाव में है, न किसी गठबंधन का अंधभक्त।
ASEAN, QUAD, I2U2 जैसे समूहों में भारत की भागीदारी इसका संकेत है कि भारत अब केवल “नॉन-अलाइन्ड” नहीं, बल्कि मल्टी-अलाइन्ड सोच रखता है — जहां देश के हित सर्वोपरि हैं।
विश्लेषकों और मीडिया की प्रतिक्रिया: एक नई उम्मीद
Times of India, India Today, और DD News जैसे प्रतिष्ठित माध्यमों ने इस मुलाकात को “संवाद की बहाली”, “रणनीतिक समझदारी” और “रिश्तों में बर्फ पिघलने की शुरुआत” जैसे शब्दों से आंका है।
विशेषज्ञों के अनुसार, जयशंकर की यह पहल भारत की विदेश नीति में आत्मविश्वास की स्पष्ट झलक है। बातचीत भले ही सब कुछ हल न करे, लेकिन बातचीत की शुरुआत ही स्थिरता का पहला कदम होती है।
Glad to meet SCO SG Nurlan Yermekbayev in Beijing today.
Discussed the contribution and importance of SCO, as well as the endeavors to modernize its working. pic.twitter.com/Lr2pjtP4XF
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) July 14, 2025
आगे का रास्ता: संवाद ही समाधान
इस उच्च स्तरीय मुलाकात ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि सैन्य या कूटनीतिक तनाव के बीच भी संवाद के रास्ते खुले रह सकते हैं। जयशंकर ने जिस तरह स्पष्ट शब्दों में बातचीत की ज़रूरत बताई, वह बताता है कि भारत अब असमंजस में नहीं, रणनीतिक समझ के साथ चल रहा है।
अगर चीन भी उतनी ही गंभीरता से इसे ले, तो भारत-चीन संबंधों में सकारात्मक बदलाव संभव हैं। ज़रूरत है निरंतर संवाद, पारदर्शिता और द्विपक्षीय विश्वास की।