ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा यूनिवर्सिटी से आई एक चौंकाने वाली घटना ने एक बार फिर भारतीय शिक्षा व्यवस्था की संवेदनहीनता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने अपने हॉस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली। लेकिन यह कोई आम मामला नहीं था—छात्रा ने जो सुसाइड नोट छोड़ा, उसमें दो शिक्षकों पर मानसिक प्रताड़ना और भावनात्मक दबाव का आरोप लगाया गया है।
साथ ही, छात्रा की मां का बयान भी सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा कि उनकी बेटी को गेहूं से एलर्जी थी और बार-बार बीमार रहती थी, लेकिन शिक्षकों ने कभी उसे गंभीरता से नहीं लिया। उल्टा उसका मज़ाक उड़ाया जाता रहा।
“अब और नहीं सह सकती”: छात्रा का सुसाइड नोट जो रह-रह कर झकझोरता है
सुसाइड नोट में छात्रा ने लिखा:
“I am sorry, I can’t live like this… I am always sick, and they just keep insulting me. I can’t take it anymore.”
इन पंक्तियों में उसकी तकलीफ, बेबसी और टूटन साफ झलकती है। उसने लिखा कि लगातार बीमारी और मानसिक दबाव के कारण उसका जीवन बोझ बन गया था। नोट में दो शिक्षकों का नाम साफ तौर पर लिया गया है, जिन पर बार-बार ताना मारने और उसके स्वास्थ्य को लेकर मज़ाक उड़ाने का आरोप है।
“I can’t Live like this anymore . I can’t ”
यह शब्द है शारदा यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली BDS छात्रा के। उसने अपनी मौत का जिम्मेदार अपने दो टीचर महेंद्र सर और शार्ग मैम को बताया है। सोचिए इन नामी गिरामी शिक्षण संस्थानों के हालात क्या है, ऐसे बच्चों की आवाज हमे पहले ही सुननी होगी pic.twitter.com/xgOHjZqP5C
— Sarvesh Mishra (@SarveshMishra_) July 19, 2025
मां का आरोप: एलर्जी को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया, टीचर्स ने उड़ाया मज़ाक
छात्रा की मां ने इस दुखद घटना के बाद मीडिया से बात करते हुए बताया:
“मेरी बेटी को गेहूं से एलर्जी थी, उसकी हालत कई बार खराब हुई, हमने यूनिवर्सिटी को सारे मेडिकल डॉक्यूमेंट्स दिए थे। फिर भी जब वह क्लास नहीं जा पाती थी तो उसे अपमानित किया जाता था।”
उन्होंने यह भी बताया कि उनकी बेटी बेहद मेहनती थी लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर रहती थी। कई बार जब वह अस्वस्थ होती, तो क्लास में जाने में असमर्थ रहती थी, पर शिक्षकों की ओर से कोई सहानुभूति नहीं मिलती थी।
पुलिस की कार्रवाई और यूनिवर्सिटी का जवाब
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। शुरुआती जांच के बाद दो शिक्षकों को हिरासत में लिया गया है। उन पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया है।
यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से बयान जारी कर कहा गया:
“हम घटना से दुखी हैं। जांच में पुलिस को पूरा सहयोग दिया जा रहा है। अगर किसी की गलती साबित होती है तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”
Big Breaking 🚨
A girl Student Dies by Suicide in Hostel of Sharda University, Greater Noida, UP.
In suicide note, she wrote: Mahendra Sir and Sharg Ma’am are responsible for my death. They mentally tortured and humiliated me.How long it will continue… pic.twitter.com/kzMOeOXwMN
— Voice of Hindus (@Warlock_Shubh) July 19, 2025
ओडिशा की घटना से मिलती-जुलती स्थिति
ऐसी ही एक और संवेदनशील घटना हाल ही में ओडिशा में भी हुई थी, जहाँ एक छात्रा ने खुद को आग लगा ली थी। उसने भी अपनी शिक्षा और स्कूल प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया था।
ओडिशा की छात्रा की घटना पढ़ें यहाँ
दोनों घटनाओं की समानता इस ओर इशारा करती है कि छात्रों की मानसिक स्थिति और संस्थानों का रवैया एक बड़े बदलाव की मांग करता है।
क्या शिक्षा तंत्र मानसिक स्वास्थ्य के लिए तैयार है?
भारतीय शिक्षा व्यवस्था में मानसिक स्वास्थ्य को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। कई बार छात्र मानसिक तनाव से गुजरते हैं लेकिन उन्हें काउंसलिंग जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होतीं।
छात्रा की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी। लगातार बीमार पड़ना, मेडिकल सर्टिफिकेट्स के बावजूद उपेक्षा, और शिक्षकों की असंवेदनशीलता—ये सारी बातें मानसिक स्तर पर उसे तोड़ती रहीं।
WHO की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 10,000 छात्र मानसिक तनाव और डिप्रेशन के कारण आत्महत्या करते हैं। यह आंकड़ा शिक्षा व्यवस्था की खामियों की ओर संकेत करता है।
एलर्जी कोई मज़ाक नहीं, संस्थानों को समझना होगा
गेहूं से एलर्जी यानी Celiac Disease या Gluten Intolerance कोई सामान्य शारीरिक परेशानी नहीं, बल्कि एक गंभीर मेडिकल स्थिति है। इसमें मरीज सामान्य आहार भी नहीं ले सकता और उसके स्वास्थ्य पर बड़ा असर पड़ता है।
छात्रा के मामले में, उसके स्वास्थ्य को मज़ाक का विषय बनाना कहीं से भी मानवीय नहीं ठहराया जा सकता। यही असंवेदनशीलता, जब बार-बार होती है, तो छात्र टूटने लगता है।
छात्रों के अधिकार और शिक्षकों की ज़िम्मेदारी
किसी भी छात्र का अधिकार है कि वह शिक्षा के दौरान सम्मान और सहानुभूति पाए, खासकर तब जब वह किसी शारीरिक या मानसिक स्थिति से जूझ रहा हो।
शिक्षकों की भूमिका सिर्फ शिक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें एक मार्गदर्शक और सहयोगी भी होना चाहिए। किसी छात्र को उसकी कमजोरी को लेकर ताना मारना या बार-बार अपमानित करना, शिक्षक धर्म के विरुद्ध है।
क्या यह आत्महत्या रोकी जा सकती थी?
यह सवाल आज हर किसी के मन में है। अगर छात्रा की तकलीफ को समय रहते समझा जाता, अगर उसकी एलर्जी को गंभीरता से लिया जाता, और अगर शिक्षकों ने संवेदनशीलता दिखाई होती — तो शायद आज यह खबर सामने न होती।
लेकिन अब यह घटना एक चेतावनी है—हमारे लिए, शिक्षण संस्थानों के लिए, और पूरे समाज के लिए।
संवेदना से शुरुआत करनी होगी
शारदा यूनिवर्सिटी की यह घटना केवल एक छात्रा की मौत की खबर नहीं, बल्कि एक व्यवस्था की असफलता का दस्तावेज है। हमें समझना होगा कि मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्तिगत चिकित्सा स्थितियों के प्रति सहानुभूति, शिक्षा का हिस्सा होनी चाहिए।
आज जरूरत है कि हम संवेदना को पढ़ाई के साथ जोड़ें, और संस्थानों में छात्रों को केवल नंबर नहीं, बल्कि इंसान समझा जाए।
🧠 आप क्या सोचते हैं?
क्या भारतीय यूनिवर्सिटी सिस्टम में मानसिक स्वास्थ्य को पर्याप्त प्राथमिकता मिलती है? क्या शिक्षकों को संवेदनशीलता की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए?
👇 नीचे कमेंट करें और अपनी राय ज़रूर साझा करें।