भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक नया अध्याय लिख दिया है। देश के पहले व्यावसायिक अंतरिक्ष यात्री के रूप में, शुभांशु शुक्ला अब अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर हैं और वहां अपने पहले दिन की शुरुआत कर चुके हैं।
Axiom-4 मिशन के जरिए उन्हें ISS पर भेजा गया है, जहां आने वाले 14 दिनों तक वे अलग-अलग वैज्ञानिक प्रयोगों, माइक्रोग्रैविटी अनुभवों और जीवन-यापन की कठिन परिस्थितियों को अपनाने का प्रयास कर रहे हैं।
स्पेस स्टेशन पहुंचने के बाद का पहला एहसास
जैसे ही Axiom-4 मिशन की स्पेसक्राफ्ट ने सफलतापूर्वक ISS से डॉक किया, एक नया अनुभव शुभांशु शुक्ला की जिंदगी में दर्ज हो गया। Docking के तुरंत बाद, उन्होंने अपने पहले संदेश में कहा – “अगले 14 दिन शानदार होने वाले हैं।”
शुरुआती कुछ घंटों में ISS की टीम ने उन्हें स्पेस स्टेशन के मॉड्यूल्स, सुरक्षा प्रोटोकॉल और रहने के प्रबंधन से अवगत कराया। अंतरिक्ष में पहुंचना जितना रोमांचक है, उतना ही यह शारीरिक और मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण भी है।
Namaskar from space!
Group Captain Shubhanshu Shukla expressed his excitement about being in space, sharing that he is thoroughly enjoying the experience alongside his fellow astronauts in this unique and awe-inspiring environment.
It’s truly a proud moment for the country! pic.twitter.com/OuA0V3YNhX
— Arvind Bellad (@BelladArvind) June 26, 2025
पहला दिन: अंतरिक्ष में दिनचर्या कैसी होती है?
स्पेस में जीवन नियमित नहीं होता, लेकिन अनुशासित जरूर होता है। शुभांशु शुक्ला ने सुबह का वक्त अपनी बेसिक ट्रेनिंग रूटीन और माइक्रोग्रैविटी में फिटनेस बनाए रखने वाली एक्सरसाइज में बिताया।
- सुबह का स्टार्ट: अलार्म के बिना लेकिन प्लान के साथ
- फिजिकल फिटनेस के लिए साइक्लिंग, ट्रेडमिल और स्पेस सस्पेंशन स्ट्रेचिंग की गई
- फिर हुआ डेटा रिकॉर्डिंग और हेल्थ मॉनिटरिंग
- भोजन: वैज्ञानिक संतुलित भोजन – फ्रूट क्यूब्स, प्रोटीन पाउच, हाइड्रेटेड ड्रिंक्स
- शाम को ग्राउंड टीम से संवाद और जर्नल एंट्री
इस पूरे शेड्यूल को उन्होंने बड़ी सहजता से अपनाया – यह दिखाता है कि उनकी ट्रेनिंग कितनी मजबूत रही है।
वैज्ञानिक मिशन और प्रयोग जो पहले दिन शुरू हुए
ISS पर केवल रहना ही नहीं, बल्कि शोध करना भी मिशन का प्रमुख उद्देश्य होता है। शुभांशु शुक्ला ने अपने पहले दिन ही भारतीय वैज्ञानिक मिशनों से जुड़े दो प्रमुख प्रयोगों की शुरुआत की:
- माइक्रोबायोम प्रोजेक्ट: अंतरिक्ष में मानव शरीर में बैक्टीरिया की प्रतिक्रिया और बदलते स्वरूप का परीक्षण
- बायो-न्यूरल एक्सपेरिमेंट: दिमागी तरंगों पर माइक्रोग्रैविटी का असर
Axiom-4 के तहत चुने गए वैज्ञानिक प्रोजेक्ट्स ना केवल भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वैश्विक स्पेस साइंस में भी नया योगदान देंगे।
माइक्रोग्रैविटी और इसका असर शुभांशु शुक्ला पर
ISS पर गुरुत्वाकर्षण ना के बराबर होता है। माइक्रोग्रैविटी में शरीर की कार्यप्रणाली में कई बदलाव आते हैं – जैसे रक्त प्रवाह, मांसपेशियों में जड़ता, और आंखों पर दबाव।
शुभांशु शुक्ला के लिए ये अनुभव नया जरूर है, लेकिन उनकी तैयारियों ने उन्हें स्थिर बनाए रखा। उन्होंने विशेष कॉम्प्रेशन सूट पहना और हर 3 घंटे पर अपनी फिजिकल हेल्थ को ट्रैक किया।
उनकी फिटनेस और मेंटल स्टेबिलिटी के लिए एक्सरसाइज, ध्यान और पोषण एक साथ काम कर रहे हैं।
भारतीय दर्शकों और वैज्ञानिकों के लिए संदेश
ISS से भारत के लिए उनका पहला संदेश बेहद प्रेरणादायक था। शुभांशु शुक्ला ने कहा:
“यह केवल मेरी उड़ान नहीं है, बल्कि हर उस भारतीय का सपना है जो अंतरिक्ष को छूना चाहता है।”
उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में वे लाइव सेशन या छोटे वीडियो क्लिप्स के माध्यम से अपने अनुभवों को साझा करेंगे। इससे युवा पीढ़ी को स्पेस रिसर्च में रुचि मिलेगी।
𝐀𝐱𝐢𝐨𝐦-𝟒 𝐌𝐢𝐬𝐬𝐢𝐨𝐧🚀
🇮🇳Group Captain 𝐒𝐡𝐮𝐛𝐡𝐚𝐧𝐬𝐡𝐮 𝐒𝐡𝐮𝐤𝐥𝐚 enters the International Space Station (ISS) and shares his excitement:
“It has been a wonderful ride… I think this is fantastic, this is wonderful, and I’m very confident that the next 14 days… pic.twitter.com/eqcxCeDZr2
— All India Radio News (@airnewsalerts) June 26, 2025
भारत का भविष्य अंतरिक्ष मिशन में
Axiom-4 मिशन भारत के लिए सिर्फ शुरुआत है। निजी और सरकारी एजेंसियों के तालमेल से अब देश अंतरिक्ष यात्रा को लेकर तेजी से आगे बढ़ रहा है।
- ISRO के मानव मिशन Gaganyaan की तैयारी जोरों पर
- निजी कंपनियों जैसे Skyroot, Agnikul और Pixxel का भी योगदान
- शुभांशु शुक्ला की यह उड़ान एक मॉडल बनेगी भविष्य के भारत-अंतरिक्ष सहयोग के लिए
India’s space ecosystem अब आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ रहा है, और यह सफलता उसी यात्रा की पहली सीढ़ी है।
अंतरिक्ष में भारतीय उपस्थिति की नई दिशा
शुभांशु शुक्ला के पहले दिन के अनुभव ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत अब केवल एक दर्शक नहीं, बल्कि भागीदार है अंतरिक्ष अनुसंधान में।
विज्ञान, धैर्य और देशभक्ति का यह संगम एक प्रेरणा है। अंतरिक्ष में जीवन जीने का यह पहला दिन कई सवालों के जवाब लेकर आया – और ढेरों नई संभावनाओं का द्वार भी खोला।
👉 इस ऐतिहासिक मिशन की तैयारी से जुड़ी पूरी जानकारी पढ़ने के लिए देखें: भारत का अंतरिक्ष मिशन: कैसे पहुंचे शुभांशु शुक्ला स्पेस स्टेशन तक