अब सुप्रीम कोर्ट की फाइलिंग रजिस्ट्री में शनिवार को भी सुस्ती नहीं चलेगी। 14 जुलाई 2025 से हर महीने के दूसरे और चौथे शनिवार को भी कोर्ट से जुड़े प्रशासनिक काम होंगे।
इसका मतलब ये है कि अब शनिवार को भी वो तमाम जरूरी काम हो सकेंगे जो अभी तक सिर्फ सोमवार से शुक्रवार तक ही होते थे।
अब तक शनिवार को क्या होता था?
कोर्ट की रजिस्ट्री हर हफ्ते सिर्फ पांच दिन चलती थी। शनिवार को महीने में दो बार — दूसरे और चौथे शनिवार — छुट्टी रहती थी।
कई बार वकील या केस फाइल करने वाले लोगों को शुक्रवार को काम पूरा न हो पाने की वजह से तीन दिन का इंतज़ार करना पड़ता था। अब ऐसा नहीं होगा।
नया सिस्टम क्या कहता है?
अब ये शनिवार भी वर्किंग डे माने जाएंगे। मतलब रजिस्ट्री खुलेगी, फाइलिंग होगी, डाक जमा होगी, और दूसरे जरूरी दस्तावेज़ों की प्रोसेसिंग भी की जाएगी।
हालांकि ये आदेश सिर्फ रजिस्ट्री और प्रशासनिक स्तर पर लागू होगा। कोर्ट की सुनवाई अब भी सोमवार से शुक्रवार तक ही होगी।
2nd and 4th Saturday will no longer be a holiday… pic.twitter.com/sOmUQszyFA
— Adv Bipin Mehta (@Adv_bipinmehta) June 18, 2025
वकीलों और पब्लिक को क्या फायदा?
- केस फाइल करने में देरी नहीं होगी।
- सोमवार को लगने वाली भीड़ अब कम हो सकती है।
- डोक्यूमेंटेशन और ऑर्डर की कॉपियां वक्त पर मिलेंगी।
वकीलों का कहना है कि अब उन्हें काम की थोड़ी और राहत मिलेगी क्योंकि अब हफ्ते में दो दिन और कामकाज के लिए जुड़ जाएंगे।
कोर्ट स्टाफ का क्या कहना है?
स्टाफ को लेकर थोड़ा मतभेद है। कुछ कर्मचारियों को लग रहा है कि इससे उन पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा, लेकिन अंदरखाने की खबर ये है कि इस एक्स्ट्रा काम के बदले कुछ छूट या ऑफ भी दी जाएगी।
कोर्ट प्रशासन इस पर नीति बना रहा है कि कैसे काम का संतुलन रखा जाए।
असली मकसद क्या है?
इस फैसले के पीछे सीधी सोच है — काम को लंबित न रहने देना।
सुप्रीम कोर्ट में लाखों केस हैं जो सालों से फंसे हैं। इनमें से काफी काम ऐसे हैं जो रजिस्ट्री स्तर पर रुके रहते हैं। अब शनिवार को भी काम होगा, तो प्रक्रिया तेज़ होगी।
आगे क्या?
अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या हाईकोर्ट और ज़िले की अदालतें भी यही नियम अपनाएंगी?
इस पर कोई आधिकारिक एलान नहीं हुआ है, लेकिन जिस तरह से दिल्ली से शुरुआत हुई है, बाकी जगहों पर भी ये बात पहुंच रही है।
कुछ राज्यों में तो पहले से ही शनिवार को आंशिक कामकाज होता है।
लोग क्या कह रहे हैं?
- वकील कह रहे हैं: “देर से सही, लेकिन अच्छा फैसला है।”
- कर्मचारी थोड़ा चिंतित हैं, लेकिन आदेश का पालन तो करना ही होगा।
- पब्लिक कह रही है: “अगर इससे केस जल्दी निपटेंगे तो सब मंजूर है।”
निष्कर्ष
कोर्ट के सिस्टम में छोटे-छोटे सुधार भी बड़ी राहत बन सकते हैं।
अब देखना है कि यह फैसला सिर्फ कागज़ों तक सीमित रहता है या वाकई कोर्ट के काम में तेजी लाता है।सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को एक व्यापक प्रशासनिक सुधार के रूप में देखा जा रहा है। अदालतों की कार्यप्रणाली में अनुशासन और पारदर्शिता लाने की यह कोशिश उन बदलावों की कड़ी में है, जो देशभर में संस्थागत सुधार के संकेत देते हैं।
हाल ही में, प्रधानमंत्री मोदी ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर भी इसी तरह अनुशासन और संतुलन को जीवन की आवश्यकता बताया था। योग दिवस पर पीएम मोदी के विचार यहां पढ़ें।