हाल ही में भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर माहौल थोड़ा गर्माया हुआ है। अमेरिका की ओर से टैरिफ लगाने की चेतावनी मिली, जिसके जवाब में भारत ने अमेरिका के रूस से व्यापार का मुद्दा उठाया। इसी पर जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से प्रतिक्रिया मांगी गई, तो उन्होंने चौंकाते हुए कहा – “मुझे इसके बारे में जानकारी नहीं थी।”
पूरा मामला क्या है
भारत ने अमेरिका की टैरिफ चेतावनी को अनुचित बताते हुए यह सवाल उठाया कि जब अमेरिका खुद रूस से यूरेनियम और उर्वरक जैसे अहम संसाधन आयात कर रहा है, तो भारत पर ऐसी पाबंदी क्यों? भारत का मानना है कि व्यापार संतुलन के नाम पर दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है।
जब ट्रंप से इस मुद्दे पर पूछा गया, तो उनका जवाब था – “मुझे इसकी जानकारी नहीं थी।” यह बयान कई लोगों को हैरान कर गया, क्योंकि यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहा है। ट्रंप की यह प्रतिक्रिया या तो उनकी अनभिज्ञता को दर्शाती है या फिर यह एक राजनीतिक संकेत हो सकता है।
अमेरिका-रूस व्यापार के आंकड़े और भारत की रणनीति
भारत का यह तर्क पूरी तरह तथ्यों पर आधारित है। आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका ने बीते साल रूस से बड़ी मात्रा में उर्वरक और यूरेनियम का आयात किया है। यह वही समय था जब अमेरिका दुनिया के बाकी देशों को रूस से दूरी बनाने की सलाह दे रहा था।
यूक्रेन युद्ध के चलते रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए, लेकिन इन प्रतिबंधों से अमेरिका ने अपनी ज़रूरतों को अलग रखा। व्यापारिक आंकड़े दिखाते हैं कि अमेरिका का रूस से उर्वरक आयात 2022 के मुकाबले 2023 में और बढ़ गया। यह बताता है कि व्यावहारिक ज़रूरतों के चलते अमेरिका ने खुद भी रूस से व्यापारिक रिश्ते जारी रखे हैं।
Q: India says US buys Russian uranium & fertilizers while criticising India for buying Russian energy. Your response?
Trump: I don’t know anything about it.
America is really a rich nation. They ‘Keep’ President as a Comedian. Bharat can max ‘afford’ a LoP. pic.twitter.com/9s9U8xKCDJ
— BhikuMhatre (@MumbaichaDon) August 6, 2025
भारत ने इसी को आधार बनाकर अमेरिकी नीति पर सवाल उठाया है। भारत की रणनीति स्पष्ट है — वह किसी एक ध्रुवीय गठबंधन का हिस्सा नहीं बनना चाहता। वह अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप स्वतंत्र विदेश नीति अपनाता है, और रूस के साथ उसकी रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में पुरानी साझेदारी रही है।
भारत ने साफ किया कि जब वैश्विक स्तर पर कोई नियम हो, तो वह सभी पर समान रूप से लागू होना चाहिए।
ट्रंप का रिकॉर्ड और भारत पर पुराना रवैया
डोनाल्ड ट्रंप का भारत के प्रति नजरिया हमेशा थोड़ा मिला-जुला रहा है। जब वे राष्ट्रपति थे, तब उन्होंने “America First” की नीति को आगे बढ़ाते हुए कई देशों पर व्यापारिक दबाव बनाया — भारत भी उनमें से एक था। उन्होंने भारत पर यह आरोप भी लगाए कि भारत अमेरिका के उत्पादों पर ऊंचा टैरिफ लगाता है।
इसके बावजूद, ट्रंप और भारत के बीच कुछ सकारात्मक क्षण भी देखने को मिले। उदाहरण के लिए, ‘Howdy Modi’ और ‘Namaste Trump’ जैसे बड़े आयोजन दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को दर्शाते हैं। ट्रंप ने सार्वजनिक मंचों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कई बार सराहना भी की।
ट्रंप का नजरिया हमेशा स्पष्ट रहा — अगर अमेरिका को लाभ नहीं मिल रहा, तो वह समझौते को चुनौती देंगे। इसी सोच के तहत उन्होंने भारत के साथ व्यापार संतुलन को लेकर सख्ती दिखाई। लेकिन यह भी सच है कि भारत ने भी अपने पक्ष को मजबूती से रखा और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों के ज़रिए अपनी स्थिति को स्पष्ट किया।
अब जब ट्रंप फिर से चुनावी दौड़ में हैं, तो उनकी “मुझे जानकारी नहीं थी” वाली प्रतिक्रिया कई तरह के संकेत देती है — या तो यह एक सामान्य अनभिज्ञता है, या रणनीतिक दूरी बनाकर रखने की कोशिश।
क्या ये नया ट्रेड वार छिड़ सकता है?
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर पहले भी कई बार तनाव की स्थिति बनी है। हालांकि दोनों देश रणनीतिक साझेदार हैं, लेकिन व्यापारिक मामलों में मतभेद रहना कोई नई बात नहीं है।
टैरिफ जैसे मुद्दों पर अमेरिका अक्सर सख्ती दिखाता है, खासकर जब बात उसके आर्थिक हितों की हो। लेकिन भारत भी अब वैश्विक मंच पर आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी नीति अपना रहा है। ऐसे में किसी भी तरह की दबाव नीति (pressure tactics) अब पहले की तरह काम नहीं करती।
हालिया घटनाक्रम को देखा जाए, तो एक खुला ट्रेड वार छिड़ने की संभावना कम ही है। भारत और अमेरिका दोनों ही जानते हैं कि द्विपक्षीय व्यापार और रणनीतिक सहयोग उन्हें वैश्विक राजनीति में मजबूत बनाता है।
भारत लगातार यह स्पष्ट करता रहा है कि वह सभी देशों से स्वतंत्र रूप से व्यापार और रणनीतिक रिश्ते बनाए रखना चाहता है। टैरिफ या दबाव के माध्यम से संबंधों को प्रभावित करने की कोशिश को भारत सहन नहीं करेगा — यह उसकी नीति और हाल के बयानों से स्पष्ट है।
सारांश रूप में कहें तो, विवाद की संभावना जरूर बनी रहती है, लेकिन दोनों देशों की परिपक्व कूटनीति इसे ट्रेड वॉर में बदलने से रोक सकती है।
एक्सपर्ट क्या कहते हैं — ट्रंप का जवाब और अमेरिका की नीति
कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञों की मानें तो ट्रंप की प्रतिक्रिया कोई साधारण बयान नहीं है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान उनकी चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसमें वे मौजूदा प्रशासन से खुद को अलग दिखाना चाहते हैं।
वहीं कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि ट्रंप अब सत्ता में नहीं हैं, इसलिए उनके बयान को अमेरिका की वर्तमान आधिकारिक नीति के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। यह व्यक्तिगत राय हो सकती है, लेकिन इसका राजनीतिक प्रभाव जरूर होता है।
अमेरिका में आने वाले चुनावों की पृष्ठभूमि में, ऐसे बयान घरेलू राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं। भारत को इस बात का ध्यान रखना होगा कि किसी भी प्रतिक्रिया को तूल न देकर, नीति के स्तर पर संतुलन बनाकर चला जाए।
भारत के लिए आगे की राह — राजनीतिक संतुलन की ज़रूरत
भारत के सामने अब चुनौती है कि वह वैश्विक मंच पर अपने हितों की रक्षा करे और किसी दबाव में आए बिना संतुलित विदेश नीति बनाए रखे। रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी और अमेरिका के साथ आर्थिक व तकनीकी सहयोग — दोनों भारत के लिए जरूरी हैं।
भारत की “मल्टी-अलाइंमेंट” नीति यानी सभी देशों से समान दूरी और साझेदारी की नीति, वर्तमान हालात में और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। इससे न केवल भारत अपने हितों की रक्षा कर पाता है, बल्कि उसे वैश्विक शक्ति संतुलन में भी एक अहम स्थान मिलता है।
निष्कर्ष: ट्रंप का जवाब— एक संकेत या अनभिज्ञता?
डोनाल्ड ट्रंप का “मुझे जानकारी नहीं थी” वाला बयान सीधे-सीधे कोई नीतिगत बदलाव का संकेत नहीं देता, लेकिन यह ज़रूर दर्शाता है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मुद्दे अब वैश्विक राजनीति का अहम हिस्सा बन चुके हैं।
भारत को चाहिए कि वह अपनी बात अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजबूती से रखे और किसी भी प्रकार के दबाव से प्रभावित हुए बिना, संतुलित और आत्मनिर्भर रणनीति के साथ आगे बढ़े।
ट्रंप का यह जवाब सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि आने वाले समय की संभावनाओं की ओर इशारा भी हो सकता है।