उत्तर प्रदेश के एक ग्रामीण क्षेत्र में पिछले 20 दिनों से बिजली की आपूर्ति पूरी तरह से ठप थी। स्थानीय लोगों की कई शिकायतों के बावजूद बिजली विभाग की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। जब स्थिति बेकाबू होने लगी और ग्रामीणों का गुस्सा बढ़ा, तब क्षेत्रीय मंत्री ने खुद हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया।
📞फोन कॉल पर चौंकाने वाली बात: “ट्रांसफॉर्मर खुद लेकर आइए”
मंत्री ने जब संबंधित जूनियर इंजीनियर से फोन पर बात की और इलाके में बिजली बहाल करने को कहा, तो जवाब ने सभी को हैरान कर दिया। इंजीनियर ने मंत्री से ही कह दिया — “अगर इतना ही जरूरी है, तो ट्रांसफॉर्मर खुद लेकर आइए।”
यह जवाब ना केवल गैरजिम्मेदाराना था, बल्कि अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करता है।
🔧 मंत्री ने खुद उठाया ट्रांसफॉर्मर, पहुंचाया स्टेशन तक
जब किसी भी अधिकारी ने ठोस जवाबदेही नहीं ली, तब मंत्री ने स्वयं ट्रांसफॉर्मर की व्यवस्था करवाई और उसे लेकर स्टेशन तक पहुंचे। यह दृश्य स्थानीय लोगों के लिए अविश्वसनीय था — एक मंत्री खुद ट्रांसफॉर्मर लेकर बिजली बहाल करवाने जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में मंत्री जी धरने पर बैठे हैं, बिजली विभाग मंत्री की बात नहीं सुन रहा तो और किसकी सुनेगा?
मोबाइल पर एसई से बात कर रहे हैं.. एसई कह रहे जेई का ट्रांसफर कर देते हैं.. फिर मंत्री जी के बोले, सुनिए..
ट्रांसफर से क्या मतलब है.. हरगांव (सीतापुर) बर्बाद करके गवा है, अब… pic.twitter.com/LBdK9j91DC— Dr Anurag bhadouria (@anuragspparty) August 6, 2025
⚙️ तत्काल प्रभाव से इंजीनियर निलंबित, विभाग को कड़ा संदेश
मामला जैसे ही उच्च अधिकारियों तक पहुंचा, उसी दिन संबंधित जूनियर इंजीनियर को निलंबित कर दिया गया। विभाग ने यह स्पष्ट कर दिया कि जनता की उपेक्षा और वरिष्ठों से अभद्र व्यवहार किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
साथ ही, क्षेत्रीय विद्युत वितरण अधिकारियों को भी स्पष्टीकरण मांगा गया।
📉 क्या यह महज़ एक घटना है या पूरे सिस्टम की पोल?
यह घटना सिर्फ एक गांव की नहीं है, बल्कि यह पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली को उजागर करती है। कई बार शिकायतें अनसुनी रह जाती हैं और जिम्मेदार अधिकारी लापरवाही बरतते हैं।
बड़ी बात यह है कि यदि एक मंत्री को यह सुनना पड़ा — “खुद ट्रांसफॉर्मर लेकर आइए” — तो आम जनता को किस हद तक उपेक्षा झेलनी पड़ती होगी?
यूपी सरकार में अधिकारियों ने फिर उड़ाए मंत्री के तोते!
20 दिन से गांव में ट्रांसफॉर्मर खराब था।
कारागार राज्य मंत्री सुरेश राही ने JE को फोन किया- JE बोला: “खुद आकर उतरवा लो ट्रांसफॉर्मर!”
पावर कारपोरेशन की MD रिया केजरीवाल ने फोन तक नहीं उठाया।
सीतापुर में मंत्री जी खुद धरने पर… pic.twitter.com/rXYV2sR2JU— आदित्य तिवारी / Aditya Tiwari (@aditytiwarilive) August 5, 2025
👥 स्थानीय जनता की प्रतिक्रिया: नाराजगी और समर्थन दोनों
घटना सामने आने के बाद जहां कुछ लोग इंजीनियर की असंवेदनशीलता पर नाराज दिखे, वहीं कुछ ने मंत्री की सक्रियता की सराहना भी की।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना था कि अगर मंत्री ने हस्तक्षेप नहीं किया होता, तो शायद अभी भी बिजली नहीं आती।
🔍 इससे पहले भी सामने आ चुकी हैं लापरवाही की घटनाएं
यह पहली बार नहीं है जब बिजली विभाग के किसी कर्मचारी पर जनता से दुर्व्यवहार या लापरवाही का आरोप लगा हो। इससे पहले भी कई जिलों में इसी तरह की घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जहां जन प्रतिनिधियों या आम लोगों को खुद लाइनमैन या JE से भिड़ना पड़ा।
🏛️ प्रशासन के लिए सबक या महज दिखावा?
इस पूरे घटनाक्रम को कई लोग एक ‘PR स्टंट’ भी कह सकते हैं, लेकिन जो बात सामने आई, वह वाकई चिंताजनक है।
- अधिकारी का मंत्री से ऐसा व्यवहार करना
- शिकायतों के बाद भी कार्रवाई न करना
- मंत्री को खुद मैदान में उतरना पड़ना
इन सब से यही साबित होता है कि व्यवस्था में कहीं न कहीं गहरी चूक है, जिसे दुरुस्त करना अब ज़रूरी है।
✍️ जवाबदेही तय होनी ही चाहिए
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि अगर आम आदमी की समस्याएं अनसुनी रह जाती हैं, तो हमारी प्रशासनिक व्यवस्था किस दिशा में जा रही है?
ट्रांसफॉर्मर खुद लेकर आने का ताना सिर्फ एक बयान नहीं था, बल्कि यह व्यवस्था की सच्चाई का आइना भी था।
ज़रूरत है कि विभागीय जवाबदेही सुनिश्चित की जाए और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
💬 आपका क्या कहना है?
क्या आपने कभी ऐसी स्थिति का सामना किया है जहां सरकारी अधिकारी ने आपकी समस्या को नजरअंदाज़ किया हो?
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