भारत और जापान के बीच लंबे समय से चला आ रहा कृषि संबंधी तनाव अब एक नए मोड़ पर पहुंच चुका है। जापान ने ऐसे समय में अमेरिका को अपने बेहद संवेदनशील चावल बाज़ार तक पहुंच प्रदान की है, जब भारत की कृषि सब्सिडी और सार्वजनिक भंडारण नीति को लेकर WTO में बहस तेज़ है। यह फैसला वैश्विक कृषि व्यापार के समीकरणों को बदलने की क्षमता रखता है।
अमेरिका को कैसे मिला जापान के चावल बाज़ार में प्रवेश
जापान ने ‘मिनिमम एक्सेस फ्रेमवर्क’ के तहत अमेरिका को पहली बार पूरी तरह से मिल्ड या पॉलिश्ड चावल निर्यात करने की अनुमति दी है। पहले अमेरिका को केवल मिश्रित या ब्रोकेन क्वालिटी वाले चावल के लिए सीमित कोटा दिया जाता था। अब अमेरिकी कंपनियां जापानी बाज़ार में बड़े पैमाने पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकती हैं।
यह फैसला अमेरिका-जापान व्यापार समझौते में बड़ी प्रगति का संकेत है, जो लंबे समय से लंबित था। साथ ही, अमेरिका की वर्षों पुरानी मांग भी पूरी हुई है।
भारत के लिए इस फैसले के निहितार्थ
भारत दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातकों में शामिल है, और जापान का यह कदम संकेत देता है कि भारत के मुकाबले अमेरिका को व्यापारिक प्राथमिकता दी जा रही है। इससे भारत को WTO में पहले से जारी दबाव के साथ-साथ वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा का भी सामना करना पड़ेगा।
भारत की MSP और भंडारण नीति पर जापान और अमेरिका पहले से आपत्ति जता चुके हैं। अब जापान द्वारा अमेरिका को दी गई व्यापारिक छूट इस आपत्ति को और मज़बूती दे सकती है।
Donald J. Trump Truth Social 06.09.25 02:47 PM EST pic.twitter.com/WYlra9wSt6
— Fan Donald J. Trump Posts From Truth Social (@TrumpDailyPosts) June 9, 2025
जापान में चावल बाज़ार की संवेदनशीलता
जापान में चावल केवल खाद्य उत्पाद नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान का प्रतीक है। वर्षों तक जापानी सरकार ने विदेशी चावल आयात पर सख्त प्रतिबंध लगाए रखे, ताकि स्थानीय किसानों की रक्षा की जा सके। लेकिन अब वैश्विक दबाव और व्यापारिक रणनीतियों के तहत इस नीति में ढील दी जा रही है।
अमेरिका को इस संवेदनशील बाज़ार में प्रवेश मिलना बड़ा रणनीतिक परिवर्तन है।
वैश्विक चावल व्यापार पर पड़ने वाला असर
यह फैसला सिर्फ भारत और जापान को नहीं, बल्कि वैश्विक चावल बाज़ार को भी प्रभावित करेगा। अमेरिका की नई हिस्सेदारी से भारत की पारंपरिक मार्केट हिस्सेदारी प्रभावित हो सकती है।
भारत को अब नए बाज़ार खोजने होंगे और अपनी नीतियों को वैश्विक व्यापार के अनुकूल बनाना होगा। साथ ही, WTO जैसी संस्थाओं में अपनी स्थिति मज़बूत करनी होगी।
भारत की नीति के सामने सवाल
भारत की MSP और खाद्य सुरक्षा नीति घरेलू हितों के लिए अहम है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय नियमों से टकराव की स्थिति में आ गई है। सवाल यह है कि क्या भारत को नीति में बदलाव करना चाहिए या उसे मजबूती से वैश्विक मंच पर अपनी बात रखनी चाहिए?
भारत का तर्क है कि उसकी नीति गरीबों की खाद्य सुरक्षा के लिए है, लेकिन विकसित देश इसे अनुचित व्यापारिक लाभ के रूप में देखते हैं।
कूटनीतिक संदेश और Gita Gopinath प्रकरण से तुलना
भारत की आर्थिक नीति अब वैश्विक चर्चा का विषय बन चुकी है। हाल ही में गीता गोपीनाथ के IMF से इस्तीफे और हार्वर्ड वापसी की खबर ने यह संकेत दिया कि भारत से जुड़ी आर्थिक दिशा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष महत्व रखती है।
उसी परिप्रेक्ष्य में जापान का यह फैसला भी एक कूटनीतिक संदेश के रूप में देखा जा सकता है।
अब आगे भारत को क्या करना चाहिए?
भारत को अपनी कृषि नीतियों की पुनर्समीक्षा करनी होगी। MSP, सब्सिडी और सार्वजनिक भंडारण जैसे मुद्दों पर वैश्विक नियमों के तहत लचीलापन और रणनीतिक बदलाव लाने होंगे।
नई तकनीकों, उत्पाद विविधता, और वैश्विक साझेदारियों की ओर बढ़ना अब ज़रूरी है। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों के तहत घरेलू हितों की रक्षा करना चुनौतीपूर्ण लेकिन आवश्यक होगा।
निष्कर्ष
जापान का अमेरिका को चावल बाज़ार में प्रवेश देना सिर्फ एक व्यापारिक निर्णय नहीं है, यह भारत के लिए रणनीतिक चेतावनी भी है। भारत को अब यह तय करना है कि वह अपनी नीति में बदलाव करेगा या वैश्विक संस्थाओं के सामने मजबूती से अपने मॉडल को प्रस्तुत करेगा।
आपका क्या मानना है?
क्या भारत को WTO के दबाव में आकर MSP और भंडारण नीति में बदलाव करना चाहिए या मौजूदा नीति को ही बनाए रखना चाहिए?
नीचे कमेंट कर अपनी राय ज़रूर साझा करें।