रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक राजनीति में लगातार तनाव बना हुआ है, और इसी क्रम में अमेरिका की ओर से एक सख्त चेतावनी सामने आई है। अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने सीधे तौर पर भारत, चीन और ब्राज़ील को लताड़ लगाते हुए कहा कि यदि ये देश रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदते रहे, तो भविष्य में अमेरिका इनकी अर्थव्यवस्था को ‘कुचल’ सकता है।
यह बयान ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं और डोनाल्ड ट्रंप की वापसी की अटकलें लगाई जा रही हैं।
धमकी का ब्योरा: लिंडसे ग्राहम का बयान
सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान कहा:
“अगर डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में लौटते हैं, तो वो ऐसे देशों को बख्शेंगे नहीं जो रूस से तेल खरीदते हैं। वो इनकी अर्थव्यवस्था पर कड़े टैरिफ लगाएंगे और उन्हें कुचल देंगे।”
इस बयान में ग्राहम ने तीन देशों का नाम स्पष्ट रूप से लिया – भारत, चीन और ब्राज़ील। उनके अनुसार, रूस की आर्थिक शक्ति को कमजोर करने के लिए यह ज़रूरी है कि अन्य देश उससे तेल की खरीद बंद करें।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि ट्रंप की वापसी से पहले ही रूस पर दबाव बनाना आवश्यक है और जो देश उसकी मदद कर रहे हैं, उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
भारत, चीन और ब्राज़ील पर असर की आशंका
भारत, चीन और ब्राज़ील वर्तमान में रूस से कच्चे तेल की खरीदारी कर रहे हैं, खासकर तब से जब पश्चिमी देशों ने उस पर प्रतिबंध लगाए हैं।
- भारत ने रूस से रियायती दर पर तेल खरीद को अपने नागरिकों के लिए फायदेमंद बताया है।
- चीन की ऊर्जा नीति पहले से ही रूस पर काफी हद तक निर्भर रही है।
- वहीं ब्राज़ील ने हालिया महीनों में रूस से कच्चे तेल की खरीद में बढ़ोत्तरी की है।
इन तीनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं काफी हद तक ऊर्जा आपूर्ति पर निर्भर हैं। अगर अमेरिकी टैरिफ लागू हुए, तो इनका असर सीधे तौर पर व्यापार और उद्योग पर पड़ सकता है।
So here we have US Senator Lindsey Graham threatening China, India and Brazil.
“If you continue buying cheap Russian oil, we will impose tariffs and we will crush your economy” pic.twitter.com/WE4hEb1y5c
— Richard (@ricwe123) July 21, 2025
कूटनीतिक प्रतिक्रिया: भारत की अब तक की नीति
भारत ने अब तक रूस से तेल की खरीद को लेकर संतुलन बनाने की कोशिश की है।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भारत केवल अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है और रूस से मिलने वाला सस्ता तेल उसी रणनीति का हिस्सा है।
अभी तक भारत की ओर से इस चेतावनी पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन विदेश मंत्रालय पहले भी स्पष्ट कर चुका है कि भारत किसी तीसरे देश के दबाव में आकर ऊर्जा नीति नहीं बनाएगा।
जैसे हाल ही में पंजाब सरकार ने हर विधानसभा क्षेत्र में आधुनिक लाइब्रेरी की घोषणा की, जो एक संतुलित नीतिगत निर्णय का उदाहरण है, ठीक वैसे ही भारत विदेश नीति में भी संतुलन साधने का प्रयास कर रहा है।
ट्रंप की नीतियों की वापसी की आशंका
डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल टैरिफ और संरक्षणवादी नीतियों के लिए जाना जाता है।
- उन्होंने चीन पर भारी टैरिफ लगाए
- कनाडा और यूरोप के साथ ट्रेड वॉर की स्थिति बना दी थी
- और कई बार भारत के आयात-निर्यात को लेकर भी सवाल उठाए थे
अब जबकि 2024 में ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने की संभावना जताई जा रही है, ऐसे में लिंडसे ग्राहम की चेतावनी को हल्के में नहीं लिया जा सकता। ये भविष्य की अमेरिकी विदेश नीति की झलक हो सकती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध की भूमिका और अमेरिका का दृष्टिकोण
अमेरिका का मानना है कि रूस की आय का मुख्य स्रोत तेल और गैस है।
- इसलिए रूस से तेल खरीदना, अप्रत्यक्ष रूप से युद्ध को फंड करने के समान है
- अमेरिका चाहता है कि दुनिया रूस से तेल न खरीदे, जिससे उस पर आर्थिक दबाव बढ़े
यही कारण है कि अमेरिका लगातार भारत, चीन और अन्य देशों से रूस से दूरी बनाने की अपील करता रहा है। अब ये अपील चेतावनी में बदल गई है।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह बयान कितना प्रभावी?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की चेतावनियां राजनीतिक स्टेटमेंट भर होती हैं।
- संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर किसी देश की स्वतंत्र नीति को बाधित नहीं किया जा सकता
- लेकिन अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश आर्थिक प्रतिबंधों के जरिए दबाव जरूर बना सकता है
भारत, चीन और ब्राज़ील जैसी अर्थव्यवस्थाएं ऐसी चेतावनियों को गंभीरता से लेती हैं, लेकिन पूरी तरह झुकना इनकी नीति नहीं रही है।
विशेषज्ञों की राय: धमकी या रणनीति?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान एक रणनीतिक दांव है, ताकि रूस से दूरी बनाई जा सके।
- यह सीधे ट्रंप की प्रचार रणनीति से जुड़ा है
- ग्राहम की यह टिप्पणी ट्रंप की नीतियों को दोहराने का प्रयास है
भारत और ब्राज़ील के थिंक टैंक इस बयान को “राजनीतिक शोरगुल” मानते हैं, लेकिन चीन ने इससे जुड़ी किसी प्रतिक्रिया पर अब तक चुप्पी साध रखी है।
आगे क्या हो सकता है?
अब सवाल यह है कि क्या ये देश रूस से तेल खरीदना बंद करेंगे?
- भारत फिलहाल अपनी नीति में बदलाव के संकेत नहीं दे रहा
- ब्राज़ील और चीन ने भी प्रतिक्रिया नहीं दी है
हालांकि, अमेरिका का रुख बदलेगा या नहीं, ये ट्रंप के चुनाव जीतने पर निर्भर करेगा।
लेकिन इतना जरूर है कि इस चेतावनी ने एक बार फिर से वैश्विक मंच पर उथल-पुथल मचा दी है।
आपके क्या विचार हैं? क्या भारत को अपनी नीति बदलनी चाहिए या राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं?
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