हर साल 11 जुलाई को मनाया जाने वाला World Population Day एक वैश्विक चेतावनी का संकेत है—कि हम न केवल कितने हैं, बल्कि कैसे हैं, कहां हैं, और किन परिस्थितियों में रह रहे हैं। 1989 में United Nations Development Programme (UNDP) ने इस दिवस की शुरुआत की थी, ताकि जनसंख्या से जुड़े मुद्दों पर लोगों को जागरूक किया जा सके। आज जब भारत दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है, तब यह दिवस और भी ज्यादा महत्व रखता है।
2025 की थीम: जनसंख्या, समानता और सतत विकास
इस वर्ष की थीम “जनसंख्या और समानता का संतुलन: सतत विकास के लिए साझेदारी” रखी गई है। इसका उद्देश्य केवल जनसंख्या संख्या को देखना नहीं, बल्कि उन परिस्थितियों को समझना है जो इस वृद्धि को प्रभावित करती हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और रोजगार जैसे पहलुओं को केंद्र में रखकर यह थीम हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम विकास की सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
यह थीम हमें यह भी बताती है कि केवल संख्या घटाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि हमें सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को खत्म करना होगा ताकि जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास स्थायी और प्रभावी हो सकें।
जोड़ी जिम्मेदार, जो प्लान करें परिवार।
मां बनने की उम्र वही,
जब तन और मन की तैयारी सही।।#worldpopulationday2025 #familyplanning#NiramayRajasthan@RajCMO@GajendraKhimsar@MoHFW_INDIA@nhm_rajasthan pic.twitter.com/XV9nOIi4zh— CMHO IEC JALORE (@IecJalore) July 8, 2025
भारत की जनसंख्या स्थिति 2025 में
भारत अब चीन को पीछे छोड़ते हुए 1.44 अरब से अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है। ये संख्या अपने आप में कोई समस्या नहीं है, लेकिन यदि संसाधनों की उपलब्धता, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा इसके अनुसार न हों, तो यह देश के लिए एक बड़ा बोझ बन सकती है।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच का अंतर भी इसमें अहम भूमिका निभाता है। ग्रामीण इलाकों में आज भी बाल विवाह, महिला शिक्षा की कमी और पारिवारिक दबाव जैसे कारणों से जनसंख्या वृद्धि तेज़ी से हो रही है। इसके उलट, शहरी क्षेत्रों में जागरूकता के बावजूद आर्थिक अस्थिरता जनसंख्या प्रबंधन को चुनौतीपूर्ण बना देती है।
बढ़ती जनसंख्या के पीछे कारण और परिणाम
भारत जैसे देश में जनसंख्या वृद्धि के पीछे शिक्षा की कमी, लैंगिक असमानता, बाल विवाह, धार्मिक-परंपरागत सोच और स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुंच जैसी कई वजहें सामने आती हैं। परिणामस्वरूप बेरोजगारी, संसाधनों पर दबाव, खाद्य संकट, पर्यावरणीय असंतुलन जैसी समस्याएं विकराल रूप ले लेती हैं।
हालांकि, यह भी सत्य है कि जनसंख्या सही दिशा और नीति के तहत विकास का इंजन भी बन सकती है। युवाओं की संख्या अधिक होना एक डेमोग्राफिक डिविडेंड है – बशर्ते कि उन्हें सही अवसर और दिशा मिले।
सरकार की योजनाएं और नीति प्रयास
भारत सरकार ने परिवार नियोजन और जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए कई पहलें शुरू की हैं। ‘मिशन परिवार विकास’ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से उच्च-जनसंख्या वृद्धि दर वाले जिलों पर फोकस किया गया है। इसके अलावा, ASHA कार्यकर्ताओं और स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से जागरूकता फैलाने का प्रयास हो रहा है।
साथ ही, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को सीधे सरकारी योजनाओं से जोड़ने के लिए ई-श्रम कार्ड रजिस्ट्रेशन जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे सामाजिक सुरक्षा और जागरूकता दोनों का लाभ मिल सके।
Today, we held a press briefing @UgandaMediaCent ahead of the World Population Day 2025 celebrations on the theme “Promoting Health and Well-being through the Parish Development Model”.
This year, Uganda will host the celebrations on 11th July 2025 at Busaana Town Council… pic.twitter.com/2ywSLv3LwR
— National Planning Authority 🇺🇬 (@NPA_UG) July 8, 2025
युवाओं की भूमिका – जागरूकता की असली शक्ति
भारत की आधी से ज्यादा आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। ऐसे में यह आवश्यक है कि युवा वर्ग न केवल स्वयं जागरूक हो, बल्कि समाज में बदलाव का कारण भी बने। स्कूलों, कॉलेजों और सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्मों पर इस विषय पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए।
युवाओं को यह समझना होगा कि जनसंख्या नियंत्रण केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि व्यक्तिगत निर्णयों और सोच की भी आवश्यकता है। समाज में परिवर्तन तभी संभव है जब हर व्यक्ति अपनी भूमिका समझे और निभाए।
विश्व की जनसंख्या स्थिति: 2025 में टॉप 5 देश
वर्ल्ड पॉपुलेशन डे पर यह जानना भी जरूरी है कि पूरी दुनिया में जनसंख्या का वितरण कैसा है। 2025 के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार:
- भारत: ~1.44 अरब
- चीन: ~1.42 अरब
- अमेरिका: ~34 करोड़
- इंडोनेशिया: ~28 करोड़
- पाकिस्तान: ~25 करोड़
इन पांच देशों में ही दुनिया की कुल जनसंख्या का लगभग 50% हिस्सा रहता है। ऐसे में इन देशों की नीति और रणनीतियां वैश्विक जनसंख्या संतुलन में बड़ी भूमिका निभाती हैं।
समाधान की दिशा में सोच
जनसंख्या से जुड़ी चुनौतियों का हल किसी एक कदम से नहीं निकलेगा। इसके लिए दीर्घकालिक और बहु-आयामी सोच की जरूरत है:
- शिक्षा का विस्तार
- महिला सशक्तिकरण और स्वावलंबन
- स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर पहुंच
- डेटा पर आधारित नीति निर्माण
- स्थानीय स्तर पर जागरूकता अभियान
जब हम लोगों को उनकी ज़िम्मेदारी समझाएंगे और विकल्प देंगे, तब वे स्वतः ही बेहतर निर्णय लेंगे। किसी भी तरह की जबरदस्ती या एकतरफा नीति से बचना जरूरी है।
जनसंख्या – जिम्मेदारी, न कि बोझ
वर्ल्ड पॉपुलेशन डे 2025 एक अवसर है – विचार करने का, संवाद शुरू करने का, और बदलाव लाने का। जनसंख्या संख्या नहीं, सोच की दिशा है। और यदि हम चाहते हैं कि भारत प्रगति की ओर बढ़े, तो हमें हर स्तर पर संतुलित और समावेशी सोच अपनानी होगी।
यह जरूरी नहीं कि हम कितने लोग हैं, बल्कि जरूरी यह है कि हम कैसे सोचते हैं, कैसे कार्य करते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या दिशा तय करते हैं।