उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को और पारदर्शी बनाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बड़ा कदम उठाया है। राज्य के सभी विश्वविद्यालयों और डिग्री कॉलेजों की मान्यता, दाखिला प्रक्रिया और चल रहे कोर्स की व्यापक जांच के आदेश दिए गए हैं। यह फैसला ऐसे समय पर लिया गया है जब लगातार शिकायतें सामने आ रही थीं कि कुछ संस्थान बिना मान्यता के कोर्स चला रहे हैं और छात्रों को भ्रमित कर रहे हैं। सरकार का यह कदम शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की दिशा में अहम माना जा रहा है।
शिकायतों से शुरू हुई कार्रवाई
बीते वर्षों में राज्य के कई हिस्सों से शिकायतें आई थीं कि कुछ कॉलेजों में फर्जी दाखिले और मान्यता के बिना कोर्स चलाए जा रहे हैं। छात्रों और अभिभावकों को अक्सर यह पता ही नहीं चलता कि जिस कोर्स में उनका दाखिला हुआ है, वह वैध है या नहीं। इस तरह की गतिविधियों से न केवल छात्रों का भविष्य दांव पर लग जाता है, बल्कि पूरी शिक्षा व्यवस्था की साख भी प्रभावित होती है।
यूपी सरकार पहले भी शिक्षा में सुधार के लिए कई कदम उठा चुकी है, जिनमें कॉलेजों की मान्यता प्रक्रिया को कड़ा करना और डिजिटल वेरिफिकेशन सिस्टम लागू करना शामिल है। यह नया आदेश उसी सुधारात्मक प्रयास का हिस्सा माना जा रहा है।
सभी विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में संचालित पाठ्यक्रमों की मान्यता व प्रवेश प्रक्रिया की गहन जांच तत्काल शुरू की जाए।
प्रत्येक जनपद स्तर पर जांच पूरी कर 15 दिनों के भीतर शासन को समेकित रिपोर्ट भेजना अनिवार्य होगा।
जांच की पूरी प्रक्रिया पर मंडलायुक्त…
— Yogi Adityanath Office (@myogioffice) September 8, 2025
जांच का दायरा
इस जांच का दायरा बेहद व्यापक रखा गया है। इसमें राज्य के सभी डिग्री कॉलेज और विश्वविद्यालय शामिल होंगे। जांच टीम को खास तौर पर इन पहलुओं पर ध्यान देने का निर्देश दिया गया है:
- दाखिला प्रक्रिया पारदर्शी है या नहीं।
- कौन-कौन से कोर्सेस चल रहे हैं और क्या वे संबंधित नियामक संस्थाओं से मान्यता प्राप्त हैं।
- कॉलेज और विश्वविद्यालयों के पास पर्याप्त फैकल्टी और इंफ्रास्ट्रक्चर है या नहीं।
- छात्रों से ली जाने वाली फीस नियमों के अनुरूप है या नहीं।
सरकार चाहती है कि इस जांच से यह साफ हो सके कि कौन-से संस्थान नियमों का पालन कर रहे हैं और किन्होंने अनियमितताएं की हैं।
छात्रों पर असर
इस फैसले का सीधा असर छात्रों पर पड़ेगा। जिन छात्रों ने हाल ही में दाखिला लिया है, उनके मन में यह सवाल है कि उनकी डिग्री मान्य होगी या नहीं। वहीं अभिभावक भी चाहते हैं कि बच्चों को ऐसी किसी संस्था में पढ़ाई न करनी पड़े जिसका भविष्य अनिश्चित हो।
हालांकि सरकार का कहना है कि genuine छात्रों को किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी। बल्कि, यह कदम उन युवाओं के लिए सुरक्षा कवच का काम करेगा जो अपनी मेहनत और पैसे से पढ़ाई कर रहे हैं।
इसी संदर्भ में मुख्यमंत्री पहले भी कह चुके हैं कि युवाओं को सुरक्षित और पारदर्शी माहौल में शिक्षा और रोजगार का अवसर मिलना चाहिए। उन्होंने हाल ही में यह भी बताया था कि प्रदेश में अब तक 8 लाख से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरियां दी जा चुकी हैं। (👉 पूरी खबर यहां पढ़ें) यह लिंक साफ दर्शाता है कि सरकार शिक्षा और रोजगार दोनों मोर्चों पर युवाओं को मजबूत आधार देने की कोशिश में है।
Triggered by lathicharge on ABVP members protesting over the accreditation issue of law course at Shri ramswaroop Memorial University in Barabanki, UP government has now ordered a probe into recognition and admission processes at all private and non government aided universities… pic.twitter.com/JOuuhuP26T
— Piyush Rai (@Benarasiyaa) September 9, 2025
कॉलेज प्रशासन और प्रबंधन की भूमिका
इस जांच में कॉलेज प्रशासन की भूमिका सबसे अहम होगी। जिन संस्थानों में पहले अनियमितताएं हुई हैं, उन्हें अपने दस्तावेज और रिकॉर्ड प्रस्तुत करने होंगे। अगर किसी कॉलेज में फर्जी कोर्स या बिना मान्यता वाले कार्यक्रम चलते पाए गए तो उस पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है।
प्रबंधन की जिम्मेदारी होगी कि वे पारदर्शी ढंग से जानकारी उपलब्ध कराएं और छात्रों को सही गाइडलाइन दें। यह जांच उन्हें भी सतर्क करेगी ताकि भविष्य में किसी तरह की गड़बड़ी की गुंजाइश न बचे।
सरकार और शिक्षा विभाग का रुख
मुख्यमंत्री ने साफ कहा है कि शिक्षा व्यवस्था से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। शिक्षा विभाग को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि इस जांच में किसी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी।
सरकार चाहती है कि छात्रों और अभिभावकों का विश्वास शिक्षा प्रणाली पर बना रहे। यही कारण है कि प्रशासन ने पारदर्शिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
विशेषज्ञों की राय और नीति संदर्भ
शिक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि यह जांच लंबे समय से जरूरी थी। जब तक मान्यता प्रक्रिया और कोर्स की पारदर्शिता सुनिश्चित नहीं होती, तब तक उच्च शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती रहेगी।
नई शिक्षा नीति (NEP 2020) भी इसी बात पर जोर देती है कि कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में गुणवत्ता आधारित शिक्षा दी जाए और कोर्स केवल नियामक संस्थाओं की अनुमति से ही चलाए जाएं।
आगे की राह
जांच पूरी होने के बाद सरकार सुधारात्मक कदम उठाएगी। जिन कॉलेजों में खामियां मिलेंगी, उन्हें दंडित किया जाएगा और जिन संस्थानों का रिकॉर्ड साफ मिलेगा, उनकी मान्यता और मजबूत होगी।
सरकार का लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा का एक विश्वसनीय केंद्र बने, जहां छात्र निश्चिंत होकर दाखिला ले सकें।
निष्कर्ष
योगी आदित्यनाथ का यह फैसला शिक्षा व्यवस्था की मजबूती की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे न केवल छात्रों का भविष्य सुरक्षित होगा, बल्कि कॉलेज और विश्वविद्यालय भी पारदर्शिता और नियमों का पालन करने को मजबूर होंगे। शिक्षा की साख और गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए ऐसे कदम बेहद जरूरी हैं।B