पंजाब पुलिस के पूर्व SP बलबीर सिंह को 1993 में हुए एक फर्जी एनकाउंटर केस में दोषी करार देते हुए कोर्ट ने 10 साल की कठोर सजा सुनाई है।
यह फैसला चंडीगढ़ की एक विशेष अदालत ने सुनाया, जिसमें कहा गया कि कानून से कोई भी ऊपर नहीं है। अदालत ने दोषी को ₹75,000 का जुर्माना भी लगाया है। यह मामला 31 साल पुराना था और आज जब फैसला आया तो न्याय की उम्मीद लगाए बैठे परिवारों के लिए राहत का क्षण बन गया।
क्या था 1993 का मामला?
इस केस की शुरुआत हुई थी 1993 में, जब सतनाम सिंह नामक युवक को पुलिस ने हिरासत में लिया और बाद में कथित रूप से फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया।
मामले के अनुसार, SP बलबीर सिंह और उनके अधीनस्थ पुलिसकर्मियों ने एक जानबूझकर फर्जी एनकाउंटर रचा और इसमें न केवल सतनाम सिंह की जान गई बल्कि दो कांस्टेबलों को भी गोली लगी।
पुलिस ने उस समय दावा किया था कि सतनाम सिंह आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त था, लेकिन मामले की तह तक जाने पर सच्चाई कुछ और ही निकली।
कब और कैसे दर्ज हुआ केस?
इस घटना की FIR दर्ज कराने में सालों लग गए। सतनाम सिंह के परिवार ने 1996 में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन जांच की रफ्तार धीमी रही।
बाद में जब केस मानवाधिकार संगठनों की नजर में आया, तब इसे गंभीरता से लिया गया।
CBI ने भी इस केस की जांच में भूमिका निभाई, लेकिन कानूनी प्रक्रिया में अत्यधिक देरी होती रही। यह मामला पंजाब की पुलिसिंग व्यवस्था पर गंभीर सवाल भी उठाता है।
31 साल लंबी कानूनी लड़ाई
इस केस की सुनवाई करीब तीन दशकों तक चली।
अदालत में पेश सबूतों और गवाहों के आधार पर यह साबित हुआ कि सतनाम सिंह की मौत एक फर्जी मुठभेड़ में हुई थी और पुलिस ने अपनी ताकत का दुरुपयोग किया।
सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने दावा किया कि पुलिस ने सिर्फ ड्यूटी निभाई, लेकिन कोर्ट ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन मानते हुए दोषी करार दिया।
बलबीर सिंह को कोर्ट ने आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास) और अन्य संबंधित धाराओं में दोषी माना।
कोर्ट का निर्णय और उसकी टिप्पणी
अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि कानून का शासन सबसे ऊपर है और कोई भी अधिकारी अपनी वर्दी की आड़ में कानून को तोड़ने का हकदार नहीं हो सकता।
न्यायमूर्ति बलविंदर सिंह ने कहा:
“इस देश की अदालतें भले देर से फैसला दें, पर अन्याय नहीं होने देतीं।”
साथ ही अदालत ने ये भी स्पष्ट किया कि अन्य आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने के कारण उन्हें बरी किया जा रहा है।
. “At a time when #JaswantsinghKhalra biopic #Punjab95 is struggling for uncut release,a retired SP of #PunjabPolice has convicted & sentenced to 10 years of imprisonment by CBI court Punjab in 32year,old abduction case of two youngsters who were themselves police constables. pic.twitter.com/N6YK6ckcdk
— Gurshamshir Singh (@gswaraich6) July 23, 2025
न्याय की देरी: व्यवस्था पर सवाल
31 साल का लंबा इंतजार एक बड़ा सवाल है – क्या हमारी न्याय प्रणाली आम नागरिकों के लिए सुलभ और समयबद्ध है?
सतनाम सिंह के परिवार को तीन दशक बाद इंसाफ मिला, लेकिन इस दौरान उन्होंने जो दर्द सहा, उसकी भरपाई कोई भी न्याय नहीं कर सकता।
भारत में हजारों मामले ऐसे हैं जो वर्षों से लंबित हैं, खासकर जहां पुलिस या सत्ता में बैठे लोग आरोपी होते हैं।
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परिवार का दर्द: “31 साल बाद बेटे की आत्मा को शांति मिलेगी”
सतनाम सिंह के पिता ने कहा –
“हमने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। अब जाकर बेटे की आत्मा को शांति मिलेगी।”
परिवार ने कोर्ट के फैसले पर संतोष जताया, लेकिन यह भी कहा कि इतनी देर तक न्याय न मिलना एक और अन्याय की तरह होता है।
जनता और सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
हालांकि ये फैसला ज्यादा मीडिया सुर्खियों में नहीं आया, लेकिन सोशल मीडिया पर कई यूज़र्स ने ‘Justice Delayed But Delivered’ हैशटैग से प्रतिक्रिया दी।
कई लोगों ने कहा कि अगर ऐसे मामलों में सख्त सजा समय पर दी जाए तो पुलिस के भीतर अनुशासन और जवाबदेही दोनों बढ़ेंगी।
फर्जी एनकाउंटर: क्या पंजाब में यह ट्रेंड रहा है?
पंजाब में 1980-90 के दशक में आतंकवाद से निपटने के नाम पर कई कथित फर्जी एनकाउंटर हुए।
NHRC और मानवाधिकार संगठनों ने बार-बार ऐसे मामलों की जांच की मांग की है।
यह केस उन हजारों मामलों में से एक है जिसमें फैसला आया, लेकिन अनगिनत मामले अब भी बंद फाइलों में पड़े हैं।
कानून से ऊपर कोई नहीं
यह फैसला भले ही देर से आया हो, लेकिन यह एक मजबूत संदेश देता है –
“अगर आप वर्दी में हैं, तो आपकी जिम्मेदारी और भी बड़ी है, न कि आप कानून से ऊपर हो जाते हैं।”
इस केस से यही उम्मीद जगी है कि आगे और भी फर्जी एनकाउंटर मामलों में सख्त कदम उठाए जाएंगे और न्याय को समयबद्ध बनाया जाएगा।




















