दिल्ली अगले हफ्ते एक अहम राजनीतिक हलचल का गवाह बनने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात करने वाले हैं। वजह? ऑपरेशन सिंदूर—जो अब सिर्फ एक मिशन नहीं, बल्कि भारत के बढ़ते वैश्विक कद का प्रतीक बन चुका है।
सरकार इस मुलाकात के जरिए यह साफ करना चाहती है कि सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर सभी दलों की भागीदारी जरूरी है, चाहे वो सत्ता पक्ष हो या विपक्ष। बैठक में ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ी प्रगति, इसके अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और आगे की रणनीति पर चर्चा की जाएगी।
📌 ऑपरेशन सिंदूर: सिर्फ एक मिशन नहीं
नाम भले ही “ऑपरेशन सिंदूर” हो, लेकिन इसका उद्देश्य कहीं अधिक व्यापक है। यह सिर्फ आतंकवाद या सुरक्षा तक सीमित नहीं है। इसमें शामिल है—साइबर सुरक्षा, वैश्विक सहयोग, रणनीतिक संवाद और भारत की तकनीकी संप्रभुता का विस्तार।
शुरुआत में इसे एक गोपनीय ऑपरेशन माना जा रहा था, लेकिन अब सरकार इसे “भारत की वैश्विक पहचान” से जोड़कर देख रही है। यही वजह है कि इस पर राजनीतिक आम सहमति बनाना ज़रूरी हो गया है।
⚡ 🇮🇳 PM Modi to meet all party delegations on Operation Sindoor next week. pic.twitter.com/o1a4zN1iO8
— The India Info (@theindiainfocom) June 3, 2025
🏛️ बैठक में कौन-कौन शामिल होगा?
सूत्रों की मानें तो बैठक में कांग्रेस, टीएमसी, AAP, बीएसपी, एनसीपी, शिवसेना, वाम दलों सहित लगभग सभी प्रमुख राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल शामिल होंगे। सरकार ने इस बार किसी को नजरअंदाज नहीं किया है।
यह कदम इसलिए भी अहम है क्योंकि बीते कुछ समय से सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि वह विपक्ष से संवाद नहीं करती। लेकिन इस बैठक से एक संदेश साफ है—सुरक्षा और कूटनीति जैसे विषयों पर राजनीति से ऊपर उठकर बात होनी चाहिए।
🌐 भारत की विदेश नीति में नया मोड़?
अगर आप हाल के वर्षों में भारत की विदेश नीति पर नज़र डालें, तो एक बदलाव साफ दिखेगा। जहां पहले हम सिर्फ क्षेत्रीय सुरक्षा पर बात करते थे, अब भारत ग्लोबल स्टेकहोल्डर बनकर उभर रहा है। ऑपरेशन सिंदूर इसी सोच का हिस्सा है।
प्रधानमंत्री मोदी की ये बैठक इस लिहाज़ से भी अहम मानी जा रही है क्योंकि इसमें तय हो सकता है कि भारत आने वाले समय में किस देशों के साथ कितनी गहराई से रणनीतिक साझेदारी बढ़ाएगा, और किन मुद्दों को वैश्विक मंच पर प्रमुखता से उठाएगा।
🧠 क्या निकल सकता है इस बैठक से?
अंदरूनी चर्चाओं के अनुसार, बैठक के बाद कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएं संभव हैं:
- ऑपरेशन सिंदूर के अगले चरण की औपचारिक घोषणा
- एक संयुक्त रणनीतिक समिति का गठन
- भारत के विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के बीच बेहतर तालमेल के लिए रोडमैप
- विपक्ष को रणनीतिक निर्णय प्रक्रिया में शामिल करने की स्थायी व्यवस्था
एक और पहलू जिस पर चर्चा हो सकती है, वह है साइबर खतरों से निपटने के लिए स्वतंत्र एजेंसी की स्थापना, जिसमें राजनीतिक दलों को नियमित रूप से अपडेट दिया जाएगा।
🗣️ विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं?
कई सुरक्षा और विदेश नीति विशेषज्ञों ने बैठक को सही समय पर लिया गया फैसला बताया है। रिटायर्ड मेजर जनरल अनिल माथुर का कहना है,
“सिर्फ सैनिक तैयारी से काम नहीं चलेगा। आज की रणनीति बहुआयामी है—राजनीति, कूटनीति और समाज तीनों को जोड़कर चलना पड़ेगा।”
वहीं विदेश नीति पर काम कर रहे लेखक और विश्लेषक श्रीधर पांडेय मानते हैं कि,
“प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष को साथ लेकर चलने का जो प्रयास किया है, वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति और मज़बूत करेगा।”
💬 जनता क्या सोच रही है?
सोशल मीडिया पर मिलीजुली प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ लोग इसे सकारात्मक पहल मान रहे हैं, वहीं कुछ का कहना है कि ऐसी बैठकों का असर तभी दिखेगा जब जमीन पर बदलाव दिखेगा। इसी बीच, ऑपरेशन सिंदूर को लेकर राजनीतिक गर्मी भी देखने को मिल रही है। हाल ही में तृणमूल कांग्रेस ने गृह मंत्री अमित शाह की एक टिप्पणी पर कड़ा ऐतराज जताया, जिससे मामले ने और तूल पकड़ लिया। पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ें कि किस बयान पर बवाल मचा और विपक्ष ने क्या प्रतिक्रिया दी।
“क्या बैठक सिर्फ दिखावा है या इससे कुछ ठोस निकलेगा?”
👉 आपका क्या विचार है इस बैठक के बारे में? नीचे कमेंट में अपनी राय जरूर दें। क्या यह सिर्फ राजनीतिक औपचारिकता है या कोई ठोस नीति की शुरुआत?
📝एकजुटता की मिसाल या रणनीतिक जरूरत?
प्रधानमंत्री की यह पहल चाहे राजनीतिक हो या रणनीतिक, लेकिन इतना तो तय है कि यह भारत के लोकतंत्र की संवादशीलता और समावेशिता को दर्शाती है।
सुरक्षा जैसे विषय पर जब सरकार और विपक्ष एक साथ बैठते हैं, तो इसका असर सिर्फ देश के भीतर नहीं, बल्कि दुनियाभर में एक सकारात्मक संदेश जाता है। ऑपरेशन सिंदूर एक मिशन से बढ़कर एक राष्ट्रीय दिशा बन चुका है—और इस दिशा को तय करने में अब हर दल की आवाज शामिल होगी।