उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ आज एक अहम आर्थिक गतिविधि का केंद्र बनी, जब 16वां वित्त आयोग राज्य के दौरे पर पहुंचा। यह दौरा इसलिए भी खास है क्योंकि राज्य सरकार इस बार टैक्स के बंटवारे में बड़े हिस्से की मांग के साथ पूरी तैयारी में है।
वित्त आयोग का यह दौरा राज्य के आर्थिक और सामाजिक ढांचे को समझने और आगामी सिफारिशों के लिए ज़मीनी हकीकत से जुड़ने का माध्यम होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार पहले ही संकेत दे चुकी है कि उत्तर प्रदेश के योगदान के अनुपात में उसे टैक्स हिस्सेदारी कम मिल रही है, जिसे अब बदलने की जरूरत है।
क्या होता है वित्त आयोग और क्यों होता है इसका गठन?
भारत के संविधान के अनुच्छेद 280 के अंतर्गत हर पाँच वर्षों में वित्त आयोग का गठन किया जाता है। इसका मुख्य कार्य केंद्र और राज्यों के बीच टैक्स के वितरण का फॉर्मूला तय करना होता है।
इस बार का आयोग – 16वां वित्त आयोग – प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. अर्विंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में कार्यरत है। इसकी टीम में नीति आयोग और वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। इस आयोग को 31 अक्टूबर 2025 तक अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपनी है।
उत्तर प्रदेश की प्रमुख मांगें क्या हैं?
यूपी सरकार इस दौरे को एक मौके के रूप में देख रही है, जहां वह आंकड़ों और ठोस तर्कों के आधार पर बढ़ी हुई टैक्स हिस्सेदारी की मांग पेश कर रही है।
राज्य की मुख्य मांगें इस प्रकार हैं:
- यूपी की बड़ी आबादी: राज्य की जनसंख्या देश की कुल आबादी का लगभग 17% है, फिर भी टैक्स वितरण में इसका हिस्सा अपेक्षाकृत कम है।
- गरीबी और पिछड़ापन: गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या अधिक है, ऐसे में अतिरिक्त फंड की जरूरत है।
- बुनियादी ढांचे की आवश्यकता: सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वच्छता क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना जरूरी है।
- यूपी का योगदान राष्ट्रीय जीडीपी में उल्लेखनीय है, मगर लाभान्विति उस अनुपात में नहीं हो रही।
➡️ यूपी का योगदान ज़्यादा, हिस्सा कम – यही है राज्य की सबसे बड़ी आपत्ति।
वित्त आयोग का कार्यक्रम – किनसे मिलेगी टीम?
आयोग का यह दौरा केवल औपचारिक नहीं है। इसके तहत टीम विभिन्न विभागों, अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों से मुलाकात करेगी। मुख्य कार्यक्रमों में शामिल हैं:
- मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री और प्रमुख सचिवों से बैठक
- शहरी व ग्रामीण योजनाओं का निरीक्षण
- किसानों, पंचायत प्रतिनिधियों और उद्योगपतियों से बातचीत
इस प्रक्रिया का उद्देश्य स्पष्ट है – जमीनी हकीकत को समझना और सिफारिशों में उसे शामिल करना।
16th Finance Commission arrives in state today, Uttar Pradesh to pitch for larger share of tax piehttps://t.co/aaRkOot4Bo
via @Uraghuvanshi— Umesh Raghuvanshi (@Uraghuvanshi) June 3, 2025
किन मापदंडों पर आधारित होगा टैक्स बंटवारा?
आयोग के सामने कई सामाजिक और आर्थिक मापदंड हैं, जिनके आधार पर वह रिपोर्ट तैयार करेगा:
- जनसंख्या और जनघनत्व
- गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या
- शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे की स्थिति
- राज्य का राजस्व संग्रहण और आर्थिक प्रदर्शन
➡️ मानव विकास सूचकांक (HDI) जैसे संकेतकों पर भी आयोग खास ध्यान देगा।
केंद्रीय बजट और राज्यों के साथ उसका संबंध
भारत का केंद्रीय बजट विभिन्न करों से मिलने वाले राजस्व को राज्यों में बांटता है। यह बंटवारा वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर होता है। वर्तमान में राज्यों को लगभग 41% हिस्सा मिलता है, लेकिन उसका वितरण राज्यवार मापदंडों पर आधारित होता है।
उत्तर प्रदेश की मांग है कि जनसंख्या, गरीबी और विकास की आवश्यकता को तवज्जो दी जाए, जिससे वह अधिक संसाधनों का उपयोग कर सके।
राजनीति से परे है आर्थिक संतुलन की बात
हालांकि यह विषय आर्थिक है, परंतु राजनीतिक दृष्टिकोण से भी इसका असर हो सकता है। एक ओर जहां केंद्र की सरकार संपूर्ण देश के संतुलित विकास की बात करती है, वहीं राज्य सरकारें स्वतंत्रता और संसाधनों की मांग करती हैं।
➡️ टैक्स डिवीजन का सीधा असर जनता के जीवन स्तर और राज्य की योजनाओं पर पड़ता है।
यूपी को क्या मिल सकता है फायदा?
अगर 16वां वित्त आयोग उत्तर प्रदेश की बातों को गंभीरता से लेता है, तो राज्य को अगली पंचवर्षीय योजना में बड़ा आर्थिक लाभ मिल सकता है। इससे न केवल सरकारी योजनाओं में गति आएगी, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसे क्षेत्रों में सुधार भी संभव होगा।
आयोग की सिफारिशें 2025 के अंत तक आएंगी, और तब तक राज्यों की अपेक्षाएं बढ़ती रहेंगी। उत्तर प्रदेश के लिए यह “फंडamental” मोमेंट साबित हो सकता है।
आपकी राय क्या है?
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