अमेरिका के लॉस एंजेलिस शहर में अचानक भड़के दंगों और प्रदर्शनों ने देशभर को हिला कर रख दिया है। इन दंगों की जड़ में प्रवासी संकट और प्रशासन की प्रतिक्रिया छिपी है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस स्थिति को देखते हुए सख्त रुख अपनाते हुए संघीय एजेंसियों को निर्देश दिए हैं कि अवैध प्रवासियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। ट्रंप ने इस मामले को “घुसपैठ की स्थिति” बताया है और कहा है कि “अवैध प्रवासियों को देश से निकाला जाएगा।”
ट्रंप का बयान: “यह आक्रमण है, न कि सिर्फ अवैध प्रवेश”
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने संबोधन में कहा कि अमेरिका के सीमावर्ती राज्यों में घुसपैठ की स्थिति बन चुकी है। उनका मानना है कि यह एक सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है। उन्होंने साफ कहा:
“हम अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे। जो भी अवैध रूप से आए हैं, उन्हें वापस भेजा जाएगा। यह हमारा कर्तव्य है अपने नागरिकों की सुरक्षा करना।”
ट्रंप के इस बयान ने अमेरिका की राजनीति को फिर गरमा दिया है। कई लोगों ने इसे आने वाले राष्ट्रपति चुनाव की रणनीति बताया, जबकि कुछ ने इसे जनता की सुरक्षा का सवाल माना।
Is this what you voted for… President Trump has just ordered military and defense officials to “LIBERATE Los Angeles from the migrant invasion” and end the riots.
I voted for it pic.twitter.com/cxSmiGeMUI
— Terrence K. Williams (@w_terrence) June 8, 2025
लॉस एंजेलिस में जलता गुस्सा: सड़कों पर प्रदर्शन और हिंसा
इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत लॉस एंजेलिस में हुई जब प्रवासी समुदाय ने एक स्थानीय पुलिस कार्रवाई के विरोध में प्रदर्शन किया। देखते ही देखते यह विरोध हिंसक झड़पों और आगजनी में बदल गया।
- वेस्टलेक, डाउनटाउन और ईस्ट एलए के क्षेत्रों में दुकानें लूटी गईं।
- पुलिस वाहनों पर पथराव किया गया।
- कई जगह आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं दर्ज की गईं।
स्थिति को काबू में लाने के लिए शहर में नेशनल गार्ड तैनात कर दिए गए हैं और रात्रि कर्फ्यू लागू किया गया है।
प्रवासी समुदाय में भय का माहौल
ट्रंप के बयानों और दंगों के बाद प्रवासी समुदाय में घबराहट साफ देखी जा रही है। विशेषकर लैटिन अमेरिकी और एशियाई देशों से आए अवैध प्रवासी अब अपना सामान समेटकर शहर छोड़ने की तैयारी में हैं।
कई लोगों का कहना है कि वे दशकों से अमेरिका में हैं, उनके बच्चे यहीं जन्मे हैं, और अब अचानक से “अवैध” ठहरा दिए जाने का डर उन्हें रातों की नींद छीन रहा है।
मानवाधिकार संगठनों और डेमोक्रेट नेताओं की आलोचना
इस मुद्दे पर अमेरिकी राजनीति भी दो हिस्सों में बंट चुकी है।
डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं ने ट्रंप के बयान की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह सिर्फ चुनावी स्टंट है।
- मानवाधिकार संगठन “ह्यूमन डिग्निटी वॉच” ने इसे संविधान के खिलाफ बताया।
- कई संगठनों ने इस बयान को प्रवासियों के खिलाफ घृणा फैलाने वाला और भेदभावपूर्ण करार दिया।
क्या ट्रंप का यह रुख 2024 चुनाव की रणनीति है?
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप एक बार फिर से 2024 के चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं, और यह मुद्दा उनके एजेंडे में सबसे ऊपर है। “बॉर्डर सिक्योरिटी” और “अमेरिकन प्रायोरिटी” जैसी परिभाषाओं के साथ ट्रंप जनता का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।
कुछ लोगों को इसमें खतरे की घंटी नजर आती है, वहीं उनके समर्थकों को “अमेरिका की आत्मरक्षा” जैसा नजरिया।
आम अमेरिकी नागरिक क्या सोचते हैं?
सामान्य नागरिकों की राय भी इस मुद्दे पर बंटी हुई है:
- कुछ का मानना है कि अवैध प्रवासियों की वजह से रोज़गार के अवसर घटे हैं।
- वहीं कई लोग कहते हैं कि यह अमानवीय कदम है, जो अमेरिका की मूल भावना के खिलाफ है।
“हम प्रवासियों का देश हैं, पर हम अव्यवस्था नहीं चाहते।” – एक नागरिक ने कहा।
🌍 अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: अमेरिका की छवि पर असर
ट्रंप के इस बयान और लॉस एंजेलिस की घटनाओं ने अमेरिका की वैश्विक छवि को भी प्रभावित किया है।
यूएनएचसीआर (UNHCR) और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इस पर चिंता जताई है और कहा है कि अवैध प्रवास की समस्या का समाधान मानवीय तरीके से निकाला जाना चाहिए।
इसी बीच एक और बड़ी घटना ने अमेरिका की आर्थिक स्थिति को झकझोर दिया है – एलन मस्क और ट्रंप के बीच तनाव के कारण टेस्ला के शेयरों में ऐतिहासिक गिरावट आई, जिससे करीब 150 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ। पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ें।
सुरक्षा बनाम संवेदना
अमेरिका आज एक बार फिर उस मोड़ पर खड़ा है जहां राष्ट्र की सुरक्षा और मानवीय मूल्यों के बीच टकराव दिखाई दे रहा है।
ट्रंप की आक्रामक नीति कुछ लोगों को राहत देती है तो कुछ को डर।
अब देखने वाली बात होगी कि क्या यह कड़ा कदम वास्तविक सुधार लाएगा या राजनीतिक लाभ तक सीमित रहेगा।