पश्चिम एशिया में एक बार फिर से तनाव गहराता जा रहा है। ईरान और इज़राइल के बीच की तकरार पहले ही गंभीर थी, लेकिन अब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से आया सख्त बयान पूरी स्थिति को और पेचीदा बना रहा है।
ट्रंप ने ईरान को ‘बिना शर्त समर्पण’ करने की चेतावनी दी, जिससे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उबाल आ गया है। अमेरिका की ओर से यह बयान ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर बढ़ती चिंता के बीच आया है।
वहीं इज़राइल, जो ईरान को हमेशा से एक खतरा मानता रहा है, इस पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है। ऐसी रिपोर्ट्स सामने आ रही हैं कि इज़राइल किसी भी संभावित हमले के लिए खुद को तैयार कर रहा है।
“Be Careful…” – रूस की सीधी चेतावनी
जब दुनिया ट्रंप के बयान पर प्रतिक्रिया दे रही थी, तब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बेहद नपे-तुले शब्दों में अमेरिका और पश्चिम को चेताया। उन्होंने कहा,
“Be careful, our Iranian friends…”
इस बयान के ज़रिये पुतिन ने साफ कर दिया कि अगर ईरान को अकेला किया गया या उस पर हमला किया गया, तो रूस चुप नहीं बैठेगा।
पुतिन ने हाल ही में यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान से बातचीत के दौरान भी यह स्पष्ट किया कि रूस क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के पक्ष में है, लेकिन अगर हालात बिगड़े तो रूस पीछे नहीं हटेगा।
रूस की यह प्रतिक्रिया केवल बयानबाज़ी नहीं लगती, क्योंकि मास्को ने पहले ही ईरान के साथ कई रणनीतिक समझौते कर रखे हैं, खासतौर पर रक्षा और तेल क्षेत्र में।
Putin supported Iran, said that Iran followed the nuclear deal, but Trump broke it unilaterally. Now why should Iran agree to the demands of America and Europe? #Iranisraelconflict pic.twitter.com/oiVCPs0J1X
— JACKSON HINKLE Pαtrισt (@SpiritedHinklle) June 18, 2025
क्यों रूस को डर है ईरान के पतन का?
पश्चिमी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रूस की चिंता यह नहीं है कि ईरान परमाणु हथियार बनाए या अमेरिका से भिड़े, बल्कि यह है कि अगर ईरानी शासन गिरता है, तो मध्य एशिया में रूस की पकड़ कमजोर हो सकती है।
एक ब्रिटिश अखबार ने रिपोर्ट किया है कि अगर ईरान में शासन परिवर्तन होता है, तो रूस के लिए यह एक भू-राजनीतिक झटका होगा। ईरान, सीरिया और रूस का त्रिकोण मध्य-पूर्व में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए अहम है।
रूस के कई आर्थिक और सामरिक हित सीधे ईरान से जुड़े हुए हैं। यदि ईरान कमजोर हुआ, तो पश्चिमी देशों के लिए पूरे क्षेत्र पर प्रभाव बनाना आसान हो जाएगा — यह रूस को रणनीतिक रूप से कमजोर कर सकता है।
क्या इज़राइल युद्ध की तैयारी कर रहा है?
इज़राइल की ओर से अभी तक कोई औपचारिक घोषणा नहीं आई है, लेकिन उसके कई रक्षा विशेषज्ञों और अधिकारियों ने यह संकेत दिया है कि अगर ईरान का परमाणु कार्यक्रम किसी भी “रेड लाइन” को पार करता है, तो हमला संभव है।
ट्रंप के बयान के बाद इज़राइल और अमेरिका की रणनीतिक बातचीत तेज़ हो गई है।
कई रिपोर्टों के अनुसार, ट्रंप ने यह संकेत भी दिया है कि अगर वे सत्ता में लौटे तो वह ईरान के खिलाफ सीधे सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं।
रूस के एक पूर्व सैन्य सलाहकार ने चेतावनी दी है कि अगर ट्रंप ने ईरान पर हमला किया, तो रूस सैन्य रूप से शामिल हो सकता है।
यह बयान अंतरराष्ट्रीय समुदाय को काफी सोचने पर मजबूर कर सकता है।
भारत जैसे देशों पर क्या होगा असर?
भारत की मध्य-पूर्व नीति हमेशा से संतुलित रही है। लेकिन यदि ईरान, इज़राइल और अमेरिका के बीच युद्ध जैसे हालात बनते हैं, तो भारत पर इसका सीधा असर पड़ सकता है — खासकर आर्थिक और रणनीतिक मोर्चों पर।
- भारत की तेल की 60% से ज्यादा आपूर्ति वेस्ट एशिया से आती है।
- ईरान के साथ भारत के चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट, प्राकृतिक गैस और व्यापारिक रिश्ते भी हैं।
- अगर हालात बिगड़े, तो कच्चे तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ेगा।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी साफ किया कि भारत अब सिर्फ कूटनीति तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि जो खतरा सीधा राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करे, उस पर भारत खुलकर प्रतिक्रिया देगा। जैसा कि उन्होंने कहा, अब आतंकवाद किसी और का प्रॉक्सी युद्ध नहीं रहा, बल्कि भारत के लिए सीधी टक्कर बन चुका है, जिसे आप यहां विस्तार से पढ़ सकते हैं: Terrorism no longer a proxy war but direct confrontation for India, says PM
क्या तीसरे पक्ष की भूमिका निभा सकता है रूस?
रूस ने यूएई के साथ बातचीत में खुद को शांतिदूत के रूप में पेश किया है।
पुतिन ने कहा कि रूस सभी पक्षों से बात कर रहा है और चाहता है कि युद्ध के बजाय डिप्लोमैसी को प्राथमिकता दी जाए।
हालांकि अमेरिका और इज़राइल, रूस की इस मध्यस्थता भूमिका पर भरोसा नहीं करते।
लेकिन अगर ईरान और अमेरिका में सीधे टकराव की स्थिति बनती है, तो रूस की बातचीत की पहल किसी भी समय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
पुतिन ने दोहराया कि “हम युद्ध नहीं चाहते, लेकिन हम ईरान को कमजोर नहीं देखना चाहते।”
यह बयान साफ करता है कि रूस अब खुले तौर पर ईरान के साथ खड़ा है।
क्या आगे होगा?
इस पूरे घटनाक्रम ने पश्चिम एशिया को एक बार फिर से गर्म कर दिया है।
जहां एक तरफ अमेरिका और इज़राइल एक स्पष्ट सैन्य रुख दिखा रहे हैं, वहीं रूस ईरान का कूटनीतिक कवच बनकर उभर रहा है।
- ट्रंप की आक्रामक नीति
- पुतिन का सावधान करने वाला बयान
- और इज़राइल की सतर्कता
तीनों मिलकर यह संकेत दे रहे हैं कि अगर समय रहते हालात पर काबू नहीं पाया गया, तो एक और क्षेत्रीय युद्ध की स्थिति बन सकती है।
फिलहाल दुनिया की नजरें इस पर टिकी हैं कि क्या यह सब बयानबाज़ी है या वास्तव में सैन्य कार्रवाई की ओर बढ़ते कदम हैं।