संयुक्त राष्ट्र के मंच से ऐतिहासिक घोषणा, फलस्तीन के लिए मिली बड़ी जीत
संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष सत्र में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने फलस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में औपचारिक रूप से मान्यता देने की घोषणा की। इस घोषणा को करीब 140 से अधिक देशों के नेताओं ने जोरदार तालियों के साथ सराहा। यह एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है जो मध्य-पूर्व में दशकों से चल रहे संघर्ष को समाप्त कर शांति की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास है।
मैक्रों ने कहा कि फलस्तीन को मान्यता देना ही इजरायल और फलस्तीनियों के बीच शांति स्थापित करने का एकमात्र रास्ता है। उन्होंने यह भी बताया कि यह फैसला अमेरिका और इजरायल की आपत्तियों के बावजूद लिया गया है।
फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फलस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देकर मध्य-पूर्व में शांति की उम्मीदों को नया जोर दिया है। इस ऐतिहासिक फैसले के बाद कई पश्चिमी देशों ने भी फलस्तीन को राष्ट्र के रूप में स्वीकार किया है, जबकि इजराइल ने कड़ी निंदा की है। फलस्तीन और इजराइल के बीच लंबे समय से चले आ रहे द्वेषपूर्ण संघर्ष के बीच यह मान्यता दो-राज्य समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम मानी जा रही है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों के लिए भी अहम है। इस कदम से उम्मीद की जा रही है कि बातचीत की प्रक्रिया फिर से सक्रिय होगी और स्थायी शांति स्थापित होगी।
🇫🇷 France officially recognizes state of Palestine, President Macron announces
👏🏻 France’s decision was met with a standing ovation at the United Nations General Assembly pic.twitter.com/HIYmwV9OF6
— Anadolu English (@anadoluagency) September 22, 2025
पश्चिमी देशों का समर्थन और फलस्तीन की प्रतिक्रिया
मैक्रों के इस कदम के बाद, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया सहित कई पश्चिमी देशों ने भी फलस्तीन को राष्ट्र के रूप में मान्यता देना शुरू कर दिया है। इससे पहले केवल कुछ ही देश जैसे आयरलैंड, स्पेन, और नॉर्वे ने इस दिशा में कदम उठाया था। इस वैश्विक समर्थन से दो-राज्य समाधान की दिशा में एक मजबूत कूटनीतिक बढ़त मिली है।
फलस्तीन के अधिकारियों ने भी इस फैसले को “ऐतिहासिक और साहसिक” करार दिया है। संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीन के राजदूत ने इस मान्यता को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की न्यायप्रियता का परिचायक बताया। उन्होंने कहा कि यह मान्यता फलस्तीन की स्वतंत्रता और स्वाभिमान की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है।
इजरायल की तीव्र प्रतिक्रिया और नेतन्याहू की सख्त चेतावनी
हालांकि, इस फैसले का इजरायल ने कड़ा विरोध किया है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने स्पष्ट कहा कि जॉर्डन नदी के पश्चिम में कोई फलिस्तीनी राज्य स्वीकार्य नहीं होगा। उन्होंने कहा कि फलस्तीन को मान्यता देना आतंकवाद को बढ़ावा देना है और इससे क्षेत्रीय तनाव और भी बढ़ेगा।
नेतन्याहू की चेतावनी पूरी तरह स्पष्ट है कि इजरायल अपनी सुरक्षा के लिए कोई भी कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा। उन्होंने ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की मान्यता प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए और इसे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया। इनमें से अधिक जानकारी के लिए आप हमारी विशेष रिपोर्ट पढ़ सकते हैं:
नेतन्याहू की चेतावनी—कोई फिलिस्तीनी राज्य नहीं
गाजा और पश्चिमी तट पर हालात
मध्य-पूर्व के इस भयंकर युद्ध के बीच गाजा पट्टी और पश्चिमी तट में हजारों लोग प्रभावित हैं। मानवीय संकट गहरा गया है, खाद्य, चिकित्सा और अन्य आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी है। संयुक्त राष्ट्र और कई अन्य संस्थाएं युद्ध विराम और मानव हितैषी सहायता के लिए लगातार प्रयासरत हैं।
तेजी से बढ़ते संघर्ष के बावजूद, इस ऐतिहासिक मान्यता को शांति की उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है, जो अंततः इलाके में स्थिरता ला सकता है।
दो-राज्य समाधान की चुनौतियां और भविष्य की राह
यह मान्यता दो-राज्य समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी है, लेकिन इसे जमीन पर लागू करना आसान नहीं होगा। सीमा निर्धारण, सुरक्षा, राजनीतिक मतभेद, और बस्तियों का विस्तार अभी भी बड़ी चुनौतियां हैं। हालांकि, फ्रांस और अन्य वैश्विक शक्तियों द्वारा उठाया गया कदम वार्ता को फिर से गति देने में मदद करेगा।
फ्रांस की पहल से नए संवाद प्रारंभ हो सकते हैं जो लंबे समय से चले आ रहे द्वंद्व को शांतिपूर्ण तरीके से समाप्त कर सकते हैं। शांति प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए क्षेत्रीय सुधार और दोनों पक्षों के लिए व्यावहारिक समाधान की आवश्यकता होगी।
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीन की मान्यता से मध्य-पूर्व में शांति की दिशा में एक नई पहल सामने आई है। हालांकि, क्षेत्रीय राजनीतिक जटिलताएं और संघर्ष जैसी चुनौतियां बनी रहेंगी। इस कदम से उम्मीद जगती है कि विभिन्न राज्यों और समूहों के बीच समन्वय और संवाद को बढ़ावा मिलेगा।