ट्रंप का ताजा दावा: “मोदी ने मुझे आश्वासन दिया”
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि भारत रूस से कच्चा तेल खरीदना बंद करेगा। ट्रंप के अनुसार, यह आश्वासन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं उन्हें दिया है। उन्होंने कहा, “इंडिया अब रूस से तेल नहीं खरीदने जा रहा है। प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और जल्द ही यह पूरी तरह खत्म हो जाएगी।”
ट्रंप के इस बयान ने न सिर्फ वॉशिंगटन में बल्कि नई दिल्ली में भी राजनीतिक माहौल गर्म कर दिया। यह बयान तब आया जब वे यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ व्हाइट हाउस में संयुक्त प्रेस वार्ता कर रहे थे, जहां उन्होंने भारत के साथ-साथ यूरोपीय देशों की ऊर्जा नीति पर भी टिप्पणी की।
व्हाइट हाउस प्रेस मीट की पृष्ठभूमि
यह प्रेस मीट मुख्यतः यूक्रेन युद्ध और वैश्विक ऊर्जा बाज़ार पर केंद्रित थी। इसी दौरान ट्रंप से भारत के रूस से तेल आयात को लेकर सवाल पूछा गया, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि, “मोदी मेरे अच्छे मित्र हैं। उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया है कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा।”
उन्होंने आगे कहा कि भारत का यह कदम “वैश्विक शांति के लिए महत्वपूर्ण” साबित होगा, और अमेरिका इसके लिए भारत का समर्थन करता है। लेकिन ट्रंप का यह विश्वास, भारत के वास्तविक व्यापारिक निर्णय से मेल नहीं खाता।
Watch: US President Donald Trump says, ‘India will not be buying oil from Russia’; Adds,” They have already de-escalated. More or less stopped. They are pulling back” pic.twitter.com/WYYZ2N9UFM
— Sidhant Sibal (@sidhant) October 17, 2025
विदेश मंत्रालय (MEA) का जवाब: “ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई”
भारत सरकार ने ट्रंप के दावे पर तुरंत प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय (MEA) ने साफ कहा — “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच इस विषय पर कोई बातचीत नहीं हुई है।” मंत्रालय ने दोहराया कि भारत अपनी ऊर्जा नीति राष्ट्रीय हित और वैश्विक स्थिरता के अनुसार तय करता है।
MEA के प्रवक्ता ने कहा, “भारत का उद्देश्य है कि भारतीय उपभोक्ताओं को सस्ती और स्थिर ऊर्जा आपूर्ति मिले। रूस के साथ हमारा ऊर्जा व्यापार इसी नीति का हिस्सा है।”
भारत-रूस ऊर्जा संबंध: दशकों पुराना रिश्ता
भारत और रूस के बीच तेल व्यापार का इतिहास दशकों पुराना है। रूस वर्तमान में भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता है। अनुमान है कि भारत के कुल तेल आयात का लगभग एक-तिहाई हिस्सा रूस से आता है।
रूस के तेल की कीमतें अमेरिका या खाड़ी देशों की तुलना में सस्ती होती हैं, जिससे भारत अपने ऊर्जा बिल को नियंत्रण में रख पाता है। यही कारण है कि यूक्रेन-युद्ध के बाद पश्चिमी दबावों के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीद जारी रखी।
इस संबंध में पूरी रिपोर्ट हमारी वेबसाइट पर भी पढ़ी जा सकती है — India and Russia Oil Trade Report।
अंतरराष्ट्रीय दबाव और भारत की रणनीति
अमेरिका व यूरोपीय शक्तियाँ लगातार भारत से अपेक्षा कर रही हैं कि वह रूस से आयात कम करे। लेकिन भारत ने अपनी नीति “राष्ट्रीय हित पहले” पर कायम रखी है। भारतीय सरकार का मानना है कि विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए सस्ती ऊर्जा आपूर्ति जरूरी है।
इसके अलावा, भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि ऊर्जा व्यापार राजनीति नहीं, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा का मुद्दा है। प्रधानमंत्री मोदी कई बार सार्वजनिक मंचों पर कह चुके हैं कि “भारत का निर्णय भारतीय जनता के हितों को ध्यान में रखकर होता है।”
ट्रंप और मोदी के रिश्ते: दोस्ती या रणनीतिक चाल?
ट्रंप और मोदी के बीच वर्षों से गर्मजोशीपूर्ण रिश्ते रहे हैं। ट्रंप ने पीएम मोदी को “ग्रेट फ्रेंड” कहा, वहीं मोदी ने 2019 में ह्यूस्टन में आयोजित “Howdy Modi” कार्यक्रम में ट्रंप की तारीफ की थी।
हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह ताजा बयान अमेरिकी घरेलू राजनीति से प्रेरित हो सकता है। वर्ष 2025 में अमेरिका में आर्थिक नीतियों और ऊर्जा कीमतों पर भारी दबाव है, और ट्रंप भारत-विरोधी रुख दिखाकर घरेलू वोटर्स को संदेश देना चाहते हैं कि वह “सख्त नेता” हैं।
क्या ट्रंप ने ‘मज़ाक’ में कही गंभीर बात?
बयान के दौरान ट्रंप ने कहा — “मैं मोदी के करियर को बर्बाद नहीं करना चाहता।” यह टिप्पणी हास्यपूर्ण लहजे में कही गई थी, लेकिन मीडिया में इसने हलचल मचा दी। अमेरिकी मीडिया ने इसे “कूटनीतिक चेतावनी” के रूप में देखा, जबकि भारतीय विशेषज्ञों ने इसे “राजनीतिक नाटकीयता” बताया।
कुछ अमेरिकी अधिकारियों ने माना है कि ट्रंप का बयान “आधिकारिक जानकारी” नहीं बल्कि “राजनीतिक रंग” लिए हुए था।
भारत की ऊर्जा नीति: आत्मनिर्भरता की दिशा में
भारत धीरे-धीरे ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ रहा है। सरकार ने कई नई योजनाएं चलाई हैं जिनमें कच्चे तेल के विविधीकरण पर ध्यान दिया गया है। भारत अब सिर्फ रूस नहीं बल्कि इराक, सऊदी अरब, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात से भी बड़ी मात्रा में तेल आयात कर रहा है।
इसके अलावा, भारत जैव-ईंधन और हरित ऊर्जा निवेश में भी तेजी से अग्रसर है। विशेषज्ञों के अनुसार, आने वाले वर्षों में भारत की ऊर्जा का 20% हिस्सा नवीकरणीय स्रोतों से आएगा।
सोशल मीडिया पर बहस गर्म
ट्रंप के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर भी बहस तेज हो गई। कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि “क्या यह बयान ट्रंप की गलतफहमी है या अंतरराष्ट्रीय दवाब?”
दूसरों का कहना था कि भारत को किसी के दबाव में आकर नीति नहीं बदलनी चाहिए। ट्विटर (X) पर #TrumpIndiaOil और #MEAFactCheck ट्रेंड करने लगे।
अमेरिकी दबाव बनाम भारतीय हित
कई विश्लेषक मानते हैं कि अमेरिका भारत पर जितना दबाव बनाएगा, भारत उतनी मजबूती से अपने राष्ट्रीय हित का बचाव करेगा। यह भी कहा जा रहा है कि अगर ट्रंप की सरकार भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने का विचार करती है, तो यह दोनों देशों के बीच संबंधों को ठंडा कर सकता है।
भारत अब विश्व राजनीति में केवल “संतुलन साधने वाला खिलाड़ी” नहीं बल्कि “फैसला करने वाली शक्ति” के रूप में उभर चुका है।
सच्चाई राजनीति से परे
ट्रंप के बयान ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि विश्व की राजनीति सिर्फ तथ्यों पर नहीं, धारणा और सत्ता के खेल पर भी चलती है। भारत ने अपने बयान से दुनिया को संदेश दिया है कि वह खुद के फैसले खुद करेगा।
रूस से तेल खरीद बंद करने का फ़ैसला फिलहाल एजेंडे में नहीं है। भारत का नजरिया स्पष्ट है — जब तक वैश्विक ऊर्जा बाजार स्थिर नहीं हो जाता, तब तक सस्ती और स्थायी आपूर्ति के लिए हर विकल्प खुला रहेगा।