भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ता कूटनीतिक तनाव
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में भारत ने पाकिस्तान को लेकर तीखा रुख अपनाया। भारत ने कहा कि पाकिस्तान के लिए लोकतंत्र एक “विदेशी अवधारणा” बन चुका है, क्योंकि वहां की सरकार न केवल आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है बल्कि अपने ही कब्जे वाले क्षेत्रों में लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रही है।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान के आंतरिक हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं — राजनीतिक अस्थिरता, सेना का अत्यधिक दखल, और बार-बार की सरकार गिरने की घटनाएं उसे एक असफल लोकतंत्र की ओर धकेल रही हैं।
भारत ने साफ कहा कि अब समय आ गया है कि पाकिस्तान अपने कब्जे वाले क्षेत्रों में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों को रोके और लोकतांत्रिक मूल्यों को अपनाए।
भारत का कठोर बयान और जयशंकर का संदेश
संयुक्त राष्ट्र के मंच से भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि पाकिस्तान के लिए लोकतंत्र कोई जानी-पहचानी अवधारणा नहीं है। उन्होंने बेहद सख्त शब्दों में पाकिस्तान की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि यह देश आतंकवाद का आश्रयदाता बन चुका है।
जयशंकर ने यह भी कहा कि पाकिस्तान को अपनी नाकामी छिपाने के लिए हमेशा भारत के खिलाफ झूठे आरोप लगाने की आदत है। भारत ने स्पष्ट किया कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को अपने राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल करना बंद नहीं करेगा, तब तक भारत किसी भी “संवाद” या “शांति प्रक्रिया” की बात नहीं करेगा।
“J&K has been, is, and will always remain an integral part of India.
Pakistan must stop its grave human rights violations in illegally occupied areas, where locals resist its military oppression” – India at UN 🙌🏻
pic.twitter.com/0624QGJK2E— Mr Sinha (@MrSinha_) October 25, 2025
आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता
भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए। विदेश मंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अब ‘दृश्य रूप से जाम (visibly gridlocked)’ स्थिति में है क्योंकि जब भी भारत किसी आतंकी संगठन पर प्रतिबंध की मांग करता है, पाकिस्तान से उसके सहयोगी देश उस प्रक्रिया को रोक देते हैं।
भारत ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र से पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की थी — विशेष रूप से उन संगठनों पर जो पहालगाम हमले से जुड़े बताए जा रहे हैं। लेकिन वैश्विक राजनीति के चलते ये प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चले जाते हैं।
कब्जे वाले क्षेत्रों में मानवाधिकारों का हनन
भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और गिलगित-बाल्टिस्तान की स्थिति पर गंभीर चिंता जताई। वहां नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध, जबरन disappearances, मीडिया की आवाज़ दबाना और निर्वाचन में हेराफेरी जैसी बातें बार-बार सुनने को मिल रही हैं।
स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है और बुनियादी अधिकार जैसे शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य सुविधाएँ काफी हद तक उपेक्षित हैं। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इस स्थिति को “राज्य प्रायोजित दमन” बताया।
संयुक्त राष्ट्र सुधार की भारत की मांग
भारत ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र से सुधार की मांग की। जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था तभी प्रभावी हो सकती है जब उसमें नई विश्व-व्यवस्था के प्रतिनिधित्व को शामिल किया जाए। भारत लगातार यह कहता आ रहा है कि संस्था को अब 21वीं सदी की आकांक्षाओं के अनुरूप ढलना चाहिए, जिसमें भारत जैसे देशों को स्थायी सदस्यता का अधिकार मिलना चाहिए।
भारत का कहना है कि अगर संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद और मानवाधिकार जैसे मूलभूत मुद्दों पर निष्पक्ष कार्रवाई नहीं कर सकता, तो यह संस्था अपने उद्देश्य में विफल मानी जाएगी।
भारत की विदेश नीति: ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का दृष्टिकोण
भारत की विदेश नीति आज “वसुधैव कुटुम्बकम” के सिद्धांत पर आधारित है। भारत किसी भी विवाद का समाधान संवाद, सहयोग, और मानवाधिकारों के संरक्षण के माध्यम से चाहता है।
भारत का मानना है कि इस सदी में शक्ति नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और सहभागिता अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व तय करेगी। इसलिए भारत का दृष्टिकोण पाकिस्तान से तीखा जरूर है, लेकिन वह किसी देश के नागरिकों के प्रति घृणा नहीं बल्कि प्रणालीगत सुधार की बात कर रहा है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और अंतरराष्ट्रीय राय
पाकिस्तान ने भारत के आरोपों को “निराधार” बताया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी स्थिति पहले से कमजोर हो चुकी है। आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता, और सेना की पकड़ ने पाकिस्तान की लोकतांत्रिक संस्थाओं को लगभग निष्क्रिय बना दिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान अब “संवैधानिक लोकतंत्र” कम और “सैन्य-नियंत्रित प्रशासन” ज्यादा लगता है। यही कारण है कि भारत का यह बयान केवल कूटनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर स्थायी चेतावनी की तरह देखा जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत की भूमिका
भारत का यह बयान केवल पाकिस्तान तक सीमित नहीं है। यह भारत की उस नीति का हिस्सा है जिसके तहत वह दुनिया को यह दिखाना चाहता है कि आतंकवाद और मानवाधिकारों के मुद्दे पर दोहरे मापदंड अब नहीं चलेंगे। भारत अब केवल “प्रतिक्रिया करने वाला देश” नहीं, बल्कि “रुख तय करने वाला राष्ट्र” बन चुका है।
इस बीच, भारत-अमेरिका संबंधों में भी भारत की स्थिति मजबूत दिखाई दे रही है। उदाहरण के तौर पर, हाल ही में राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने आश्वासन दिया है कि भारत रूस से तेल खरीद कम करेगा — जिसका विवरण आप यहां देख सकते हैं।
लोकतंत्र बनाम दमन की विचारधारा
भारत का संदेश साफ है कि जब तक पाकिस्तान लोकतंत्र की सच्ची भावना नहीं अपनाएगा, तब तक उसके मुद्दे और संकट कभी समाप्त नहीं होंगे।
भारत यह भी मानता है कि दक्षिण एशिया में स्थायी शांति तभी संभव है जब क्षेत्र के देश आतंकी मानसिकता को त्यागकर लोकतंत्र, पारदर्शिता और समानता की दिशा में अग्रसर हों।
यह बयान न केवल एक राजनीतिक टिप्पणी है, बल्कि आने वाले समय का संकेत भी है — एक ऐसा समय जब सच बोलने से ही परिवर्तन संभव होगा।




















