क्यों जरूरी है इको-फ्रेंडली गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी हर साल भक्तिभाव से मनाई जाती है, लेकिन इस पर्व से जुड़ा एक पहलू ऐसा है जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है—प्रकृति पर इसका असर। प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियाँ नदियों को प्रदूषित कर देती हैं और जलजीवों के जीवन के लिए खतरा बन जाती हैं। यही कारण है कि अब लोग मिट्टी से बनी मूर्तियों और प्राकृतिक सजावट की ओर लौट रहे हैं।
इस बार 2025 में, गणेश उत्सव का संदेश केवल भक्ति और उल्लास का नहीं, बल्कि पर्यावरण की रक्षा का भी है। जब हम प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर उत्सव मनाते हैं तो यह न केवल धरती माता को सुरक्षित रखता है बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अच्छा उदाहरण भी पेश करता है।
प्राकृतिक गणेश मूर्तियाँ: मिट्टी, बीज और लोक कलाओं का संगम
मिट्टी की गणेश मूर्तियाँ सदियों से परंपरा का हिस्सा रही हैं। इन्हें पानी में विसर्जित करने पर यह बिना किसी नुकसान के घुल जाती हैं और भूमि को उपजाऊ भी बनाती हैं।
एक और सुंदर पहल है बीज वाले गणपति। जब इन्हें मिट्टी के गमले या बगीचे में विसर्जित किया जाता है, तो इनमें मौजूद बीज पौधों में बदल जाते हैं। इस तरह गणपति का आशीर्वाद सीधे प्रकृति के रूप में फलीभूत होता है।
इसके अलावा, कई कलाकार अब प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल कर रहे हैं—जैसे हल्दी, फूलों का रस, चंदन और मिट्टी के पिगमेंट। यह न केवल पर्यावरण को सुरक्षित रखते हैं बल्कि लोक कला और शिल्पकारों को भी बढ़ावा देते हैं।
This #GaneshChaturthi, humbled to take forward a noble cause by distributing #SeedGanesha clay idols. These idols not only spread devotion but also grow into plants, symbolizing renewal and harmony with nature.
Grateful to see @PTI_News positively covering this initiative. Let’s… pic.twitter.com/IE86ONyphQ
— Santosh Kumar J (@SantoshKumarBRS) August 19, 2025
पूजा और सजावट में प्राकृतिक सामग्री का महत्व
गणेश स्थापना के समय पूजा स्थल को सजाने में अक्सर थर्माकोल और प्लास्टिक की सजावट का प्रयोग किया जाता है, जो प्रकृति के लिए हानिकारक है। इसके बजाय केले के पत्ते, नारियल की जटा, कपड़े के फूल, सूखे पत्तों से बने तोरण और मिट्टी के दीपक सजावट को निखारने के साथ-साथ पर्यावरण को भी सुरक्षित रखते हैं।
घर पर DIY सजावट का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। बच्चे रंगीन कागज, मिट्टी और पत्तों से गणपति के लिए छोटे-छोटे शो-पीस बनाते हैं, जिससे उत्सव में एक व्यक्तिगत और प्रकृति-संगत स्पर्श जुड़ता है।
पूजा सामग्री में भी बदलाव देखा जा रहा है। बाजार से पैक्ड सामान खरीदने की बजाय घर पर बने लड्डू, नारियल और मौसमी फल प्रसाद के रूप में अर्पित किए जाते हैं।
स्वच्छ विसर्जन—नदी-तालाब की रक्षा के उपाय
गणेश चतुर्थी का सबसे बड़ा पर्यावरणीय प्रभाव विसर्जन से जुड़ा है। जब बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ नदियों और तालाबों में विसर्जित की जाती हैं, तो पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है। अब कई नगरपालिकाएँ कृत्रिम तालाब और टैंक उपलब्ध करा रही हैं ताकि मूर्तियों को वहां विसर्जित किया जा सके।
सामूहिक विसर्जन अभियान भी एक बेहतरीन पहल है। जब पूरे मोहल्ले की मूर्तियाँ एक ही स्थान पर विसर्जित की जाती हैं तो व्यवस्था भी बनी रहती है और प्रदूषण भी कम होता है।
अगर आप विसर्जन से पहले पूजा विधि और शुभ समय की विस्तृत जानकारी चाहते हैं, तो इसे जानने के लिए गणेश चतुर्थी 2025 शुभ मुहूर्त पूजा गाइड पढ़ सकते हैं। यह गाइड आपको सही समय और विधि के साथ-साथ पर्यावरण का ध्यान रखने के आसान उपाय भी बताती है।
Green Ganesha, Clean Hyderabad
Hyderabad Metro is a sustainable, mass rapid transit system that supports environment friendly initiatives.
A true celebration honours both tradition and nature.
Bring home an eco-friendly Ganesh this Vinayaka Chavithi.#ClayGanesha… pic.twitter.com/pmyWShTUGr
— Hyderabad Metro Rail Ltd. (@HMRLHydmetro) August 19, 2025
बच्चों और युवाओं की भागीदारी
त्योहार केवल बड़ों तक सीमित नहीं है। जब बच्चे मिट्टी से छोटे-छोटे गणपति बनाते हैं, या स्कूलों में इको-फ्रेंडली गणेश प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हैं, तो उनमें बचपन से ही पर्यावरण के प्रति जागरूकता आती है।
युवा पीढ़ी भी सोशल मीडिया के ज़रिए #GreenGanesh जैसे हैशटैग ट्रेंड कर सकती है। उनकी भागीदारी से संदेश तेजी से फैलता है और समाज में बदलाव की नींव रखी जाती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
गणेश चतुर्थी जैसे उत्सव समाज को जोड़ते हैं। जब इसमें पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी शामिल हो जाता है, तो यह दोहरी ताकत के साथ लोगों को प्रभावित करता है। एक ओर धार्मिक आस्था को सुदृढ़ करता है और दूसरी ओर लोगों को अपने परिवेश की जिम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित करता है।
इको-फ्रेंडली गणेश का आंदोलन अब केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव की दिशा भी बन चुका है। यह बताता है कि परंपराएँ और प्रकृति एक साथ चल सकती हैं।
2025 के नए ट्रेंड और जागरूकता अभियान
सोशल मीडिया पर गणेश चतुर्थी के दौरान ग्रीन मूवमेंट से जुड़ी पोस्ट और वीडियो वायरल हो रही हैं। कई सेलेब्रिटीज़ भी इको-फ्रेंडली मूर्तियों के साथ तस्वीरें शेयर कर रहे हैं, जिससे लोगों को प्रेरणा मिल रही है।
इस साल खासकर बड़े शहरों में डिजिटल अभियान चल रहे हैं, जिनमें पर्यावरण बचाने और इको-फ्रेंडली गणपति अपनाने की अपील की जा रही है। इस तरह गणेश चतुर्थी अब धार्मिक पर्व होने के साथ-साथ पर्यावरणीय जागरूकता का प्रतीक भी बन गई है।
पर्व, भक्ति और पर्यावरण का संदेश
गणेश चतुर्थी 2025 का संदेश साफ है—भक्ति और उत्सव के साथ हमें धरती की रक्षा का भी संकल्प लेना होगा। मिट्टी और बीज वाली मूर्तियाँ, प्राकृतिक सजावट और स्वच्छ विसर्जन से हम अपने उत्सव को और अधिक पवित्र और सकारात्मक बना सकते हैं।
आप इस बार गणपति बप्पा का स्वागत किस तरह से कर रहे हैं? क्या आपने इको-फ्रेंडली गणेश का संकल्प लिया है? नीचे कमेंट में अपनी राय ज़रूर साझा करें।